Amit Bhaskar for BeyondHeadlines
- दरअसल यह यात्रा कोई ख़ास ओबामा से मुलाकात की यात्रा नहीं है. यह एक साधारण संयुक्त राष्ट्र की यात्रा है, जिसमें 190 से ज्यादा देश सम्मिलित हुए हैं. लेकिन भारतीय मीडिया ने पूरा माहौल ऐसा बना दिया है, जिससे ये लगे कि अमेरिका का घमंड टूट गया है और उसने मोदी जी को ख़ास तौर पर मिलने बुलाया है.
- मीडिया ने बातों को इतना ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना शुरू कर दिया कि मोदी की साख खुद-ब-खुद घट गयी. मीडिया ने रेड कारपेट बिछे होने की बात की जो पुरे यात्रा में कहीं नहीं था. हां! जहाज़ के पास रेड डोरमैट ज़रुर था.
- मीडिया ने माहौल ऐसा बनाया, जिससे लगा कि समूचा अमेरिका मोदी के आगमन पर सर झुकाए खड़ा होगा. लेकिन हकीक़त यह है कि मोदी के आगमन पर केवल 4 लोग उन्हें लेने पहुंचे, जिसमें से भी 3 भारतीय थे और एक मेयर.
- मीडिया ने वातावरण ऐसा बनाया, जिससे लगा कि सड़कें जाम हो जाएंगी. लोगों का हुजूम उमड़-उमड़ कर बवाल मचा देगा. लेकिन हकीक़त ये है कि मोदी जहां भी गए, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. जिसे किसी मीडिया ने दिखाना मुनासिब नहीं समझा. मोदी के गिने चुने समर्थकों को भीड़ बताकर मीडिया वालों ने उनकी बाईट चलाई, लेकिन ये नहीं दिखाया कि किस तरह वो गिने चुने समर्थक मोदी के विरोध में आये हज़ारों लोगों से डर कर भाग रहे थे.
- मीडिया ने भीड़-भीड़ ज्यादा किया पर कैमरे पर भीड़ दिखाकर उसे साबित नहीं कर पाए. उनके समर्थन में आये करीब 1000 लोगों से मोदी सुरक्षा घेरे के अन्दर जाकर मिले. इस बात पर भी मीडिया ने बवाल मचाया.
- भारतीय मीडिया को छोड़कर दुनिया के किसी भी मीडिया संस्थान ने मोदी के अमेरिका दौरे को तवज्जो नहीं दी. कई टॉप चैनलों ने मोदी के भाषण के समय केवल टिकर चलाये. पूरे अमेरिका को मोदी के स्वागत में खड़ा कर देने वाला भारतीय मीडिया बेवकूफों की तरह कहानियां गढ़ता रहा.
- कई चैनलों पर हेडलाईन बनी कि ओबामा डरे भारत के शेर से आदि आदि… जबकि हकीक़त ये है कि ना तो अमेरिकी प्रशासन को और ना ही ओबामा को मोदी के आने से कोई ख़ास ख़ुशी मिली है. उन्होंने इस मुलाकात को 29 तारीख को रखा है वो भी रात्रि भोज में जहां सभी देशों के प्रतिनिधि होंगे. तो ओबामा खास तौर पर मोदी से मिलेंगे आदि खबरें बकवास साबित हुई.
- देश को इतने हाइपर बनाकर मीडिया ने अब उनके भाषण को बढ़ा-चढ़ा कर बताया, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो मोदी के स्पीच में वो दम नहीं दिख रहा था. इसका कारण यह था कि मोदी अपने देश में होने वाली रैलियों की तरह कुछ भी अनाप-सनाप नहीं बोल सकते थे. उन्हें वहां पढ़े-लिखे लोगों के सामने दुनिया को सम्बोधित करना था और यही कारण रहा कि मोदी ने पन्ने पलट-पलट के स्पीच पढ़ी, जिस वजह से उनके अन्दर का अच्छा वक्ता कहीं दब गया.
- मोदी जो की अपनी रैलियों में तालियों और हूटिंग के आदि हैं. यहां सभा में सन्नाटा पसरा देख कोशिश तो खूब कर रहे थे पर तालियां ज़्यादा बजी नहीं.
- कश्मीर मुद्दे पर बड़ी समझदारी से दो टूक बात बोल गए. साथ ही संयुक्त राष्ट्र के मंच से संयुक्त राष्ट्र पर ही सवाल उठाना हिम्मत भरा काम था. इसके अलावा समूचे विश्व को एकसूत्र में बांधने की बात भी सराहनीय है, लेकिन इन सब बातों में वो आक्रामकता नहीं थी.
- विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि मोदी साहब बिना किसी एजेंडा के ही अमेरिका पहुंच गए. इनके भाषण को सरकारी भाषण माना गया, जबकि मोदी की छवि बेबाक बात करने की है.
- ‘मोदी हिंदी में भाषण देंगे’ इस ख़बर से ख़ुशी हुई. मीडिया ने भी इसे इतिहास से जोड़ कर अटल जी से जोड़कर दिखाया. लेकिन मोदी ने अपने भाषण में हिंदी के कई शब्द बार-बार और हर बार गलत बोले. कई बार सम्पूर्ण वाक्य ही गलत बने, जिससे उसका मतलब निकालना मुश्किल हो गया.
- चापलूसी की हद यहां भी देखी गयी, जब मोदी के भाषण के खत्म होते ही भारत से मोदी के साथ आये अपने ही 5 लोग उठ के ताली बजाने लगे और समूचा सदन शांत बैठा रहा. इसके अलावा मोदी के भाषण के दौरान 70 फीसदी देश के प्रतिनिधि सदन से गायब रहे.
- किसी भी चीज़ की अति विनाशकारक होती है. मीडिया ने मोदी की अमेरिका यात्रा को इस तरह दिखाया कि आज मोदी की अमेरिका यात्रा स्वतः ही फीकी हो गयी है. मीडिया ने उनके 20 साल पहले की फोटो दिखानी शुरू की, जब वो अमेरिका गये थे. इन सब हथकंडों ने लोगों को मोदी यात्रा से निराश ही किया. कई जर्नलिस्ट उछल-उछल कर रिपोर्टिंग कर रहे थे. उनके लिए रिपोर्टिंग से ज्यादा ख़ुशी की बात ये थी कि वो न्यूयॉर्क में थे.
- और आखिर में ये सोचिये कि मोदी तो अभी ओबामा से मिले भी नहीं हैं, जब मिलेंगे तो क्या होगा?
(यह लेखक के अपने विचार हैं.)