बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

क्यों ‘मां’ के दर्शन के तरीके बदल गए हैं?

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

जबसे होश संभाला है धर्म के विजय के नारों को हमने खूब सूना है. ‘अधर्म का नाश हो’ वाले नारे भी याद हैं. वो रामलीलाएं भी याद हैं, जो मैं अक्सर घर से भाग कर देखा करता था. वो सांस्कृतिक कार्यक्रम भी याद हैं. दुर्गा माता (मां) के भक्ति वाले गाने आज भी गुनगुना लेता हूं. असत्य पर सत्य की जीत को भी देखा है. राक्षस को जलते हुए भी देखा है. और इन सबके बीच साम्प्रदायिक सौहार्द की अद्भूत मिसालों को भी देखा है.

मुझे याद है हमारे मुहल्ले के दुर्गा पूजा समिति में जितनी संख्या में हमारे हिन्दू भाई होते हैं, उतनी ही संख्या में हमारे मुस्लिम भाई भी होते हैं. हमारे यहां तो यह सिलसिला आज भी जारी है. हां! संख्या में कुछ कमी ज़रूर आई है. लेकिन आज भी समिति के महत्वपूर्ण पदों पर हमारे मुस्लिम भाई भी हैं. विसर्जन में खुशी में इनके भी कपड़े आज भी फटते हैं. अबीर व गुलाल से सब आज भी सराबोर होते हैं.

लेकिन पता नहीं क्यों… जो मज़ा हमें पहले आता था, वो शायद आज नहीं मिल पा रहा है. वो रामलीलाएं आज नहीं होती. अब राक्षस भी नहीं जलाए जाते. वो सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पता नहीं अब क्यों नहीं होते? पता नहीं, ‘मां’ की भक्ति वाले वो गाने कहां खो गए हैं?

वो सब कुछ देशी था. अब तो दुर्गा मां भी शायद विदेशी गानों की धुन पर ही खुश होती हैं, इसलिए उन्हें खुश करने के लिए ब्राजील और रोबोट डांस वाले भक्ति गाने सुनाए जाते हैं. पहले ‘मां’ बड़े ही आराम से मंडप में पड़ी रहती थी. लोग आते थे और भक्ति भावना से दर्शन करते थे और चले जाते थे. पर अब हमारे यहां ‘शोज’ चलते हैं. और इन ‘शोज’ को देखने के लिए लोगों को आपस में लड़ते हुए भी देखा है.

‘मां’ के दर्शन के तरीके बदल गए. शायद लोगों की नज़र में ‘मां’ अब जीवंत हो गई हैं, पर सच तो यह है कि पहले ‘मां’ को बिजली की अधिक ज़रूरत नहीं थी, पर अब वो बिजली के बगैर कुछ भी नहीं हैं.

http://youtu.be/qGeQI1Kq4mk

दरअसल, आज ज़माना इलेक्ट्रिकल शोज का है, जिसको देखने के लिए लोगों को आधा घंटे का वक्त भी देना पड़ रहा है. अब यह शोज अधिक महत्वूर्ण हो गए हैं. शोज़ देखने के लिए लोग आपस में लड़ने तक को तैयार बैठे हैं. ‘मां’ के दर्शन के बीच ‘मां के बेटियों’ को छेड़ने से भी बाज़ नहीं आया जा रहा है. ‘मां’ के नाम पर बजने वाले गानों में भक्ति से ज़्यादा फूहड़पन है, और लोगों के डांस को देखने के बाद ऐसा लगता है कि भक्ति अब तेल लेने चली गई है. शायद धर्म अब दिखावा जो हो चुका है.

‘मां’ का ‘डिटीलाईजेशन’ तो बर्दाश्त किया जा सकता है, पर अब तो इसका ‘राजनीतीकरण’ भी हो गया है. कितना अजीब है कि सिर्फ अपने वोट बैंक के खातिर एक सेक्यूलर देश में  किसी राज्य का कला व संस्कृति विभाग राज्य के अधिकतर देवी मंदिरों में कार्यक्रम कराए. और फिर वो कार्यक्रम मारपीट का आखाड़ा बन जाए. 50 से अधिक लोग घायल हो जाएं. और जब उन घायलों में खुद कला-संस्कृति मंत्री भी शामिल हों.

कितना अजीब है जब किसी नेता को भगवान बना दिया जाए. हम बताते चलें कि पश्चिम चम्पारण के बगहा के गोड़ियापट्टी में बने पंडाल में मां दुर्गा रथ पर सवार हैं और रथ के सारथी हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी…

यक़ीक़न यह मां की भक्ति नहीं हैं, बल्कि मां की भक्ति का फायदा राजनीतिक लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है. और जब इन आयोजनों में भक्ति के बजाए ‘राजनीति’ हावी होगी तो यक़ीक़न सत्य पर असत्य की जीत को आसानी से देखा जा सकता है.

खैर, आज पटना से जो खबरें आ रही हैं, वो वास्तव काफी दुखदायी हैं. ज़रा सोचिए! उस मां के दिल पर क्या गुज़र रहा होगा, जिसका बेटा ‘मां’ के दर्शन को गया था और आज के भगदड़ में कुचल कर मर गया.

खबरें बता रही हैं कि अब 38 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 100  से अधिक घायल हैं. बताया जाता है कि यह भगदड़ किसी के अफवाह से मची है. स्थानीय लोगों का कहना है  कि रावण दहन के दौरान ही किसी ने बिजली का तार गिरने की अफवाह फैला दी. इस अफवाह के फैलते ही गांधी मैदान में अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया और भगदड़ मच गई.

और खबरें यह भी बता रही हैं कि इस घटना पर अब राजनीति भी शुरु हो चुकी है. विपक्षी पार्टियों ने बिहार सरकार पर सवाल उठा दिया है.

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यही ‘मां’ की भक्ति है…? नहीं, कदापि नहीं…

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]