Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
चम्पारण की धरती मोतिहारी में गांधी व जॉर्ज ऑरवेल के समर्थक अब आमने-सामने हैं. ज़बानी जंग के बाद अब इस लड़ाई को सड़क पर लाने की पूरी तैयारी कर ली गई है.
दरअसल, मामला मोतिहारी में बनने वाले पार्क को लेकर है. महात्मा गांधी के समर्थक मोतिहारी में उस जगह पर एक पार्क बनाना चाहते हैं, जहां से महात्मा गांधी ने अपना सत्याग्रह शुरू किया था. लेकिन पार्क के बनने में एक बाधा सामने आ रही है कि उसे बनाने के लिए उस बंगले को तोड़ना पड़ेगा, जिसमें जॉर्ज ऑरवेल का जन्म हुआ था.
गांधी के समर्थकों का मानना है कि गांधी की जगह जॉर्ज ऑरवेल को अधिक तवज्जो देना चम्पारण का अपमान करने जैसा है. उनका कहना है कि ‘स्मृतियां उनकी संयोजी जाती है, जिनका देशहित में मातृ-भूमि के लिए योगदान हो. क्या जॉर्ज ऑरवेल की स्मृतियों को हम सिर्फ इसलिए संजोए कि मोतिहारी में पैदा होकर 6-7 महीनों के बाद ही लंदन चले गए. फिर 1922 में भारत के बग़ल में बर्मा में भारतीय औपनिवेसिक पुलिस बल में जुड़कर पांच साल तक भारतीयों का शोषण किया तथा जन्मभूमि में पांव तक नहीं रखा.’
इन गांधी समर्थकों की यह भी मांग है कि सरकार चम्पारण को विश्व-पटल पर सम्मानित करने के लिए गांधी के जन्मभूमि गुजरात में बन रहे पटेल की मूर्ति से भी बड़ी गांधी की मूर्ति चम्पारण में बनवाई जाए.
तो वहीं ऑरवेल समर्थक ऑरवेल की इस जन्मस्थली को तोड़ने का विरोध कर रहे हैं. और उनकी मांग है कि पार्क का नामकरण भी जॉर्ज ऑरवेल के नाम पर किया जाए. उनके अनुसार, गांधी समर्थक जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास का अर्थ नहीं समझते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि गांधी और ऑरवेल दोनों ने ही अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई की थी.
स्पष्ट रहे कि 2010 में बिहार सरकार ने उस मकान को जहां 1903 में एरिक ऑर्थर ब्लेयर यानी जॉर्ज ऑरवेल का जन्म हुआ था संरक्षित स्मारक घोषित कर वहां संग्रहालय बनाने की घोषणा की. जबकि एक सच्चाई यह भी है कि इससे पहले इस जगह को राज्य सरकार ने सत्याग्रह पार्क बनाने का ऐलान किया था.
दिलचस्प पहलू
इस लड़ाई का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यहां के स्थानीय लोग बाज़ार में गांधी व ऑरवेल के साहित्य की तलाश करने लगे हैं. दोनों के नाम पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी यहां के युवाओं को दिखाई जा रही हैं.
जॉर्ज ऑरवेल के समर्थकों का मानना है कि अपनी किताब ‘गांधी के बारे में सोच-विचार’ में ऑरवेल ने अहिंसा का दर्शन दुनिया को देने वाले गांधी जी की बड़ी प्रशंसा की है. लेकिन गांधीवादी समर्थकों का मानना है कि ऑरवेल ने 8 मई, 1944 को विलमार्ट को लिखे पत्र में गांधी को हिटलर, स्टालिन व फ्रेंको की तरह निरंकुश माना था.
गांधी के समर्थक ऑरवेल को एक ‘फर्जी लेखक’ बताते हैं. उनका कहना है कि एनिमल फार्म सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक है तो इससे क्या हुआ? सर्वाधिक बिकने वाली किताबों में तो प्लेब्याय की किताबें भी आती हैं. वो यह भी बताते हैं कि ऑरवेल को किसी भी रचना के लिए न कोई राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और न अंतर्राष्ट्रीय… वो यह भी बताते हैं कि बर्नाड क्रीक, जिन्होंने ऑरवेल की जीवनी लिखा है, वो ऑरवेल को मौलिक लेखक नहीं मानते… बहस इस बात पर भी होने लगी है कि अगर हमें साहित्यकार की स्मृति को ही संजोना है तो चम्पारण में जन्में गोपाल सिंह नेपाली की क्यों नहीं?
स्कॉटिश पत्रकार ने की थी जॉर्ज ऑरवेल के घर की खोज
माना जाता है कि ऑरवेल के जन्मस्थान की पहचान सबसे पहले एक स्कॉटिश पत्रकार इयान जैक ने की थी, जो उनके घर की खोज में 1983 में मोतिहारी आया था. इस बारे में जैक ने अपनी किताब ‘मोफिसुल जंक्शन’ के एक चैप्टर ‘जॉर्ज ऑरवेल इन बिहार’ में विस्तार से लिखा है. साल 2003 में पहली बार ऑरवेल की जन्म शताब्दी पर कई पत्रकार मोतिहारी आएं. यहीं से ऑरवेल के बारे में कुछ हलचल पैदा हुई.
