दिवाली व छठ में ट्रेन का सफर : भगवान ही मालिक है…

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Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

नई सरकार में रेलवे का किराया बढ़ाया गया… तरह-तरह के लुभावने वायदे किए गए… एक पल के लिए लगा कि अब तो रेलवे के वाक़ई ‘अच्छे दिन’ आकर ही रहेंगे. लेकिन अब जब त्योहार का सीजन आया है तब जाकर पता लग रहा है कि हम सब ठग लिए गए.

जैसे-जैसे दिपावली व छठ करीब आ रहा है, वैसे-वैसे ट्रेनों में सफर काफी कष्टदायक होता जा रहा है. इस त्योहारी सीजन में ट्रेनों में बर्थ मिल पाना तो दूर, वेटिंग टिकट मिलना तक मुश्किल है. बल्कि बिहार व यूपी जाने वाले लगभग सभी ट्रेनों में ‘नो-रूम’ की स्थिति है. यही स्थिति अभी दशहरा व बकरीद में भी देखने को मिली थी.

ऐसे में जिन लोगों ने भी दिपावली व छठ में घर जाने का प्लान बनाया है, उनके लिए अब तत्काल टिकट ही बस एक उम्मीद है. पर वो भी पा लेना इतना आसान नहीं है. ‘अच्छे दिन’ के वायदे वाले सरकार ने तत्काल टिकट में ‘प्रीमियम कोटा’ का ‘टोटा’ लगा दिया है. आज आलम यह है कि कई रूट पर ट्रेन का किराया फ्लाइट के किराए से भी अधिक हो गया है. हज़ारों-हज़ार रूपये देकर अगर टिकट पा भी लिया तो ट्रेन में सही से सो कर घर जा पाएंगे इसकी कोई गारंटी भारतीय रेलवे के पास नहीं है.

हालांकि सरकार ने कालाबाजारी रोकने के लिए तत्काल टिकट बुकिंग के नियमों में फेरबदल किए हैं. लेकिन रेलवे टिकट को लेकर अब भी कालाबाजारी बदस्तूर जारी है. लोगों को भले ही रेलवे काउंटर पर टिकट नहीं मिल पा रहा हो या इंटरनेट के माध्यम से बुकिंग नहीं कर पा रहे हों, लेकिन ट्रेवल एजेन्ट आसानी से 500-700 रूपये ज़्यादा लेकर टिकट उपलब्ध करा दे रहे हैं. इन ट्रेवल एजेन्ट के पास जुगाड़ ही जुगाड़ है.

एक ट्रेवल एजेन्ट नाम न बताने की शर्त पर बताता है कि यह इंडिया है, यहां सब कुछ बिकता है. बस खरीदार चाहिए… सारा देश जुगाड़ पर ही तो चल रहा है ना? आगे वो बताता है कि बस हमें अन्दर बैठे अधिकारियों को कुछ खिलाना-पिलाना पड़ता है, बाकी सारा काम खुद-बखुद हो जाता है. इसके अलावा भी कई तरीके हैं हमारे पास…

आगे वो बताता है कि आजकल ज़्यादातर एजेंट पहले से ही किसी-किसी के नाम पर टिकट बुक कर लेते हैं. फिर उसे इस भीड़भाड़ वाले सीज़न में बखूबी दोगुनी किमत पर बेचते  हैं. एजेंट ग्राहकों के फोटो लेकर टिकट पर दर्ज नाम से ही एक आईडी प्रूफ बनाकर दे देते हैं.

वो बताता है कि अक्सर ट्रेनों में भी टीटीई सफर कर रहे यात्री के टिकट का मिलान उसके फोटो पहचान पत्र के आधार पर करते हैं. पहचान पत्र पर फोटो उस यात्री का ही होता है. इसलिए टिकट दलालों के इस धंधे पर किसी को शक भी नहीं होता है. कभी-कभी टीटीई भी मैनेज रहता है. और भी कई तरीके इन टिकट माफियाओं के पास मौजूद हैं.

बात सिर्फ टिकट तक ही सीमित नहीं है. जैसे-तैसे हम टिकट पाकर वाई-फाई की सुविधा हासिल करने से सपनों के साथ हम धक्का-मुक्की करके अंदर तक पहुंचते हैं तब ट्रेनों की असली हालत समझ में आती है. तब समझ में आता है कि इस ट्रेन का तो बस उपर वाला ही मालिक है. इन दिनों ट्रेनों का आलम यह है कि हर सीट पर तीन से चार लोग पहले से ही बैठे हुए मिल जाएंगे. फिर ट्रेनों में गंदगी, कॉकरोच व चूहे हर समय आपका स्वगात करते नज़र आएंगे….

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