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Reading: लव जिहाद से अधिक खतरनाक वैदिक विवाह…
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बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

लव जिहाद से अधिक खतरनाक वैदिक विवाह…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 15, 2014 1 View
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6 Min Read
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Avinash Kumar chanchal for BeyondHeadlines

पिछले दिनों पटना में लव जेहाद और पितृसत्ता जैसे विषय पर शहर के बुद्धिजीवियों में एक संवाद का आयोजन किया गया था. वहां आए एक महिला पत्रकार ने बताया कि किस तरह वो दोस्त जिनके साथ वो घूमने जाती थी… हंसती, बोलती-बतियाती और किताबों को साझा करती थी. अचानक से घर वालों की नज़र में मुसलमान हो गया और उनकी दोस्ती खत्म कर दी गयी.

इसी आयोजन में एक और साथी आए थे, जिन्होंने अंतरधार्मिक शादी की थी और अपने बेटे के स्कूल फॉर्म में धर्म के कॉलम में इंसानियत लिखा था. लेकिन स्कूल वालों ने उसे काटकर वहां लिख दिया –मुसलमान…

व्यक्ति के सोच-समझ कर खुद के तय किये अस्तित्व को तथाकथित समाज समझने के लिये तैयार नहीं, क्योंकि उन्हें पता है अगर उन्हें अपने जर्जर अस्तित्व की रक्षा करनी है तो इंसानियत और आजादी के अस्तित्व को नकारना ज़रुरी है.

धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर दक्षिणपंथी ताक़तें लव जिहाद को एक मुद्दा बनाकर लगातार एक खास समुदाय पर हमला कर रहे हैं. उनके अनुसार हिन्दू लडकियां खतरे में हैं. कहते हैं कि मुस्लिम युवकों द्वारा हिन्दू लड़कियों से शादी करने के बाद उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, जिससे पूरा हिन्दू धर्म खतरे में आ गया है.

हिन्दू धर्म के ऊपर मंडरा रहे इस खतरे को टालने के लिए हिन्दू ठेकेदारों ने चेतावानी जारी करना शुरू कर दिया है. कहीं लड़कियों को कम कपड़े न पहनने को कहा जा रहा है, कहीं मोबाइल न रखने की हिदायत दी जा रही है… तो कहीं लड़कियों का स्कूल जाना बंद करवाया जा रहा है.

ये वही लोग हैं जो सदियों से हिन्दू समाज में विवाहित महिलाओं के साथ हो रहे आत्याचार पर शातिराना चुप्पी साधे हुए हैं. ये वही धर्म के ठेकेदार हैं, जो सदियों से अपने घरों में बहुओं को मारते आये हैं. बेटियों को घर की चारदीवारी में कैद करना अपनी इज्ज़त समझते आये हैं.

पर्दा प्रथा हो या बाल विवाह और विधवाओं के साथ सुलूक… हर बार महिलाओं को बंद कोठरी की दासी ही बना कर रखा गया. लेकिन धर्म के ठेकेदारों को इन सबसे कोई समस्या नहीं…

उन्हें कोई समस्या नहीं, अगर महिलायें हर रोज़ मार खाती रहें. उनके साथ दासियों जैसा व्यवहार होता रहे. शिक्षा, स्वास्थ्य और जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहे. उन्हें तब तक कोई समस्या नहीं जब तक महिलायें चुपचाप इन आत्याचारों को सहती रहीं…

मैं जब ये सब लिख रहा हूं तो एक महिला प्रकोष्ठ में बैठा हूं. अपने साथ एक विवाहित लड़की को लेकर जो पिछले सात सालों से हर रोज़ अपने पति से मार खा खा कर मरने की हालत में पहुंच गयी है, लेकिन आज से एक दिन पहले तक हिन्दू समाज में कथित इज्ज़त की डर से उस लड़की को पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत तक नहीं हो रही थी.

ये एक दिन का मामला नहीं है. पिछली बार भी कुछ ऐसा ही मामला लेकर यहां आया था. हर रोज़ ऐसे सैकड़ों किस्से सुनता-देखता हूं, लेकिन इन सबसे इन धार्मिक ठेकेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता. इन मुद्दों पर ये शर्मनाक चुप्पी साधे रहते हैं.

लेकिन यही लड़कियां अगर अपने हिसाब से जीने फैसला करती हैं. अपने आसमान को खुद अपने हिसाब से चुनने चाहती हैं, तो इन कथित हिन्दू धर्म के रक्षकों को दिक्कत शुरू हो जाती है.

आज भारत बदल रहा है. समाज में महिलाएं आगे आ रही हैं. महिलाओं का आंदोलन, उनकी आजादी की मांग तेज़ हो रही है. महिलाएं स्कूल-कॉलेज जा रही हैं. बड़े-बड़े पदों पर पहुंच रही हैं. वे प्रेम कर रही हैं. सामाजिक मान्यताओं को, घटिया और पुराने हो चुके रीति-रिवाजों से विद्रोह करने का साहस जुटा रही हैं और इसी वजह से धर्म के रक्षक बिलबिला रहे हैं. उनको अपनी पुरुषवादी सत्ता अपने हाथ से फिसलती दिख रही है.

इसी संदर्भ में दिल्ली विश्विविद्यालय की प्रोफेसर चारु गुप्ता ने काफिला के लिये लिखे लेख में कहा है कि ‘लव जेहाद जैसे आन्दोलन हिन्दू स्त्री की सुरक्षा करने के नाम पर असल में उसकी यौनिकता, उसकी इच्छा और उसकी स्वायत्त पहचान पर नियंत्रण लगाना चाहते हैं. साथ ही वे अक्सर हिन्दू स्त्री को ऐसे दर्शाते हैं, जैसे वह आसानी से फुसला ली जा सकती है. उसका अपना वजूद, अपनी कोई इच्छा हो सकती है, या वो खुद अंतर्धार्मिक प्रेम और विवाह का क़दम उठा सकती है… –इस सोच को दरकिनार कर दिया जाता है. मुझे इसके पीछे एक भय भी नज़र आता है, क्योंकि औरतें अब खुद अपने फैसले ले रही हैं.’

चारु आगे कहती हैं कि इस तरह के दुष्प्रचार से सांप्रदायिक माहौल में तो इजाफा हुआ है. पर यह भी सच है कि महिलाओं ने अंतर्धार्मिक प्रेम और विवाह के ज़रिये इस सांप्रदायिक लामबंदी की कोशिशों में सेंध भी लगायी है.

अंबेडकर ने कहा था कि अंतरजातीय विवाह जातिवाद को खत्म कर सकता है. मेरा मानना है कि अंतरधार्मिक विवाह, धार्मिक पहचान को कमजोर कर सकता है. महिलाओं ने अपने स्तर पर इस तरह के सांप्रदायिक प्रचारों पर कई बार कान नहीं धरा है. जो महिलाएं अंतरधार्मिक विवाह करती हैं, वे कहीं न कहीं सामुदायिक और सांप्रदायिक किलेबंदी में सेंध लगाती हैं. रोमांस और प्यार इस तरह के प्रचार को ध्वस्त कर सकता है….

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