BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : “अवैध गिरफ्तारियों का सवाल सामान्य नहीं है. यह एक बिजनेस मॉडल है. इसका एक ग्लोबल स्ट्ररक्चर है. इसे समझने की ज़रूरत है. यह सवाल दरअसल देश की बहुसंख्यक आवाम से जुड़ा है. देश के 85 प्रतिशत लोगों की सत्ता में कोई भागीदारी नहीं है. वे कोई आवाज़ न उठाएं इसीलिए यह सब हथकंडे हैं.”
यह बातें आज लखनउ के यूपी प्रेस क्लब में ‘अवैध गिरफ्तारियां और इंसाफ का संघर्ष’ विषयक सेमिनार में सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने रखी. इस सेमिनार का आयोजन रिहाई मंच ने ‘अवैध गिरफ्तारी विरोध दिवस’ के अवसर पर आयोजित किया था.
आगे उन्होंने कहा कि विचार तंत्र को नियंत्रित करने वाले संगठनों में अमीरों का कब्जा है. सारी लड़ाई इस लुटेरे आर्थिक तंत्र को वैधता प्रदान करने की कोशिशों से जुड़ी है. आज देश के दलित, आदिवासी और मुस्लिम समाज के लोगों का स्थान अपनी आबादी से अधिक जेलों में है. इसके लिए सिर्फ पुलिस ही नहीं, बल्कि देश का राजनीतिक ढांचा भी जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि गुजरात में पहली बार आईपीएस जेल गए और फर्जी एनकाउंटर बंद हो गए. खालिद के मामले में निमेष कमीशन ने भी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफरिश की है. अगर इस पर अमल हो गया तो फर्जी गिरफ्तारियों में काफी कमी आ जाएगी.
इस सेमिनार को संबोधित करते हुए साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि आज जेलों में तमाम लोग 10-10 सालों से उन मामलों में बंद हैं, जिसमें अधिकतम सजा ही दो साल है. इनमें बड़ी संख्या दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों की है. इससे साबित होता है कि पूरी व्यवस्था ही इन तबकों के खिलाफ है. सबसे शर्मनाक कि सामाजिक न्याय के नाम पर सत्ता में आई पार्टियों के शासन में भी यह सिर्फ जारी ही नहीं है, बल्कि इनमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है.
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने कहा कि रिहाई मंच की इस लड़ाई ने सरकार पर एक दबाव बनाया और उसके बाद सरकार ने हर जिले में एक शासनादेश भेजा कि सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए बेगुनाह छोड़े जाएं. जबकि होना यह चाहिए था कि सरकार मामलों की पर्नविवेचना के बाद उनको छोड़ने की बात करती. इससे सरकार ने न्याय के इस सवाल को साम्प्रदायिक राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की. इसलिए निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल कराने के लिए संघर्ष जारी रखना होगा.
इस अवसर पर रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि हम आतंकवादियों को छुड़ाने की बात नहीं करते, बल्कि बेगुनाहों को छोड़ने की बात करते हैं. सरकार ने वादा किया था कि वह इन नौजवानों को छोड़ेगी और उनका पुर्नवास करेगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
मौलाना खालिद मुजाहिद के चचेरे भाई शाहिद ने कहा कि पूरी दुनिया जानती है कि मेरे भाई को ग़लत तरीके से उठाया गया. निमेष रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है. लेकिन बावजूद इसके उन्हें पांच साल तक जेल में रखा गया और आखिर में मार डाला गया. लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि इंसाफ के इस संघर्ष के कारण उनके हत्यारे ज़रूर जेल जाएंगे.
सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सवाल केवल खालिद की अवैध गिरफ्तारी का नहीं है, अवैध गिरफ्तारियां आज भी लगातार जारी हैं और व्यवस्था के लिए उनके अपने निहितार्थ हैं. ऐसी अवैध गिरफ्तारियां सत्ता को अपनी हुकूमत बचाए रखने के लिए ज़रूरी हैं, ताकि आम जनता डरकर उनके खिलाफ आवाजें उठाना बंद कर दे.
सेमिनार को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियन नेता शिवाजी राय ने कहा कि पूंजीवाद के चरित्र में इस किस्म के अपराध होते हैं. यह सब इस व्यवस्था का अंग हैं. उन्होंने कहा कि सरकार ने दस लाख हेक्टेयर ज़मीन किसानों से छीनी हैं और विरोध करने पर फर्जी मुक़दमें लादे जाते हैं. वास्तव में पुलिस का चरित्र ही उत्पीड़क है.
एपवा की नेता ताहिरा हसन ने कहा कि खालिद की गिरफ्तारी देश के संविधान पर हमला था, जिसे देश की खाकी द्वारा अंजाम दिया गया था. अगर निमेष आयोग कहता है कि खालिद बेगुनाह है तो फिर उस प्रताड़ना का जवाब कौन देगा जो उसे और उसके परिवार को मिली हैं.
सेमिनार में आदियोग, रामकृष्ण, धमेंद्र कुमार, अजीजुल हसन, राजीव प्रकाश साहिर, डॉ. अनवारुल हक़ लारी, वर्तिका शिवहरे, ज्योत्सना, रिफत फातिमा, नेहा वर्मा, प्रदीप शर्मा, सीमा राणा, एहसानुल हक मलिक, शिव नारायण कुशवाहा, जैद अहमद फारूकी, सैय्यद मोईद अहमद, डॉ. अली अहमद, क़मर सीतापुरी, जुबैर जौनपुरी, गुफरान खान, खालिद कुरैशी, आफाक, दीपिका पुष्कर, बिलाल हाश्मी, हेमेंद्र मिश्र, जाहिद अख्तर, फैजान मुसन्ना, मुजफ्फर लारी, मोहम्मद समी, अख्तर परवेज, महेश चंद्र देवा, शरद जायसवाल, तारिक़ शफीक़, हरेराम मिश्र, विनोद यादव, लक्ष्मण प्रसाद, शाहनवाज़ आलम आदि मौजूद थे.
दरअसल, यह सेमिनार आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए खालिद मुजाहिद जिनकी पुलिस व आईबी अधिकारियों द्वारा मई 2013 में हत्या कर दी गई थी, की 2007 में हुई फर्जी गिरफ्तारी की सातवीं बरसी पर आयोजित किया गया था.
