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45 लाख की बिजली खा गया अटल बिहारी वाजपेयी का बंगला

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

एक ओर देश का किसान बिजली के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है. सूखी फसल के पास बैठा किसान खून के आंसू रो रहा है. तो दूसरी ओर हमारे नेता हैं जिनके घरों के बिजली संस्थापनों के रख-रखाव का खर्च आपके होश उड़ा देगा.

आरटीआई के ज़रिए भारत सरकार के केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के संसद वातानुकूलन मंडल से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि यह मंडल कुल 8 सरकारी बंगलों के वैधुत संस्थापनों का रख-रखाव करती है. इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, अटल बिहारी वाजपेयी, स्वर्गीय आई.के. गुजराल, स्वर्गीय वी.पी. सिंह, एच.डी. देवेगौड़ा और डॉ. मनमोहन सिंह का बंगला शामिल है.

आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि 6 ए, कृष्णा मेनन मार्ग पर अटल बिहारी वाजपेयी का बंगला है. उनके बंगले पर वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव पर पिछले वर्ष यानी 2013-14 में 18 लाख 98 हज़ार 231 रूपये खर्च हुए. जबकि यह खर्च 2012-13 में 15,31,826 रूपये, 2011-12 में 1,67,136 रूपये, 2010-11 में 5,46,747 रूपये और 2009-10 में 3,86,937 रूपये रहा.

वहीं 10 जनपथ, जहां यूपीए अध्यक्षा व लोकसभा सांसद सोनिया गांधी रहती हैं, में वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव पर पिछले वर्ष यानी 2013-14 में 5 लाख 13 हज़ार 318 रूपये खर्च हुए. जबकि यह खर्च 2012-13 में 782968 रूपये, 2011-12 में 265681 रूपये, 2010-11 में 688048 रूपये और 2009-10 में 992492 रूपये रहा.

35 लोधी रोड में प्रियंका वाड्रा रहती हैं. इनके बंगले में वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव पर साल 2013-14 में 219994 रूपये, 2012-13 में 335558 रूपये, 2011-12 में 113863 रूपये, 2010-11 में 294878 रूपये और साल 2009-10 में 425354 रूपये का खर्चा आता है. वहीं राहुल गांधी का 12 तुगलक लेन पर स्थित बंगला में वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव पर साल 2013-14 में 380320 रूपये और साल 2012-13 में यह खर्च 151934 रूपये रहा.

5 सफदर जंग लेन में एच.डी. देवेगौड़ा साहब रहते हैं. 1 तीन मूर्ती मार्ग में स्व. वी.पी. सिंह का परिवार रहता है तो वहीं 5, जनपथ में स्व. आई.के. गुजराल का परिवार रहता है. इन तीनों बंगलों पर पिछले चार सालों में 2548906 रूपये वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव पर खर्च हुए.

डॉ. मनमोहन सिंह को मई, 2014 से 3 मोती लाल नेहरू मार्ग पर रहने के लिए बंगला दिया गया है. इसलिए इनका कोई खर्च यह मंडल नहीं बता सका है.

ज़रा सोचिए वो देश जहां का अन्नदाता किसान बिजली के लिए अर्जियां लगा-लगा कर थक जाता है. लेकिन उसके पास बिजली नहीं आती. क्या उस देश के नेताओं के घरों में सिर्फ वैधुत संस्थापनों के रख-रखाव का यह बेहिसाब खर्च लोकतंत्र के मर जाने की गवाही नहीं देता?

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