Iti Sharan for BeyondHeadlines
आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
है जिन्दगी के भरे गुलसिताँ से ख़फा
ज़र्द पत्तों का बन जो मेरा देस है…
फैज़ की इस गज़ल के साथ ही जेएनयू की एक शाम प्रतिरोधी गीतों के नाम रही. वो शाम गीतों और कविताओं द्वारा प्रतिगामी शक्तियों के विरोध में थी.
सांस्कृतिक ग्रुप ‘मजमा’ द्वारा ‘आज के नाम’ से प्रतिरोधी गानों और कविताओं के इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल सांइस में आयोजित इस कार्यक्रम का मक़सद समाज को पीछे ले जाने वाली प्रतिगामी शक्तियों के विरोध में एकजुट होकर उनके खिलाफ आवाज़ उठाना और एकजुटता प्रदर्शित करना था.
मजमा की सदस्य सुप्रिया ने बताती हैं, “हमारे ग्रुप ने अब तक महिलाओं के खिलाफ हो रहे शोषण, सांप्रदायिकता जैसे कई मुद्दों पर गाने लिखे हैं और उसे गाया भी है. मगर इसके पहले एक ही मंच पर सभी गानों की प्रस्तुति नहीं की गई थी. हमारा उद्देश्य उन प्रतिगामी गीतों को एकमंच पर लाना है. हमने ऐसी कविताओं और गानों को शामिल किया है, जो वर्त्तमान में समाज की संकट, समस्याओं और उनके खिलाफ संघर्ष की बात करता है.”
इसके साथ ही मजमा ने अपना पहला प्रतिरोधी गीतों (प्रोटेस्ट सांग) का म्यूजिक एलबम भी जारी किया. एलबम का प्रमोचन भाजी गुरशरण सिंह ट्रस्ट के सदस्य और विख्यात संस्कृतिकर्मी डा. नवशरण सिंह ने किया. उन्होनें कहा कि इस तरह का प्रयास सांस्कृतिक मंच के ज़रिए आज की चुनौतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने और विरोध करने की पंरपरा को जारी रखने जैसा ही है.
कार्यक्रम में फैज़ अहमद फैज़, कबीर, पाश और गोरख की कविताओं को गीत के रूप में पेश किया गया. जिनमें फैज़ की इन्तिसाब, कबीर की देखो रे जग बौराना और पाश की हम लड़ेंगे साथी की प्रस्तुति की गई.
इसके साथ ही मजमा के सदस्यों ने अपनी कविताओं और गीतों को भी गया. जिनमें प्रीतपाल रंधावा की चल चलिए, मनीष श्रीवास्तव की खाली पौलोथीन से सपने जैसे गीतों को शामिल किया गया. कार्यक्रम में हिन्दी, पंजाबी और बांग्ला इन तीन भाषाओं के गीतों की प्रस्तुति हुई.
कार्यक्रम में जेएनयू इप्टा, जनरंग, रीवॉलयूसनरी कल्चरल ग्रुप ने भी अपनी प्रस्तुति दी.