कार्पोरेट सीधे मोदी को निर्देश देकर अपने काम करवा रहे हैं –मेधा पाटकर

Beyond Headlines
3 Min Read

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : ‘देश का इस हद तक कर्पोरेताइज़ेशन हो चुका है कि भूमि हस्तांतरण और पर्यावरण जैसे गंभीर मसले पर इन्हें सरकार से इजाज़त लेने की कोई ज़रूरत नहीं है. हमारी संसद जहां धर्मांतरण के मुद्दे पर बाधित हैं, वहीं पूंजीपतियों के हितो के क़ानून संसद में बड़ी आसानी से पास किये जा रहे हैं. हर तरफ कार्पोरेट छाये हुए हैं, मोदी राज में कार्पोरेट सीधे मोदी को निर्देश देकर अपने काम करवा रहे हैं और किसी कैबिनेट मंत्री तक की यह हैसियत नहीं है कि वह अपने उनके मंत्रालय के अधीन बातों पर भी स्वयं कोई निर्णय ले सके. सारा निर्णय मोदी और कार्पोरेट के गठजोड़ से तय हो रहे हैं.’

ये बात मेधा पाटकर ने आज भारतीय सामाजिक संस्थान में फादर पॉल डे ला गुरेवियेरे स्मृति व्याख्यान में कही.

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पाटकर ने कहा कि कार्पोरेट का धन सभी पार्टियों को मिला रहा हैं. परन्तु हमें निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमारे सामने जनांदोलन की सफलता के भी कुछ उदाहरण हैं. पश्चिम बंगाल का सिंगुर ऐसी ही एक सफलता है जहां गैर कृषि भूमि को छोड़कर कृषियोग्य भूमि पर कार्पोरेट अपना कब्ज़ा जमाने की फिराक में थी.

हालांकि यहां हमें पूरी सफलता नहीं मिल पायी है, क्योंकि टाटा ने अपना उद्योग गुजरात में हस्तांत्रित कर दिया जहां सरदार सरोवर बांध से प्रतिदिन 60 लाख लीटर पानी इस कार फैक्ट्री को दिया जा रहा है.

गुजरात से सानंद में कोका कोला कंपनी को प्रति दिन 30 लाख लीटर पानी दिया जाता है. वहीं दूसरी तरफ झुग्गी बस्तियों और सार्वजनिक स्थानों से नल गायब किये जा रहे हैं, ताकि लोग बोतल का पानी खरीदने के लिए मजबूर हो.

मंच पर बिसलेरी की बोतल की और इशारा करते हुए मेधा पाटकर ने आगे कहा कि कम से कम जब तक संभव हो सके हमें करोपोरेट के उत्पादों के इस्तेमाल से बचना चाहिए.

कार्यक्रम के आरम्भ में अध्यक्षता कर रहे जेएनयू  के प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र जोधका ने कहा कि आज लोकतंत्र खतरे में है. इस बात की ओर डॉ. अंबेडकर पहले ही इशारा कर चुके थे. और इसीलिए उन्होंने कहा था कि हम केवल संवैधानिक रूप से लोकतंत्र है परन्तु हमारे देश में सामाजिक लोकतंत्र का अभाव है. कार्यक्रम में शरीक हुए प्रख्यात समाजशास्त्री आशिस नंदी ने कहा कि इस कार्पोरेट के जाल से बचाना इसलिए कठिन है, क्योंकि वह किसी एक पार्टी को नहीं बल्कि तमाम राजनैतिक पार्टियों के एक साथ चन्दा देते हैं, ताकि जो भी पार्टी सत्ता में आये वह कार्पोरेट हित के खिलाफ कोई क़दम नहीं उठा सके.

Share This Article