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सरकारी नसबंदी अभियान उर्फ आदिवासी सफाई अभियान!

Zulaikha Jabeen for BeyondHeadlines

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में नसबंदी ऑपरेशन शिविरों में सर्जरी करवा चुकी 15 आदिवासी औरतों की मौत चहुंओर चर्चा का विषय बन गई है. लानत मलामत का दौर भी जारी है. मीडिया में आ रही खबरों में मृतक महिलाओं के पीडि़त परिवारों की व्यथा-कथा देख सुनकर राज्य की उच्च न्ययालय ने भी इसे गंभीर और आपराधिक मानवीय हादसा मानते हुए अपने स्वविवेक से संज्ञान मे लेते हुए, असंवेदी राज्य सरकार और आपराधिक हद तक बेलगाम हो चुकी सरकारी मशीनरी को झाड़ पिलाइ है.

बेशक इस आपराधिक मानवीय चूक की जितनी भी निंदा की जाए कम है. लेकिन इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की मुनाफाखोर व्यापारी समुदाय के हित में वंचित तबकों के नागरिक और इंसानी हक़ों की अनदेखी और हनन का यह इकलौता मामला नहीं है, बल्कि इसका पिछला रिकार्ड देखना भी बहुत ज़रूरी है.

ऐसा नहीं है कि राज्य में सरकारी शिविर में की गई “हत्यारी लापरवाही” का यह पहला मामला है, बल्कि इससे पहले भी सरकारी शिविरों के आयोजनों में गरीब, दलित, आदिवासियों के इंसानी और नागरिक हक़ छीने गए हैं. 2012 में ही सरकारी मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर में आधा सैकड़ा से ज्यादा लोगों के आंखों की रौशनी छीनकर उनकी जिंदगी में अंधेरा भर दिया गया था. इस आपरेशन से फैले इंफेक्शन ने तीन लोगों (एक महिला) की जान भी चली गई. जिसकी जिम्मेदारी सरकार और उसके स्वास्थ्य विभाग ने अब तक भी नहीं ली है.

15 आदिवासी औरतों की हत्या के इस हालिया मामले के अलावा एक दूसरे मामले में करीब दो दर्जन आदिवासी औरतों की बच्चेदानियां बग़ैर उन्हें बताए चुपके से निकाल ली गई थी. पैसों के लालची डॉक्टर और सरकारी मशीनरी के अधिकारी/कर्मचारी अमानवीय, असंवेदी विभाग, टारगेट पूरा करने की होड़ में ऐसे ही एक शिविर में पीटीजी (प्रिमेटिव ट्राइव ग्रुप-संरक्षित आदिवासी ग्रुप) के बैगा आदिवासी औरतों का नसबंदी आपरेशन कर दिया गया था. जबकी ये देश की लुप्त प्रायः जनजाति हैं और इनके नसबंदी आपरेशन पर कराने और करने वाले पर भारत सरकार की नज़र में गैरकानूनी है.

देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें गोद लिया था ताकि आजाद हिंदोस्तान में इनके मानवाधिकारों की रक्षा के साथ ही इनके संपूर्ण विकास पर विशेष ध्यान दिया जा सके. इसीलिए इन्हें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है.

विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक बिलासपुर के पेंड्रा से 18 बैगा आदिवासी औरतों का नसबंदी आपरेशन डरा धमकाकर किया गया है जिसमें से पेंड्रा के धनेली गांव की एक बैगाइन चैती बाई की मौत हो चुकी है. (उसके परिवार ने सरकार की तरफ से दिए गए 2 लाख का चेक वापस कर दिया है और आपरेशन करने वालों पर हत्या का मामला दर्ज करने की मांग कर रहे हैं).

गौरतलब है कि पहले की तरह इस शिविर में भी किसी ज़रूरी प्रोटोकाल का पालन नहीं किया गया. इसे बेशर्म लालच और आमानवीयता की हद ही कहा जाएगा कि 15 बरस से बंद पड़े नर्सिंग होम जिसमें इनफेक्शन के खात्मे के लिए ज़रूरी स्ट्रेलाइजेशन (संक्रमण रहित) करना अतिसीमित सरकारी फंड में नामुमकिन था, में ये आरेशन किए गए-जाहिर है स्ट्रेलाइजेशन संबंधी एक्ट की तबीयत से धज्जी उड़ाई गई है.

एक डाक्टर जो अकेले 83 औरतों का आपरेशन महज 5 घंटे में करने का दावा करता हो तो उसे डाक्टर नहीं मैराथन दौड़ में भाग लेने वाला प्रतिभागी ही समझा जाना चाहिए, जिसके लिए गरीब जिंदा औरत का जिस्म उसके पैरों के नीचे भागती सड़क से ज्यादा अहमियत नहीं रखता. बावजूद इसके बड़ी बेशर्मी से सभी ज़रूरी प्रोटोकाल को ताक पे रख कर ये काम अंजाम दिया गया.

5 घंटे में 83 आपरेशन करने का मतलब है करीब 3 से 4 मि. में एक आपरेशन निपटाया जाना. मतलब साफ है नसबंदी आपरेशन के सरकारी लक्ष्य में अव्वल रहकर, सरकार से पूर्व में सम्मानित हो चुके ये डाक्टर महाशय आदतन प्रोटोकाल की अवहेलना करने के माहिर हैं. बेशक इसमें सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय की शह भी शामिल रही है.

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुई इन मौतों की जिम्मेदार नकली (अमानक) दवाओं को माना जा रहा है, जो महज़ ज्यादा मुनाफ़ाख़ोरी के लालच में दवा कंपनी, दवा व्यापारी और स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की मिली भगत से ही मुमकिन हो सकता है.

यह गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के कुछ बरसों बाद ही राज्य में खाद्य पदार्थो में मिलावट करने वाले व्यापारी, नकली दवाओं के निर्माता, भू माफिया, खनन माफिया, उद्योगपतियों, मुनाफ़ाखोरों, जमाखोरों, कालाबाजारियों के मंत्रियों और शातिर गुंडों का गठजोड़ बनाया गया, जो बाकायदा क्या शहर क्या गांव, सभी बाशिंदों को अपनी जूती के नीचे रखने की बराबर कोशिश करते रहे हैं.

सरकार के साथ इस बेशर्म गठजोड़ का इससे बड़ा क्या सबूत होगा कि अंबिकापुर सरकारी अस्पताल में ऐसी ही अमानक इंजेक्शन लगाने के 15 मिनट में 32 वर्षीय राबिया (बदला नाम) जो अपेंडिक्स का आपरेशन करवा कर स्वस्थ हो रही थी, दोपहर को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज होना था, की मौत के जिम्मदार हत्यारे डाक्टर (जिसने सुबह दवा की पर्ची बनाई और उसके पति को फलां मेडिकल से ये दवा लाना कहकर मंगवाई, डयूटी की नर्स ने इंजेक्शन लगाया और कुछ ही मिनटों में उसकी सांसे थम गई.) को और उसे बचाने वाले विभागीय आला अधिकारियों को 2 घंटे की भी सज़ा नहीं दी गई.

खाद्य पदार्थो में मिलावट करने वाला व्यापारी वर्ग बेखौफ़ अपना काम कर रहा है, बीच-बीच में खाद्य विभाग ज़ब्ती अभियान चलाकर नकली सामान भी जब्त करता है, मगर आज तक किसी भी मालिक को घंटे भर के लिए भी सलाखों के पीछे नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) के स्टाक में सभी ज़रूरी (मानक) दवाओं का जखीरा मौजूद होते हुए भी स्थानीय स्तर पर मेडिकल कालेज अस्पताल अधीक्षक, सभी जिला चीफ मेडिकल आफिसर्स (सीएमओ) अपने स्तर पर दवाइयों की खरीदी करते रहे है. पेंडारी नसबंदी कैंप के लिए भी दवाओं की स्थानीय खरीदी की गई थी. जा़हिर है बड़े पैमाने पे मुनाफ़ा खोरों की जेबें गरम की गई हैं.

चूंकि भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संरक्षण घोषणा पत्र और प्रतिज्ञा पत्र पर दस्तख़त किए हुए हैं और हम इसके सदस्य देश हैं. अतः केंद्र और राज्य सरकारों की ये जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा बिना किसी भेदभाव के करें. ऐसे हालात में छत्तीसगढ़ सरकार अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में जवाबदेह हो गई है.

वाजिब सवाल

वे तमाम दवाएं (टेबलेट आईबुप्रोफेन, टेबलेट सिप्रोसीन, इंजेक्शन लिग्नोकन हाईड्रोक्लोराइड) जो नसबंदी शिविर आयोजन के लिए ज़रूरी थीं “सीजीएमएससी” के और खुद बिलासपुर जिले के स्टाक में भरपूर मात्रा में मौजूद होने के बावजूद वही दवाएं स्थानीय स्तर पर बगैर मानक जांच के खरीदी गईं, आखि़र किसलिए?  इसके लिए पैसा कहां से आया?  खरीदी की लिखित अनुमति कहां से ली गई?  किसने दी लिखित अनुमति? सीजीएमएससी को दर किनार करने का मकसद क्या है?

ऐसे दर्जनों सवाल हैं जो राज्य सरकार की गरीब और जनविरोधी नीतियों के साथ ही उसके संवैधानिक चरित्र पर न सिर्फ सवालिया निशान लगाते हैं, बल्कि राज्य सरकार को मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्ऱीय ट्रिब्यूनल के कटघरे में खड़ा करने का दोषी भी दिखाते हैं.

विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक राज्य में 5 दवा निर्माता कंपनियां हैं, जो सिर्फ सरकारी सप्लाई के लिए ही दवा निर्माण कर रही हैं. इनकी सीधी पहुंच स्वास्थ्य संस्था प्रमुखों तक है. (मेडिकल कालेज अस्पताल अधीक्षक, सभी जिला चीफ मेडिकल आफिसर्स सीएमओ)

ये कंपनियां “सीजीएमएससी” जैसी संस्था से होकर नहीं गुजरती. जाहिर है इसके लिए बड़ी राजनैतिक हस्तियों के वर्दहस्त के बगैर ये सब नामुमकिन है. राजधानी रायपुर मेडिकल कांप्लेक्स के दवा विक्रेताओं की सुनें तो उनका साफ कहना है कि वे इन कंपनियों की बनाई दवा नहीं खरीदते हैं. राज्य में नकली दवा निर्माता कंपनियां माफिया की तरह काम कर रही हैं.

मामला खुल जाने और सर्वत्र थू-थू होने के बाद राज्य सरकार ने आनन-फानन में 6 दवाओं को प्रतिबंधित कर दिया. साथ ही एक कंपनी का मालिक (पिता पुत्र) गिरफ्तार किए गए है. एक डाक्टर को संस्पेंड किया गया. लेकिन मुनाफाख़ोरी की बड़ी मछलियां अभी भी सरकार में गलबहियां डाले घूम रही हैं.

स्वास्थ्य मंत्री जिसके होते हुए ये तीसरा आपराधिक कारनामा किया गया है, जो गरीब जिन्दगियों पर क़हर बन कर टूटा है. लेकिन मंत्री महोदय को सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि इनकी पार्टी की माता आरएसएस से भी अभयदान प्राप्त है. आज तक उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया है. न इस्तीफा और न ही कोई आपराधिक मुक़दमा/प्रकरण दर्ज हुआ.

यही नहीं इस जघन्य हत्याकांड के जिम्मेदार विभाग के सचिव, सीएमओ, मेडिकल कालेज के डीन या अन्य क्लास वन अधिकारियों पर कोई आंच आने जैसे हालात नहीं बनाए गए हैं. बड़ी मात्रा में आदिवासियों पर कहर ढ़हाकर, उनकी औरतों की कोख उजाड़ कर, उनके वंश को आगे बढ़ने से रोकने का ये प्रयास साबित करता हैं कि आदिवासी, दलित बहुल छग राज्य में रमन सिंह की सरकार राज्य से आदिवासियों का खात्मा करना चाहती है.

पिछले 14 बरसों में इस सरकार ने राज्य की पुलिस प्रशासन और फौजों के साथ मिलकर आदिवासियों का खुलकर जनसंहार किया है. उसमें विफल होने के बाद अब इनकी पैदाइश के केंद्र (औरतों) पर हमला करने का मंसूबा बना चुकी है.

जंगलों के अंदर इन औरतों के साथ जो कुछ किया गया/किया जा रहा है, उसे हटा कर भी देखें तो पिछले 3 बरसों में आदिवासी औरतों की कोख पर जारी सरकार का ये सीधा हमला है. इस जिंदा सबूत के बल पर छत्तीसगढ़ सरकार घोषित तौर पर आदिवासियों की “हत्यारी” है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक

  1. किसी भी सरकारी अस्पताल/शिविर में एक दिन में 30 से ज्यादा नसबंदी के आपरेशन नहीं किए जा सकते और वह भी दो अलग-अलग लेप्रोस्कोप से की जानी चाहिए.
  2. एक डाक्टर एक दिन में 10 से ज्यादा नसबंदी के आपरेशन नहीं कर सकता.

गौरतलब बात ये है कि आपरेशन करने वाले डाक्टर को उसकी तनख्वाह के अलावा 75 रू प्रति आपरेशन प्रोत्साहन राशि दी जाती है. बिलासपुर घटना में शामिल एक डाक्टर ने बताया कि उसने सिर्फ 83 आपरेशन ही किए है, जिसके उसे सिर्फ 6225 रू. ही मिलेंगे. वर्ना वो तो एक दिन में 300 आपरेशन कर सकता है. जिसके उसे 22500 रू अतिरिक्त मिलते.

देशभर में नसबंदी आपरेशन से औरतों की मौत चिंताजनक

गौर से देखें तो देशभर में पिछले एक दशक 2003 से 2012 तक करीब 1434 औरतों की मौत नसबंदी आपरेशन से पैदा हुई कई दिक्कतों की वजह से हुई है. 2009 में 247 औरतों की मौतें ऐसे आपरेशन से पैदा हुई दिक्कतों की वजह से हुई. 2010 के बाद 3 बरसों में ही 336 औरतों की मौत यही नसबंदी आपरेशन रहा है. इन आपरेशनों के दौरान बरती गई अमानवीय व आपराधिक लापरवाहियों के चलते पिछले एक दशक में 12 औरतों की हत्या (मौत) हर माह हुई है.

किसलिए किया गया है सीजीएमएससी का गठन?

2012 में गठित छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन का गठन ही इस मक़सद से किया गया था कि ज़रूरत के दवाओं की खरीदी केंद्रीय खरीदी की जाए, ताकि पूरे प्रदेश के लिए एक साथ दवाएं खरीदी जाएंगी. यह संस्था खरीदी से पहले दवाओं के गुणवत्ता की जांच भी करेगी और राज्य में सभी जगह संस्था प्रमुखों की जरूरत के मुताबिक सीजीएमएससी उन्हें सप्लाई करेगी.

इससे कमीशनखोरी और अमानक स्तरीय दवाओं से बचाव हो सकेगा. लेकिन इसका पालन खुद सरकारी महकमे और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं द्वारा नहीं किया गया.

 

नसबंदी से मौत पर हाईकोर्ट गंभीर, राज्य शासन से जवाब तलब

जस्टिस टीपी शर्मा, इंदरसिंह बावेजा की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद केंद्र, राज्य शासन व मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) को नोटिस जारी किया है. साथ ही राज्य शासन की तरफ से पैरवी कर रहे वकीलों को राज्य शासन द्वारा की गई इलाज की व्यवस्था, मौत की वजह, शासन रोकथाम क्यों नहीं कर पा रहा, इस पर 10 दिनों में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने इस मामले में सही तथ्य एकत्रित करने और कोर्ट को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए 2 वकील सलीम काजी और सुनीता जैन को न्यायमित्र भी नियुक्त किया है. ये दोनों न्याय मित्र पीडि़त महिलाओं के इलाज के लिए किए जा रहे प्रयास, उनको उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं के साथ अन्य पूरी जानकारी कोर्ट को देंगे. साथ ही वे शासन द्वारा दिए गए जवाब और रिपोर्ट की स्कू्रटनी भी करेंगे.

मामले की सुनवाई करते हुए डिविजन बेंच ने प्रदेश में लागातार बढ़ती ऐसी घटनाओं पर तल्ख टिप्पणी की. कोर्ट ने मोतियाबिंद आपरेशन के बाद कई लोगों के आंखों की रोशनी जाने के साथ ही कुछ की मौत हो जाने और गर्भाशय कांड का भी उल्लेख किया. कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की बदतर हालत और मरीजों की मौत पर चिंता भी जताई है.

 

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