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किस गणतंत्र की बात करते हैं आप?

Sankrityayan Rahul for BeyondHeadlines

तो किस गणतंत्र की बात करते हैं आप? शायद जो कल आपने राजपथ पर झांकिया देखी उसे न? तो आईये आपको उस राजपथ से अलग एक और झांकी दिखातें हैं अपने गणतंत्र की. उस गणतंत्र की जिसने कल अपना 66वां गणतंत्र दिवस मनाया है. मुझे मेरी खुद की बुराई करने में मजा नहीं आता, लेकिन क्या करें हालात ऐसे हैं कि हम और कुछ कर नहीं सकते.

जी जनाब! तो हम उस गणतंत्र के निवासी हैं जहां हमें अपने कॉलेज पर झण्डा खुद फहराना पड़ता है वो भी उस कॉलेज में जो पत्रकारिता का सर्वश्रेष्ठ संस्थान कहलाता है. जो पत्रकारिता के मानदण्ड पढ़ाता है. एक बार वो हमें रोकता हैं, लेकिन फिर न जाने किस डर से फहराने की अनुमति देता है.

हम उस गणतंत्र में रहते हैं, जहां लोगों की जिंदगियों से ज्यादा सरकारी कमाई की कीमत होती है. गणतंत्र दिवस की धूम और प्रशासनिक लापरवाही ने उन्नाव, आज़मगढ़ के कच्ची शराब का कांड भले भुला दिया हो, लेकिन ये कांड आपके तथाकथित ग्रॉस डोमेस्टिक हैप्पीनेस की थ्योरी पर ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट को हावी कर ही देता है. आप कितना भी हैप्पीनेस की बात करें.

हम उस गणतंत्र में रहते हैं जिसका न जाने कितने शहरों का एक हिस्सा वाशिंगटन डीसी लगता है और उन्हीं शहरों का दूसरा हिस्सा ब्रिटिश राज से भी गंदी मलिन बस्ती जैसा. हम केवल बातें करना जानते हैं. बड़ी बड़ी लफ्फाजियों की शिकार हमारी नीतियां आज केवल भ्रष्टाचार और काले धन का मुख्य स्रोत हो चुकी हैं.

आपको मेरी बातें नकारात्मक लग रहीं होंगी, लेकिन इन्हीं नकारात्मक बातों में आपका असल गणतंत्र छिपा है. जो आपके राजपथ और लालकिले से दूर देश की जीडीपी बढ़ाने के लिये जान देता है और सरकार उसे बदले में मौत…

मैं बात कर रहां हूं उन किसानों की जो देश के लिये अनाज उगाते हैं, लेकिन देश के लोगों ने कभी उनका शुक्रिया अदा नहीं किया.

गन्ना उत्पादन के मामले में कभी नम्बर एक की श्रेणी में आने वाले यूपी के किसान आज गन्ना बोते ही नहीं कि क्या पता कौन सी चीनी मिल बंद हो जाये और अगर बंद न भी हो तो क्या पता पर्ची से पेमेंट कब तक मिले. खेतों में गेहूं की बालियों के बजाय अब कंकरीट के घर बन रहे हैं जो किसान और किसानी दोनों के बेइंतहा बर्बाद करने की ओर अपना क़दम बढ़ा रहे हैं.

हाईस्पीड ट्रेन्स, बुलेट और मेट्रो में सफर करने वाला वो आम इंसान जिससे नेता सिवाय चुनाव के मौसम के कभी नहीं मिलते वो अब ऊब चुका है. आप राजपथ पर झांकी देख और दिखाकर भले राष्ट्र की इज्जत अमेरिका के सामने बढ़ा लें, लेकिन आपके मुल्क की इज्जत आधी आबादी आज भी खतरे में है. हम जिसे अपने घर की इज्जत मानतें हैं, उनके साथ आज भी बालात्कार होते हैं और हम चंद दिनों बाद उसे भूल जाते हैं.

कानून बदले, रवायतें बदली… लेकिन मुल्क की आधी आबादी की तक़दीर आज भी नहीं बदली. हम चांद और मंगल पर जा पहुंचे हैं. लेकिन अपने घर में खाने को दाना नहीं है. आपकी यूथ लिट्रेसी कहती है कि 80-89 प्रतिशत युवा साक्षर है लेकिन एक बार बड़े बंगलों से हटकर झुग्गियों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करिये तो पता चलता है कि आज भी दिल्ली उनके लिये पूरे बिहार की राजधानी है.

हम बड़ी-बड़ी बातों तक सीमित ही हैं. कितना अच्छा हो कि ये बातें केवल बातों तक नहीं जनता तक पहुंचे. गणतंत्र केवल राजपथ और लुटियन जोन तक नहीं बसता वो बसता है आपके ही बनाये रैनबसेरों में, गांव की पंगडंडियों पर और सड़को के किनारे पर. हां! मुझसे कुछ बातें छूट रहीं हैं, आप खुद और एनालिसिस करिये और सोचिये… सोचने के बाद फैसला करिये मुल्क और उसके गणतंत्र का…

कुछ काम करिये उनके लिये जो आपकी शाम की रोटी के लिये न जाने कितनी सर्द रातें खेतों गुजार देते हैं. कुछ करिये उनके लिये जो आपकी सुरक्षित जिंदगी के सियाचीन जैसी जगहों पर अपनी जिंदगी जी रहे हैं सिर्फ आपके लिये. तो आप भी किसी के लिये जीना शुरू करिये. अच्छा लगेगा….

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