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ज़रा सोचिए! अगर एक पति अपनी पत्नी को नोटिस भेजे तो क्या होगा?

BeyondHeadlines News Desk

लखनउ: आईपीएस पति द्वारा अधिवक्ता पत्नी को नोटिस को नोटिस भेजने का मामला सामने आया है. आइपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने सीजेएम कोर्ट, लखनऊ में दायर एक परिवाद में अपनी अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर, जो उनकी पत्नी भी हैं, को 08 जनवरी को कोर्ट में अनुपस्थित रहने के सम्बन्ध में नोटिस भेजा है.

नोटिस में उन्होंने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट और उसके अधीन बने बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया रूल्स में एक अधिवक्ता से यह अपेक्षित है कि यह अकारण सुनवाई से अनुपस्थित न हों, लेकिन डॉ. ठाकुर मात्र अधिवक्ताओं की हड़ताल के नाम पर कोर्ट में उपस्थित नहीं हुईं, जो एक अधिवक्ता से अपेक्षित आचरण का उल्लंघन है.

श्री ठाकुर ने इस सम्बन्ध में एक सप्ताह में स्पष्टीकरण देने को कहा, जिसपर डॉ. नूतन ठाकुर का कहना है कि जब वे न्यायालय परिसर पहुंची थीं तो सीजेएम न्यायालय सहित सभी कोर्ट रूम बंद थे और उनके गेट पर ताला लगा हुआ था, जिसके कारण उन्हें नहीं चाहते हुए भी अनुपस्थित होना पड़ा.

डॉ. नूतन ठाकूर ने इस संबंध में लिखित रूप अपना जवाब भी अपने पति आइपीएस अमिताभ ठाकुर को भेजा है, जिसकी कॉपी आप नीचे देख सकते हैं:

सेवा में,
श्री अमिताभ ठाकुर,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

विषय- परिवाद संख्या- 8930/2014 अमिताभ ठाकुर बनाम श्री आर एन सिंह, आईपीएस में दिनांक 08/01/2015 को मेरी अनुपस्थितिविषयक

महोदय,
कृपया अपने पत्र संख्या-AT/Complaint/48 दिनांक- 08/01/2015 का सन्दर्भ ग्रहण करें जिसके माध्यम से आपने मुझे परिवाद संख्या- 8930/2014 अमिताभ ठाकुर बनाम श्री आर एन सिंह, आईपीएस अंतर्गत धारा 500 आईपीसी में कल दिनांक 08/01/2015 को इस मुकदमे में मा० सीजेएम कोर्ट में उपस्थित नहीं होने के सम्बन्ध में आपत्ति प्रकट करते हुए इसे एडवोकेट्स एक्ट और उसके अधीन बनाए गए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया रूल्स का कथित उल्लंघन मानते हुए मुझसे इस सम्बन्ध में अपना स्पष्टीकरण/उत्तर देने को कहा था.

मैं इस सम्बन्ध में आपको बताना चाहूंगी कि यह सही है कि मैं कल दिनांक- 08/01/2015 को आपके मामले में उपस्थित होने के लिए मा० न्यायालय जाने के बाद भी मा० न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सकी थी पर मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगी कि ऐसा मैंने किसी तरह जानबूझ कर नहीं किया था.

दरअसल कल जब मैं लगभग 11 बजे मा० न्यायालय परिसर पहुंची थी तो मा० सीजेएम न्यायालय सहित सभी कोर्ट रूम बंद थे और उनके गेट पर ताला लगा हुआ था. अगल-बगल के भी सभी कक्ष बंद थे और वहां उपस्थित कुछ लोगों द्वारा मुझे बताया गया कि आज ये सभी न्यायालय कक्ष ऐसे ही बंद रहेंगे और बिलकुल नहीं खुलेंगे.

जाहिर है ऐसे में जब स्वयं सभी कोर्ट रूम ही बंद थे तो मैं आपके मुकदमे में उपस्थित नहीं हो सकती थी. अतः न चाहते हुए भी और एडवोकेट्स एक्ट और उसके अधीन बनाए गए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया रूल्स और समय-समय पर मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिवक्ताओं की उपस्थिति के सम्बन्ध में अनेकानेक केसों में निर्गत विभिन्न आदेशों की पूर्ण जानकारी होने के बाद भी मैं मौके पर मा० कोर्ट कक्ष बंद होने की व्यवहारिक स्थिति के कारण आपके मामले में उपस्थित नहीं हो सकी.

कृपया सूचित होवें.

पत्र संख्या-NT/Adv/07                                                                              भवदीया,
दिनांक- 09/01/2015
(डॉ नूतन ठाकुर)
अधिवक्ता,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

आईपीएस अमिताभ ठाकूर द्वारा अपने अधिवक्ता पत्नी को लिखे पत्र को यहां पढ़ सकते हैं: 

सेवा में,
डॉ नूतन ठाकुर,
अधिवक्ता,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

विषय- परिवाद संख्या- 8930/2014 अमिताभ ठाकुर बनाम श्री आर एन सिंह, आईपीएस में दिनांक 08/01/2015 को आपकी अनुपस्थितिविषयक

महोदया,

       निवेदन है कि मैंने परिवाद संख्या- 8930/2014 अमिताभ ठाकुर बनाम श्री आर एन सिंह, आईपीएस अंतर्गत धारा 500आईपीसी में दिनांक 15/12/2014 को वकालतनामा पर हस्ताक्षर कर आपको अपना अधिवक्ता नियुक्त किया था जिसमे आप उपरोक्त दिनांक को मा० सीजेएम कोर्ट में उपस्थित भी हुई थीं.

आज दिनांक 08/01/2015 को भी इस मुकदमे में तारीख लगी थी किन्तु मेरी जानकारी के अनुसार आप इस मुकदमे में उपस्थित नहीं हुईं जबकि आप जनपद न्यायालय गयी भी थीं.

आप अवगत हैं कि एक अधिवक्ता के लिए यह अनिवार्य रूप से अपेक्षित है कि वह प्रत्येक दशा में मुकदमे की परिवी हेतु मा० न्यायालय में उपस्थित हो. ऐसे में आप द्वारा इस मामले में बिना मुझे अवगत कराये उपस्थित नहीं होना प्रथमद्रष्टया एडवोकेट्स एक्ट और उसके अधीन बनाए गए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया रूल्स के अधीन आपसे एक अधिवक्ता के रूप में यह अपेक्षित है कि आप अपने मुवक्किल के रूप में मेरे हितों की रक्षा करें और इसके लिए मा० न्यायालय में आपकी उपस्थिति आवश्यक थी क्योंकि बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया रूल्स के पार्ट VI के चैप्टर- II (Standards of Professional Conduct and Etiquette-(Rules under Section 49 (1) (c) of the Act read with the Proviso thereto) के बिंदु 19 पर स्पष्ट रूप से अंकित है-“ An advocate shall not act on the instructions of any person other than his client or his authorised agent.”

यही बात मा० कलकत्ता हाई कोर्ट ने तारिणी मोहन बरारी (रे:[AIR 1923 Cal. 212]) में स्पष्ट किया था-“14. The Pleaders had duties and obligations to their clients in respect of the suits and matters, entrusted to them, which were pending in the Court of the learned Subordinate Judge. 15. There was a farther and equally important duty and obligation upon them, viz., to co-operate with the Court in the orderly and pure administration of justice. By the court which they adopted, the Pleaders violated and neglected their duties and obligations in both these respects.”  इस प्रकार इन प्लीडर रे: [AIR 1924 Rang 320] में मा० कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि एक अधिवक्ता को बिना मुवक्किल की अनुमति के कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं होना प्रोफेशनल कंडक्ट के खिलाफ है.

मुझे ज्ञात हुआ है कि आज मा० जनपद न्यायालय में अधिवक्तागण का स्ट्राइक था पर मा० सर्वोच्च न्यायालय ने इस सन्दर्भ में पांडुरंग दत्तात्रेय खांडेकर बनाम बार कौंसिल ऑफ़ महाराष्ट्र [1984 (2) SCC 556], ताहिल राम इस्सर्दास सदारंगानी तथा अन्य बनाम रामचंद इस्सर्दास सदारंगानी एवं एक अन्य [1993 Supp. (3) SCC 256], इन कामोन कॉज बनाम भारत सरकार एवं अन्य [1994 (5) SCC] सहित अनगनित केसों में समुचित निर्देश निर्गत करते हुए अधिवक्ताओं को किसी भी स्थिति में अपने केस में अनुपस्थित होने से पूरी तरह मना किया है.

मा० महाबीर प्रसाद सिंह बनाम जैक्स एविएशन प्राइवेट लिमिटेड [1999 (1) SCC 37],  रामोन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम सुभाष कपूर एवं अन्य  (2001 SCCC (Cri.) 3, AIR 200 SC 207), तथा एक्स-कैप्टेन हरीश उप्पल बनाम भारत सरकार (AIR 2003 SC 739) में मा० सर्वोच्च न्यायालय ने इसे और अधिक विस्तार देते हुए किसी भी दशा में अधिवक्ता द्वारा अपने मुवक्किल के मुकदमे में स्ट्राइक के नाम पर कोर्ट में अनुपस्थित होने से पूरी तरह प्रतिबंधित किया है.

उपरोक्त सभी तथ्यों के दृष्टिगत मैं आपको यह पत्र इस अनुरोध के साथ प्रेषित कर रहा हूँ कि कृपया इस पत्र के सन्दर्भ में मुझे यह अवगत कराने की कृपा करें कि आपने क्यों और किन कारणों से आज मा० सीजेएम कोर्ट में परिवाद संख्या- 8930/2014 में मेरे अधिवक्ता के रूप में अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज कराई?

यह भी निवेदन करूँगा कि यदि मुझे सात दिवस के अन्दर आपका स्पष्टीकरण/उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो मैं एडवोकेट्स एक्ट की धारा 35 के अंतर्गत आपके विरुद्ध अग्रिम कार्यवाही हेतु बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश से पत्राचार करने को बाध्य होऊंगा.

पत्र संख्या-AT/Complaint/48                                                                भवदीय,
दिनांक- 08/01/2015
(अमिताभ ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

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