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Reading: “आज़ादी को चली बयाने दीवानों की टोलियां…”
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BeyondHeadlines > Mango Man > “आज़ादी को चली बयाने दीवानों की टोलियां…”
Mango Man

“आज़ादी को चली बयाने दीवानों की टोलियां…”

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 22, 2015
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9 Min Read
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Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

ईश्वर की बनाई आंखें आज अपनी अनंत तक देख पाने की कुशलता पर शक कर रही थी. शुरुआत हुई आर.के. आश्रम मेट्रो से… मैं और मेरी साथी पवित्रा सिंह मेट्रो से बाहर निकले… कुछ युवाओं का झुण्ड हाथ में गिटार लिए खड़ा था.

सड़क के दूसरी ओर से कुछ झुग्गी के बच्चे हाथ में अरविन्द का पोस्टर लेकर “5 साल केजरीवाल” चिल्लाते हुए आते हैं. हमें लगा कि बस इतने ही लोग? फिर मंदिर मार्ग पूछते हुए हम आगे बढ़ते हैं. आगे एक तीव्र मोड़ है, जिसके आगे कुछ नहीं… धीरे-धीरे हम दोनों उस मोड़ की तरफ बढ़ते हैं. जैसे ही मोड़ के बायीं तरफ देखते हैं तो माहौल समझ आ जाता है.

सड़क के दाहिनी तरफ वाल्मीकि मंदिर है, जिसका द्वार कार्यकर्ताओं के हाथ में रखे झंडे और अरविन्द के बड़े-बड़े असली जैसे लगने वाले प्लास्टिक के पुतलों से ढक गया था. सड़क के बायीं ओर भी लोग गीत गा रहे थे… झूम रहे थे…

कुछ कार्यकर्त्ता मुस्तैदी से यातायात को सुचारू रूप से चलाने में मदद कर रहे थे. लोगों की अच्छी खासी भीड़ थी. फिर भी मन कह रहा था बस इतने ही लोग? हर तरफ “5 साल केजरीवाल” की धुन बज रही थी ,लोग थिरक रहे थे.

खैर, हम दोनों जैसे-तैसे मंदिर परिसर के भीतर घुसते हैं. जहां एक बड़ा सा मैदान है. जिसे पार करके सामने वाल्मीकि मंदिर है. पुरे मैदान में सफ़ेद टोपी नज़र आने लगी. फ़्लैश मॉब, और डांस करने वाले युवाओं ने माहौल बनाना शुरू कर दिया था. मैदान के दायीं तरफ लोग अपने घर के खिड़कियों से झांक कर ये नज़ारा देख रहे थे. उसी तरफ 3 ट्रक खड़े थे, जिसमें सबसे आगे मीडिया की ट्रक था. बीच में अरविन्द केजरीवाल और बाकी नेताओं के लिए ट्रक थी और आखिर में  वालंटियर्स की ट्रक…

मीडिया की ट्रक भर चुकी थी. मीडिया के रिपोर्टर्स और कुछ जाने माने हस्तियों से… हम मंदिर की ओर बढ़ते हैं तो सबसे पहले आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष नज़र आते हैं. हमें लगता है कि अब समय आ गया है कि हम भी मीडिया ट्रक पर सवार हो जाएं.

हम थोड़ी मेहनत के बाद ट्रक पर चढ़ने में कामयाब हो जाते हैं… ट्रक पर कई जाने माने लोग मिलते हैं. तीनों ट्रक पर “मस्तकों के झुण्ड” गीत बज रहे हैं. लोग देशभक्ति के नशे में डूबने लगते हैं… झूमने लगते हैं…

एक बात जो आम आदमी पार्टी के हर इवेंट में नज़र आती है. वो ये कि पार्टी और अरविन्द से परे देशभक्ति का माहौल बना दिया जाता है. लोगों के मन के गुस्से को उनकी अभिव्यक्ति की सीमा तक लाया जाता है. लोग अपनी परेशानियों को देशभक्ति के जूनून में धो देना चाहते हैं.

इन सबके बीच लोग ढोल नगाड़े बजा-बजा कर अपनी अपनी टोली में झूम रहे हैं. माएं बच्चों को गोद में लेकर टोपी पहन कर हाथ में झाड़ू लेकर सड़कों पर उतर चुकीं हैं. बुजुर्ग भी झूम रहे हैं… झरोखे से देख रहे वहां निवासी भी हतप्रभ हैं.

मीडिया वाले भीड़ से बचने के लिए स्थानीय लोगों के घरों में कैमरे लगा लिए हैं. महिलाएं फूल की बारिश करने को तैयार हैं. तभी “मेरा रंग दे बसंती चोला…” गीत बज उठता है और परिसर के अंदर मौजूद सारी भीड़ जैसे पागल हो उठती है. लोग तिरंगा और अरविन्द के प्लास्टिक से बने पुतलों को हाथ में ऊपर उठाकर नाचने लगते हैं.

इसी बीच मंदिर के गेट पर लोग तेजी से भागते नज़र आते हैं. नारे लगने शुरू हो जाते हैं. गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं. मीडिया के लोग तैयार हो जाते हैं. भीड़ एक तरफ टकटकी लगाए देखने लगती है… इसी बीच नीली स्वेटर पहने अरविन्द पिछली ट्रक पर दिखाई पड़ते है…

चारों तरफ लोग हाथ उठाकर अभिवादन करते हैं. जवाब में अरविन्द भी दोनों हाथ उठाकर सबका अभिनन्दन करते हैं. भीड़ आगे बढ़ती है. ट्रक आगे बढ़ता है… महिलाएं अपने घरों से फूल बरसाने लगती हैं. मीडिया के सभी कैमरे सध जाते हैं. हलचल तेज़ हो जाती है. नारों में जोश आ जाता है और कारवां आगे बढ़ने लगता है.

ट्रक रेंगते हुए मंदिर परिसर को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ता है… शहनाज़ हिन्दुस्तानी अपने चिर परिचित अंदाज़ में नारे लगाकर लोगों के खून में उबाल भरते हैं… “5 साल केजरीवाल”

जैसे ही गाडी मंदिर परिसर से बाहर सड़क पर आती है. वैसे ही ये भीड़ जनसैलाब का रूप ले लेती है. चारों तरफ सफ़ेद टोपी, हर जगह अरविन्द केजरीवाल. गाडी सड़क पर आती है और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगती है.

लोग देशभक्ति के गीतों पर झूम रहे हैं. युवाओं की फ़्लैश मॉब की टोली आने वाले मोड़ पर जाकर पहले से नाचने लगती है. और वहां भीड़ इकठ्ठा हो जाती है फिर फ़्लैश मॉब अगले मोड़ पर चली जाती है. जनसैलाब की अगुवाई में सड़क के दोनों तरफ लोग हाथ हिलाकर नतमस्तक होते हैं.

सड़कें जाम हो गयी हैं… वक़्त ठहर सा गया है… लोग की अब गिनती नहीं हो सकती. कैमरा जितना ज़ूम कर के देख सकता है, उससे 10 गुना ज्यादा दूरी तक सफ़ेद टोपी की चादर बिछ चुकी है.

फिर एक पत्रकार कहता है कि अरे! रंग दे बसंती चोला… चलवाओ …. और वो गीत बजा दिया जाता है…. फिर क्या था बवाल मचना ही था… लोग सुर में सुर मिला कर गाने लगते हैं “आज़ादी को चली बयाने दीवानों की टोलियां…” फिर “आरम्भ है प्रचण्ड है ये मस्तकों के झुण्ड…” को धून पर लोगों के खून में फिर उबाल आता है. अरविन्द की गाडी पर अब भगवंत मान, मनीष सिसोदिया, आशुतोष, संजय सिंह सब आ चुके हैं. सब जनता का अभिवादन कर रहे हैं.

करीब 2 किलोमीटर के बाद हमारी सबसे आगे और अरविन्द के साथ चल रही गाड़ी खराब हो जाती है. लोग इस परेशानी को बखूबी समझ जाते हैं. वो जानते हैं कि समय से नॉमिनेशन होना अत्यधिक ज़रुरी है. फिर क्या था लोग ट्रक को धक्का देना शुरू करते हैं. कई टन की गाडी को लोग धक्का देकर 4 किलोमीटर तक ले जाते हैं… ट्रक पर खड़े किसी शख्स को पता तक नहीं चल पाता कि गाडी इंजन से नहीं, लोगों के जुनूनी उत्साह से चल रही है.

हर मोड़ से मुड़ते हुए जब जनसैलाब नज़र आता है तो आँखों को यकीन नहीं होता. हर शख्स हतप्रभ है. क्षितिज जैसे सफ़ेद टोपियों में खो सा गया है. ईश्वर की बनाई आँखें आज अपनी अनंत तक देख पाने की कुशलता पर शक कर रही थी.

गोल डाकखाने का गोल चक्कर सफ़ेद रंग से पट गया है. तभी अरविन्द की आवाज़ सुनाई देती है… “भारत माता की…” फिर गगनभेदी आवाज़ आती है “जय…” “वंदे मातरम…”

“दोस्तों समय खत्म हो गया है. पुलिस वाले कह रहे हैं कि इससे ज्यादा समय नहीं दे सकते… हम पुलिस की इज़्ज़त करते हैं. उनका सम्मान करते हैं. हम कानून का पालन करेंगे… हम अपना शक्ति प्रदर्शन यहीं खत्म करेंगे… आपने अपनी ताक़त दिखा दी है… सन्देश जा चुका है… अब आप लोग अपनी विधानसभा में जाकर काम पर लग जाइए… मैं कल जाकर अकेले नॉमिनेशन भर दूंगा. उसकी चिंता मत करना आप.”

7 किलोमीटर तक फैला जनसैलाब उछल-उछल कर नारे लगाता है और फिर भीड़ आधे घंटे में छँट जाती है.

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