बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

भारत और ओबामा का दौरा…

Abhay kumar Singh for BeyondHeadlines

करीब 55 वर्ष पहले दिसम्बर 1959 में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर भारत आए थे. उन्होने कहा था कि भारत के साथ रिश्ते अमेरिका के लिए सबसे ऊपर है. लेकिन पाकिस्तान अमेरिका के दिल में है.

आज फिर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत पधार चुके हैं और परिस्थितियां उस समय से बिल्कुल विपरित हैं. आज जहां भारत एक महाशक्ति के रुप में उभर रहा है, वहीं अमेरिका ने पाकिस्तान को वैश्विक आंतकवाद के लिए परोक्ष रुप से जिम्मेदार भी बताया है.

ओबामा का यह दौरा भले ही भारतीय गणतंत्र दिवस के तत्वाधान हो, लेकिन पूरा विश्व इसे भारत-अमेरिका रिश्तों के मिल के पत्थर के तौर पर देख रहा है. और इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति और आर्थिक सुधार की राजनीति ही वह सेतु है, जो इन दोनों देश के रिश्ते के बीच आई गर्माहट की उत्तरदायी है.

गौरतलब है कि ओबामा के आगमन से पाकिस्तान में हलचल साफ दिखाई पड़ रही है. सरहदों पर चल रही छिटपुट गोलीबारी इसी खींज का परिणाम हैं.

अमेरिका के लिए पाकिस्तान अब सिरदर्द बनता जा रहा है. विभिन्न आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में बैठकर समय-समय पर अमेरिका विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं. चीन को पाकिस्तान का खुला समर्थन भी चिंता का सबब है.

जगजाहिर है कि अमेरिका और चीन आर्थिक क्षेत्र में लगातार प्रतिस्पर्धा के दौर में हैं. ओबामा का भारत दौरा इसी प्रतिस्पर्धा की उपज भी हो सकती है. अमेरिका की पूरी अर्थव्यवस्था बाजार आधारित है, और भारत रुस से अपनी पुरानी दोस्ती को ताक पर रखकर अमेरिकी कम्पनियों को बाजार सौंपने के लिए तत्पर दिख रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ योजना अमेरिका के लिए एक आकर्षक अवसर की तरह है.

सस्ते श्रमिकों एवं उन्नत प्रौद्योगिकी पेशावर होने के कारण भारत हमेशा से निवेशकों के लिए पसंदीदा स्थान रहा है, और अमेरिका ऐसे बाजार का मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहेगा. चाहे इसके लिए उसे पाकिस्तान से अपने रिश्ते की तिलांजली ही क्यूं ना देनी पड़े.

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि कहीं अमेरिका भारत को चीन के लिए अपने हथियार के तौर पर तो नहीं प्रयोग करना चाहता है. विश्व अर्थ क्षेत्र में चीन के बढ़ते धमक और दक्षिण एशिया में चीन के हस्तक्षेप को अमेरिका अपने शान के खिलाफ समझता है. भारत का प्रयोग करके अमेरिका, चीन पर आंशिक दबाव बना सकता है. दूसरी ओर भारत पर दबाव बनाकर यदि वह परमाणु दायित्व में ढील लेता है तो अमेरिकी कम्पनियां आसानी से भारत में अपने परमाणु रिएक्टर स्थापित कर पाएंगी.

भारत के भी अपने स्वार्थ इस दौरे से जुड़े हुए हैं. कृषि और सूचना प्रौद्दोगिकी के क्षेत्र में भारत, अमेरिका के सहयोग की इच्छा रखता है. साथ ही प्रवासी भारतीयों के सुरक्षा का मुद्दा भी अहम है. अमेरिका के तरफ से सुरक्षा परिषद में भारत को स्थाई सदस्य बनाए जाने के लिए दिया गया समर्थन वाला बयान भी भारत के उम्मीदों को पर दे रहा है.

भारतीय किसानों के लिए सबसे अहम है खाद्य सुरक्षा के लिए दोनों देशों के बीच सहमति बना पाना, ओबामा के वर्तमान दौरे में भले ही खाद्द सुरक्षा पर कोई बङा फैसला न हो पाएं. लेकिन डब्ल्यूटीओ में चल रहा मतभेद दूर हो सकता है.

अमेरिका और भारत के रिश्ते में आए इस सकारात्मक परिवर्तन को सावधानी से भी लेने की आवश्यकता है, जिससे समझौते और बातचीत के इस दौर में भारत पिछलग्गु की भूमिका ना निभाकर एक सहयोगी की भूमिका में दिखाई पड़े.

भारत को अमेरिका के पूर्व की विदेश नीति को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि अमेरिका अपना हर क़दम बाजार को ध्यान में रखकर ही उठाता है. चाहे वो अरब देशों का मामला हो चाहे पाकिस्तान के साथ रिश्ते हो.

भारत सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि कहीं आर्थिक विकास की लालसा में देश पूर्ण पूंजीवाद की तरफ ना अग्रसर हो जाए, जहाँ रिश्ते और समाज से ज्यादा पैसे को अहमियत दी जाती है।

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]