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क्या भ्रष्टाचार ख़त्म होने से मज़दूरों का शोषण ख़त्म हो जायेगा?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 12, 2015
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7 Min Read
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Mazdoor Bigul Editorial Desk

केजरीवाल सरकार अगर सारा भ्रष्टाचार ख़त्म कर भी दे, तो इससे मज़दूर की लूट ख़त्म नहीं होती. अगर पूँजीपति और मालिक एकदम संविधान और श्रम कानूनों के अनुसार भी चले तो एक मज़दूर को कितनी मज़दूरी मिल जायेगी? अगर दिल्ली राज्य में न्यूनतम मज़दूरी के कानून को पूर्णतः लागू भी कर दिया जाय तो एक मज़दूर को ज़्यादा से ज़्यादा 10-11 हज़ार रुपये तक ही मिलेंगे. ऐसे में, हम मज़दूर क्या खुशहाल हो जायेंगे? वह भी दिल्ली में जहाँ ज़िन्दगी जीना इतना महँगा है कि दो जून की रोटी भी मुश्किल से कमायी जाती है? 

वैसे भी केजरीवाल श्रम कानूनों के उल्लंघन के मसले को कभी नहीं उठाते, हालाँकि यह सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है क्योंकि दिल्ली के 60 लाख से भी ज़्यादा मज़दूरों के लिए यह सबसे बड़ा मसला है. यह वह भ्रष्टाचार है कि जिससे कि दिल्ली की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा प्रभावित होता है. लेकिन केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ इसके बारे में चुप्पी साधे रहती है. इसका कारण यह है कि ‘आप’ के समर्थकों और नेताओं तक का एक बड़ा हिस्सा छोटे और मँझोले मालिकों, ठेकेदारों, व्यापारियों, प्रापर्टी डीलरों और दुकानदारों से आता है. पिछली ‘आप’ सरकार का श्रम मन्त्री गिरीश सोनी स्वयं एक कारखाना-मालिक था! इसी से पता चलता है कि मज़दूरों के मुद्दों पर ‘आप’ का क्या रुख़ है.

‘आम आदमी पार्टी’ की छोटे कारखाना मालिकों, ठेकेदारों, दलालों और दुकानदारों से यारी

केजरीवाल ने हाल ही एक टीवी इण्टरव्यू में माना है कि अपनी पिछली 49 दिनों की सरकार के दौरान उन्होंने टैक्स चोरी करने वाली भ्रष्टाचारी दुकानदारों और व्यापारियों पर छापा मारने से सरकारी कर विभाग को रोका था. उनका तर्क यह था कि ये सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी कर चोरी करने वाले दुकानदारों से रिश्वत लेते थे. यानी कि सरकारी विभाग के भ्रष्टाचार और व्यापारियों के भ्रष्टाचार में केजरीवाल ने केवल सरकारी विभाग और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार को निशाना बनाया और व्यापारियों के भ्रष्टाचार को छोड़ दिया या फिर बचाया. यही केजरीवाल की पूरी नीति है. वह केवल सरकारी अमलों और नेताओं के भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हैं और वह भी वह भ्रष्टाचार जिससे दुकानदारों, पूँजीपतियों आदि को नुकसान होता है. इसीलिए केजरीवाल ने कहा था कि वह बनिया जाति से आते हैं और बनियों यानी कि व्यापारियों का दुख-दर्द जानते हैं! केजरीवाल ने विशेष तौर पर छोटे मालिकों, उद्यमियों और दुकानदारों को भरोसा दिलाया कि उन्हें ‘आप’ की सरकार से डरने की ज़रूरत नहीं है! उन्हें तो सरकारी विभाग के भ्रष्टाचार-रोधी छापों से मुक्ति मिलेगी!

साथ ही, केजरीवाल ने पूँजीपतियों से वायदा किया है कि वह दिल्ली में धन्धा लगाने और चलाने को और आसान बना देंगे. कैसे?

आपको पता होगा कि कोई भी कारखाना या दुकान लगाने से पहले पूँजीपतियों को तमाम सरकारी जाँचों से गुज़रना पड़ता है, जैसे पर्यावरण-सम्बन्धी जाँच, श्रम कानून सम्बन्धी जाँच, कर-सम्बन्धी जाँच आदि. केजरीवाल ने वायदा किया है कि इन सभी जाँचों (इंस्पेक्शनों) से पूँजीपतियों को छुटकारा मिलेगा! लेकिन मज़दूरों को श्रम कानूनों से मिलने वाले अधिकार सुनिश्चित किये जायेंगे, श्रम विभाग में लेबर इंस्पेक्टरों और फैक्टरी इंस्पेक्टरों की संख्या बढ़ायी जायेगी, श्रम कानूनों को लागू करने को सुनिश्चित किया जायेगा, ऐसी माँगों पर केजरीवाल कोई ठोस वायदा नहीं करते हैं. इसी से पता चलता है कि केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ मज़दूरों के साथ वोट के लिए धोखा कर रही है, जबकि उसका असली मक़सद है दिल्ली के पूँजीपतियों और विशेष तौर पर छोटे और मँझोले पूँजीपतियों की सेवा करना.

ठेका मज़दूरी ख़त्म करने वायदे से पिछली बार क्यों मुकर गयी थी केजरीवाल सरकार और इस बार मज़दूरों को धोखा देने की उसकी रणनीति क्या है?

यह सच है कि केजरीवाल ने पिछले चुनावों में ठेका प्रथा का उन्मूलन करने का वायदा किया था. लेकिन 49 दिनों के दौरान केजरीवाल सरकार इस वायदे से मुकर गयी थी. उसके श्रम मन्त्री गिरीश सोनी ने 6 फरवरी को हज़ारों मज़दूरों के एक प्रदर्शन के सामने खुलकर यह बात कही थी कि वह ठेका प्रथा नहीं समाप्त कर सकते क्योंकि उन्हें मालिकों, प्रबन्धन और ठेकेदारों के हितों को भी देखना है!

इस बार ठेका प्रथा उन्मूलन की वायदा ‘आम आदमी पार्टी’ ने अपने घोषणापत्र में तो किया है, लेकिन इस पर ज़्यादा बल नहीं दिया गया है. इसका कारण यह है कि पिछली 49 दिनों की सरकार के दौरान केजरीवाल सरकार को दिल्ली के ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों ने बार-बार घेरा था. डीटीसी के ठेकाकर्मियों से लेकर दिल्ली मेट्रो रेल, दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक इलाकों के ठेका मज़दूरों, ठेके पर काम करने वाले होमगार्डों, शिक्षकों आदि ने केजरीवाल सरकार को बार-बार घेरकर इस वायदे की याद दिलायी थी. 6 फरवरी का प्रदर्शन इस कड़ी में आख़िरी बड़ा प्रदर्शन था जिसके एक हफ्ते बाद ही केजरीवाल गद्दी छोड़कर भाग खड़े हुए थे. उन्हें भी समझ में आ गया था कि इस माँग को वह पूरा नहीं कर सकते क्योंकि फिर दिल्ली के छोटे मालिक, व्यापारी, ठेकेदार आदि ‘आम आदमी पार्टी’ से नाराज़ हो जायेंगे. फिर ‘आम आदमी पार्टी’ को चन्दा कौन देगा? फिर ‘आम आदमी पार्टी’ के वे तमाम नेता कहाँ जायेंगे जो खुद कारखाना-मालिक, ठेकेदार या दुकानदार हैं?

इस बार केजरीवाल सरकार ने एक बदलाव किया है. उसने पिछली बार की तरह यह नहीं कहा है कि वह छह महीनों में आधे वायदों को पूरा कर देगी. इस बार केजरीवाल सरकार ने कहा है कि ये वायदे 5 साल में पूरे किये जायेंगे. उसकी रणनीति यह है कि शुरुआती कुछ महीने कुछ प्रतीकात्मक माँगों को पूरा करके, मध्यवर्ग को खुश करके, और भ्रष्टाचार आदि पर दिखावटी हो-हल्ला मचाकर काट दिये जायें. मज़दूरों को आश्वासन दे-देकर इन्तज़ार कराया जाय और उनके इस वायदे को भूलने का इन्तज़ार किया जाय. यानी, केजरीवाल सरकार इस बार उच्च मध्यवर्ग और मँझोले मध्यवर्ग से की गयी कुछ प्रतीकात्मक माँगों को पहले पूरा करेगी और मज़दूरों को ठेंगा दिखाते हुए 5 साल बिता देगी. यही उनकी योजना है.

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