बिजली के बिल आधे करने के बारे में भी केजरीवाल सरकार इस बार दूसरी भाषा में बात कर रही है, जिस पर किसी का ध्यान ठीक तरीके से नहीं गया है. वह कह रही है कि बिजली कम्पनियों का ऑडिट कराये जाने तक सरकार अपने ख़जाने से सब्सिडी देकर बिजली के बिल आधे करेगी और ऑडिट का नतीजा आने के बाद बिजली के बिल तय किये जायेंगे.
पिछली बार भी जब सब्सिडी देना मुश्किल हो गया था तो केजरीवाल सरकार ने यह तर्क दिया था. लेकिन पिछली बार चुनावों से पहले केजरीवाल ने यह नहीं कहा था कि बिजली के बिल केवल तब तक आधे रहेंगे जब तक कि ऑडिट नहीं हो जाता. यह बात 49 दिनों की सरकार के दौरान उन्होंने कही थी, जब उन्हें यह समझ में आ गया था कि अनन्त काल तक सैंकड़ों करोड़ रुपयों की सब्सिडी नहीं दी जा सकती है.
ख़ैर, यह ऑडिट ‘कैग’ नामक एक सरकारी संस्था करती है. अब तक के इतिहास में इस संस्था ने कोई ऐसा ऑडिट नहीं किया है जो कि बड़ी कम्पनियों के सीधे ख़िलाफ़ जाये. दिल्ली में बिजली पैदा नहीं होती बल्कि उसे बाहर से ख़रीदना पड़ता है. इस बिजली के वितरण का कार्य पहले सरकारी विभाग ‘दिल्ली विद्युत बोर्ड’ करता था. फिर इसे दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में टाटा की कम्पनी एनडीपीएल और अम्बानी की कम्पनी बीएसईएस को सौंप दिया गया.
‘कैग’ के ऑडिट में स्पष्ट हो जायेगा कि इन कम्पनियों को मुनाफ़ा कमाते हुए यदि बिजली का वितरण करना है तो बिजली के बिल आधे नहीं किये जा सकते. और फिर केजरीवाल सरकार बिजली के बिलों में मामूली-सी कटौती करके हाथ खड़े कर देगी और कहेगी कि ‘जब ऑडिट के नतीजे में यह सिद्ध हो गया है कि बिजली के बिलों में ज़्यादा कटौती नहीं की जा सकती, तो हम क्या कर सकते हैं.’
ऐसा भी हो सकता है कि बिलों में कोई कटौती न की जाय! बिजली के बिलों में कोई ख़ास कटौती तभी हो सकती है जबकि बिजली वितरण का निजीकरण समाप्त कर दिया जाय. पिछली बार केजरीवाल ने संकेत दिये थे कि अगर कोई समाधान नहीं बचेगा तो निजीकरण समाप्त कर दिया जायेगा. लेकिन इस बार वह कह रहे हैं कि देश में बहुतेरी कम्पनियाँ हैं, उनमें से किसी और को बिजली वितरण का ठेका दे दिया जायेगा! निश्चित तौर पर, कोई भी कम्पनी मुनाफ़े के लिए ठेका लेगी, दिल्ली की जनता को सस्ती बिजली देने के लिए नहीं और कितनी भी प्रतियोगिता हो, निजीकरण के तहत बिजली के बिल एक स्तर से नीचे नहीं आयेंगे.
निजीकरण के तहत बिजली के बिल हमेशा के लिए आधे कर दिये जायें यह तो सम्भव ही नहीं है क्योंकि केजरीवाल सरकार अनन्तकाल तक सरकारी ख़ज़ाने से सब्सिडी नहीं दे सकती है. ऐसे में, सरकार के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे भी नहीं बचेंगे! यही बात पानी को मुफ्त करने पर भी लागू होती है. लम्बे समय तक ऐसा कर पाना पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे में रहते हुए बेहद मुश्किल है.
केजरीवाल सरकार ने इस बार झुग्गीवासियों से एक बार फिर से वायदा किया है कि उन्हें उनकी झुग्गी के स्थान पर ही पक्के मकान दिये जायेंगे. यह भी एक हवा-हवाई वायदा है और दिल्ली के झुग्गीवासी पाँच साल तक इसका इन्तज़ार ही करते रह जायेंगे. इसका कारण यह है कि तमाम झुग्गियाँ रेलवे व अन्य कई केन्द्रीय विभागों के स्थान पर बनी हैं और उसी जगह पर मालिकाने के साथ पक्के मकान देने का कार्य घुमावदार नौकरशाहाना पेच में ही फँसकर रह जायेगा.
इसी प्रकार के अन्य कई ग़रीबों को लुभाने वाले झूठे वायदे करके केजरीवाल सरकार इस बार भारी बहुमत के साथ सत्ता में आयी है.