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Reading: केजरीवाल की अगुवाई में ‘आप’ की ज़बर्दस्त जीत के निहितार्थ
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केजरीवाल की अगुवाई में ‘आप’ की ज़बर्दस्त जीत के निहितार्थ

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 12, 2015 2 Views
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8 Min Read
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Mazdoor Bigul Editorial Desk

पहली बात- कांग्रेस और भाजपा द्वारा खुले तौर पर अमीरपरस्त और पूँजीपरस्त नीतियों को लागू किये जाने के ख़िलाफ़ जनता का पुराना असन्तोष खुलकर निकला है. हाल ही में भाजपा सरकार द्वारा श्रम कानूनों को बेअसर करने की शुरुआत, भूमि अधिग्रहण कानून द्वारा किसानों की इच्छा के विपरीत ज़मीन अधिग्रहण का प्रावधान करना, रेलवे का भाड़ा बढ़ाया जाना, विश्व बाज़ार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट के अनुसार पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में कमी न करना और महँगाई पर नियन्त्रण न लगा पाने के चलते मोदी सरकार विशेष तौर पर मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता के बीच अलोकप्रिय होती जा रही है, हालांकि इस अलोकप्रियता के देशव्यापी बनने में अभी कुछ समय है, कांग्रेस ने अपने कुल पाँच दशक के राज में जनता को ग़रीबी, महँगाई, अन्याय और भ्रष्टाचार के अलावा कुछ ख़ास नहीं दिया; जनता कहीं न कहीं कांग्रेस से ऊबी हुई भी थी; ऐसे में, जनता ने इन दोनों पार्टियों के विरुद्ध जमकर अपना गुस्सा और असन्तोष इन चुनावों में अभिव्यक्त किया है.

दूसरी बात- जनता के भीतर पहले भी लम्बे समय से यह गुस्सा और असन्तोष पनप रहा था, लेकिन पूँजीवादी चुनावी राजनीति के भीतर उसे कोई विकल्प नहीं दिख रहा था. पिछले तीन दशकों में सपा, बसपा, जद (यू), आदि जैसे तमाम दलों की भी कलई खुल चुकी है. ऐसे में, ‘आम आदमी पार्टी’ सदाचार, ईमानदारी और पारदर्शिता की बात करते हुए लोगों के बीच आयी. लोगों को उसने भ्रष्टाचार-मुक्त दिल्ली और देश का सपना दिखलाया. उसने जनता को बतलाया कि हर समस्या के मूल में भ्रष्टाचार है, चाहे वह शोषण हो, ग़रीबी हो या फिर बेरोज़गारी. उनके अनुसार देश की व्यवस्था में और पूँजीवाद में कोई बुराई नहीं है. बस दिक्कत यह है कि अगर सभी सरकारी नौकर ईमानदारी हो जायें, सभी पूँजीपति ईमानदारी से मुनाफ़ा कमायें तो सबकुछ सुधर जायेगा! केजरीवाल के अनुसार समस्या केवल नीयत है. फिलहाल जो लोग सत्ता में हैं, उनकी नीयत ख़राब है और ‘आम आदमी पार्टी’ अच्छी नीयत वाले लोगों की पार्टी है. अगर वह सत्ता में आ जाये तो भारत की और दिल्ली की सभी समस्याएँ देर हो जायेंगी, लोग खुशहाल हो जायेंगे, केजरीवाल के शब्दों में ‘ग़रीब और अमीर दोनों दिल्ली पर राज करेंगे!’ अव्यवस्था, ग़रीबी, बेरोज़गारी और महँगाई से त्रस्त आम मेहनतकश जनता इस कदर नाराज़ है, इस क़दर थकी हुई है, इस कदर श्रान्त और क्लान्त है और विकल्पहीनता से इस कदर परेशान है कि उसे केजरीवाल और ‘आप’ की लोकलुभावन बातें लुभा रही हैं. बल्कि कह सकते हैं कि जनता ने विकल्पहीनता और असन्तोष में अपने आप को लुभा लेने की इजाज़त केजरीवाल और ‘आप’ को दी है. इसका एक कारण जनता के भीतर कांग्रेस और भाजपा की खुली अमीरपरस्ती के विरुद्ध वर्ग असन्तोष भी है. वह ‘आम आदमी पार्टी’ के दावों को लेकर इतनी आश्वस्त नहीं है, जितनी कि दो प्रमुख पूँजीवादी दलों से नाराज़ है. ‘आम आदमी पार्टी’ की ऊपर से ग़रीब के पक्ष में दिखने वाली जुमलेबाज़ी ने काफ़ी हद तक आम ग़रीब जनता के गुस्से का कुशलता से इस्तेमाल किया है.

तीसरी बात- जनता के एक अच्छे-ख़ासे हिस्से में ‘आम आदमी पार्टी’ को लेकर एक विभ्रम भी बना हुआ है. इसका एक कारण यह भी है कि पिछली बार ‘आप’ को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, जिसका बहाना बनाकर उसे अपने असम्भव वायदों से भागने का अवसर मिल गया था. सभी जानते हैं कि केजरीवाल के पिछली बार 49 दिनों के बाद भागने के पीछे जो असली वजह थी, वह जनलोकपाल बिल को लेकर हुआ विवाद नहीं था, बल्कि दिल्ली के 60 लाख ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों का स्थायी करने के वायदे को पूरा करने का दबाव था। लेकिन अपनी ज़िन्दगी की जद्दोजहद में लगे मेहनतकश लोग जल्दी भूल भी जाते हैं और जल्दी माफ़ भी कर देते हैं. ख़ास तौर पर तब जबकि कोई अन्य विकल्प मौजूद न हो! इसके अलावा, जनता के एक हिस्से को भी यह लगता है कि कोई और बेहतर विकल्प नहीं है इसलिए एक बार केजरीवाल सरकार को ही पूरा बहुमत देकर मौका दिया जाना चाहिए. वास्तव में, केजरीवाल से जुड़े विभ्रम के टूटने के लिए यह ज़रूरी भी है कि एक बार दिल्ली की मेहनतकश जनता के दिल में अधूरी रह गयी कसर ढंग से निकल जाये.

चौथी बात- केजरीवाल की ज़बर्दस्त जीत ने यह दिखलाया है कि पूँजीवादी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के संकट और अन्तरविरोध जब-जब एक हद से ज़्यादा बढ़ते हैं तो किसी न किसी श्रीमान् सुथरे का उदय होता है, जो कि (1) गर्म से गर्म जुमलों का इस्तेमाल कर जनता के गुस्से को अभिव्यक्ति देता है और इस प्रकार उसे निकालता है; (2) जो जनता के दुख-दर्द का एक काल्पनिक कारण जनता के सामने पेश करता है, जैसे कि भ्रष्टाचार और नीयत आदि जैसे कारक; (3) जो वर्गों के संघर्ष को बार-बार नकारता है और वर्ग समन्वय की बातें करता है, जैसे कि केजरीवाल ने अमीरों और ग़रीबों के बँटवारे को ही नकार दिया है और बार-बार केवल सदाचारी और भ्रष्टाचारी के बँटवारे पर बल दिया है. केजरीवाल और ‘आम आदमी पार्टी’ इस समय पूँजीवादी व्यवस्था की ज़रूरत हैं. वे पूँजीवादी समाज और व्यवस्था के असमाधेय अन्तरविरोधों के वर्ग चरित्र को छिपाने का काम करते हैं और वर्ग संघर्ष की चेतना को कुन्द करने का कार्य करते हैं. यही कार्य एक समय में भारत की पूँजीवादी राजनीति के इतिहास में जेपी आन्दोलन ने निभायी थी. आज एक दूसरे रूप में भारतीय पूँजीवादी राजनीति और अर्थव्यवस्था भयंकर संकट का शिकार है. उसका एक तानाशाहाना और फासीवादी समाधान नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की साम्प्रदायिक फासीवादी सरकार पेश कर रही है, तो वहीं एक दूसरा समाधान ‘आम आदमी पार्टी’ और अरविन्द केजरीवाल पेश कर रहे हैं. कहने की आवश्यकता नहीं है कि केजरीवाल की लहर उनके अपने वायदों से मुकरने साथ किनारे लगती जायेगी और आज जो लोग पूँजीवादी व्यवस्था की सौग़ातों से तंग आकर प्रतिक्रिया में केजरीवाल के पीछे गये हैं, उनमें से कई पहले से ज़्यादा प्रतिक्रिया में आकर भाजपा और संघ परिवार जैसी धुर दक्षिणपंथी, फासीवादी ताक़तों के समर्थन में जायेंगे जो कि मज़दूर वर्ग के सबसे बड़े दुश्मन हैं.

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