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कार का चालान किरण बेदी ने नहीं, निर्मल सिंह घुम्मन ने काटा था!

BeyondHeadlines News Desk

जबसे भाजपा ने दिल्ली से सीएम के तौर पर किरण बेदी के नाम का ऐलान किया है, तब से सोशल मीडिया ने इस बात का प्रचार व प्रसार काफी ज़ोर-शोर से किया जा रहा है कि किरण बेदी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चालान काट चुकी हैं. बल्कि कई अखबारों ने इसकी स्टोरी भी लिखी है, जिसका शीर्षक था –पीएम इंदिरा गांधी का चालान काट चुकीं बेदी, केजरीवाल का पत्ता काटने के लिए तैयार…

मीडिया ने तो यहां तक लिखा है कि –किरण बेदी सबसे ज्यादा सुर्खियों में उस समय आईं जब वह दिल्ली की ट्रैफिक कमिश्नर रहते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चालान काट दिया था. किरण बेदी अब बीजेपी की सीएम उम्मीदवार है. इससे ऐसा माना जा रहा है कि किरण अब आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का भी पत्ता काट देंगी…

खुद किरण बेदी ने भी इस घटना का जिक्र अपनी पुस्तक ‘हिम्मत है!’ में किया है. उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है– ‘असंभव घटना 5 अगस्त 1982 की है, जब इंदिरा गांधी व उनके परिवार के अन्य सदस्य अमेरिका में थे. कनाट सर्कस के यूसुफज़ाई मार्केट के बाहर एक ट्रैफिक इंस्पैक्टर ने एक सफेद एम्बेसडर गाड़ी (DHI 1817) खड़ी देखी. चालान काटने के बाद ही उसे पता चला कि वह प्रधानमंत्री की सरकारी गाड़ी है…’

दरअसल, कनाट सर्कस के यूसुफज़ाई मार्केट के बाहर आम कारों की तरह यह सफेद अंबेसडर कार भी खड़ी थी. इस इलाके में तैनात ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर ने पाया कि कार नो पार्किंग जोन में खड़ी है. जिस दुकान के बाहर यह कार खड़ी थी वो कार एक्सेसरीज की दिल्ली की नामी दुकान थी. ड्राइवर कुछ सामान लेने अकेला ही मार्केट गया था. और असल गलती वीआईपी सिक्योरिटी और दिल्ली पुलिस के बीच तालमेल की कमी थी.

और सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस पूरे मामले के दौरान किरण बेदी घटना स्थचल पर मौजूद नहीं थीं. पर इसके बावजूद इस पूरे मामले का श्रेय किरण बेदी ने खुद ले लिया, जिसे आज राजनीति में भुनाने की कोशिश की जा रही है.

सोशल मीडिया पर भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता यह भी प्रचार कर रहे हैं कि इस मामले के चलते किरण बेदी का ट्रांसफर दिल्ली से गोवा कर दिया गया था. जबकि सच्चाई यह है कि किरण बेदी को ट्रैफिक संभालने की जिम्मेदारी नवंबर-दिसंबर 1982 में एशियन गेम्स के दौरान दी गई थी. साथ ही गोवा में उनका ट्रांसफर उस घटना के सात महीने बाद मार्च 1983 में किया गया था. माना ये भी जाता है कि गोवा में चोगम समिट होने वाला था जिसके लिए उन्हें गोवा भेजा गया.

खैर इन सबके बीच आज दैनिक हिन्दुस्तान ने यह खुलासा किया है कि वो चालान वाक़ई किरण बेदी ने नहीं, ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर निर्मल सिंह घुम्मन ने काटा था.

निर्मल सिंह घुम्मन ने खुद इस अखबार को दिए बयान में कहा है – अगस्त 1982 में उस समय मैं संसद मार्ग थाने का जोनल ऑफिसर (एसआई ट्रैफिक) था. मिंटो रोड के समीप यार्क होटल के सामने कार एक्सेसरीज की दुकानें थी. दुकानदार गाड़ियां सड़क पर खड़ी कर उनमें एसेसरीज लगाते थे, जिसके चलते आउटर सर्किल में जाम रहता था.

मैं अक्सर वहां पर गाड़ियों का चालान करता था. इसके चलते दुकानदार की एसोसिएशन ने कांग्रेसी नेता रमेश हांडा से मेरी शिकायत की थी. एक दिन मेरे पास हांडा ने संदेश भिजवाया कि आज वहां गाड़ियों का चालान करके दिखाओ.

शाम लगभग पांच बजे मैं गश्त करने निकला तो देखा सड़क पर सफेद रंग की एंबेसडर कार खड़ी है. उसका नंबर डीएचडी 1718 था. मैंने वहां जाकर इस गाड़ी के ड्राइवर के बारे में पूछा. जब जवाब नहीं मिला तो मैंने क्रेन मंगवाकर उस गाड़ी को उठवा लिया.

रमेश हांडा ने मेरे पास आकर कहा कि तुम जानते हो यह किसकी गाड़ी है. मैंने जवाब दिया कि यह गाड़ी प्रधानमंत्री कार्यालय की है और कानून सबके लिए बराबर है. यह गाड़ी मैं जब क्रेन से ले जाने लगा तो आगे रमेश हांडा आ गए. उन्होंने गाड़ी को छोड़ने के लिए कहा. मैंने 100 रुपये का चालान करने के बाद गाड़ी को छोड़ दिया था.

जब पत्रकार ने उनसे पूछा कि इस पूरे प्रकरण में किरण बेदी का क्या रोल था? तो उनका कहना था –गाड़ी छोड़ने के बाद मैंने मैडम (किरण बेदी) को फोन कर बताया कि मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान कर दिया है. इस पर उन्होंने मुझे कहा कि तुमने ठीक किया. हालांकि बाद में इस घटना को लेकर खलबली मच गई. मुझे वरिष्ठ अधिकारियों ने कई बार पेशी के लिए बुलाया. उन्होंने मुझसे पूछा कि तुमने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान क्यों किया? महज़ एक सप्ताह के भीतर मेरा तबादला कर मुझे एयरपोर्ट सिक्योरिटी में जाने को कहा गया.

निर्मल सिंह घुम्मन ने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान करने से पूर्व हाईकोर्ट के जज का भी चालान काटा था.

कौन हैं निर्मल सिंह घुम्मन

दक्षिणी दिल्ली में रहने वाले निर्मल सिंह घुम्मन दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत एसीपी हैं. उन्होंने पंजाब से बीएससी की पढ़ाई पूरी की. वह डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया.

यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षा देकर वह वर्ष 1977 में दिल्ली पुलिस में एसआई भर्ती हुए थे. उनका नाम सुर्खियों में तब आया जब उन्होंने पीएमओ की एंबेसडर का चालान कर दिया था. 2013 में वह मध्य जिले के एसीपी ऑपरेशन रहते हुए सेवानिवृत हुए.

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