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वक़्त को और भी शाहिद आज़मियों की ज़रूरत –आनन्द स्वरूप वर्मा

BeyondHeadlines News Desk

Shahid Azmiलखनऊ : ‘भारत हिन्दुओं का देश है यह मानसिकता ही खतरनाक है. इस समय वे सत्ता में हैं. यह दौर तब और खतरनाक हो जाता है. ऐसे लोगों के खिलाफ शाहिद आज़मी ने सच के लिए अपनी शहादत दी है और इसे हमें आगे बढ़ाना है.’

ये बातें आज यूपी प्रेस क्लब में लखनउ के रिहाई मंच द्वारा एडवोकेट शाहिद आज़मी की शहादत की पांचवी बरसी के मौके पर आयोजित सेमिनार में वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा. इस सेमिनार का विषय ‘लोकतंत्र, हिंसा और न्यायपालिका’ रखा गया था.

आनंद स्वरूप वर्मा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्वरूप पर बोलते हुए कहा कि आजादी के समय भी इस आजादी के स्वरूप को लेकर कई सवाल उठे थे. कई लोगों ने इसे झूठी आजादी तक कहा था.

उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र के सामने कई बार चुनौतियां पेश हुई हैं. जब भी लोकतंत्र पर खतरे बढ़ते हैं, उस खतरे के खिलाफ हिंसा भी बढ़ जाती है. पर याद रहे! बेगुनाहों को फंसाने से उनके मन में राज्य के प्रति नफ़रत पैदा हो जाती है और राज्य मशीनरी यही चाहती है. हमारी अदालतों द्वारा आज फर्जी मुठभेड़ों को जस्टीफाई किया गया है. आज मंत्री इसे सावर्जनिक तौर पर जस्टीफाई करते हैं. कल्याण सिंह ने खुद विधानसभा में फर्जी एनकाउंटर को जस्टीफाई किया था. शर्मनाक तो यह है कि अदालतें भी इसे मान रही हैं. राजनाथ सिंह ने मिर्जापुर में 16 दलितों की फर्जी हत्या करवाई थी. बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सार्वजनिक तौर पर पुलिस को निर्देश दिया था कि वे खुलकर मारें, डरने की कोई बात नहीं है. बिल क्लिंटन के भारत दौरे के समय छत्तीसिंह पुरा में 36 लोगों को सेना ने मार डाला. लेकिन आज जब यह साफ हो गया कि यह फर्जी मुठभेड़ थी, तो भी आज तक दोषी दंडित नहीं हुए. क्या बेगुनाहों की ये हत्याएं इस लोकतंत्र का गला नहीं घोट रही हैं?

आगे उन्होंने कहा कि इशरत जहां के फर्जी एनकाउंटर में आरोपियों की ज़मानत हो गई. इसके दूरगामी असर होने तय हैं. इंसाफ से वंचित लोगों का हिंसक होना क्या गलत है? इस मुल्क में गरीबों को ही फांसी होती है और दबंग सामन्त बच जाते हैं. शंकर बिगहा हत्याकांड इस बात की तस्दीक कर देता है. आखिर राज्य का ऐसा रुख क्यों रहता है? राज्य का यह रुख रहता है कि गरीब लोग स्वाभाविक तौर पर अपराधी होते ही हैं. आज भी यह मानसिकता काम कर रही है. यह इंसाफ के लिए बहुत ही खतरनाक है.

संघ द्वारा देश को फासीवाद के रास्ते पर लेकर जाने की कोशिशों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि कल के दिल्ली नतीजे 2025 तक देश को हिन्दू राष्ट्र होने की संघ की मुहिम को थोड़ा सा रोकते हैं. लेकिन अभी भी समस्या जस की तस है. संघ के विचारक आज भी भी मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलते रहते हैं.

उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौर में जनता ने फासीवाद का मुकाबला किया. वह एक दूसरा दौर था लेकिन 1990 में उदारीकरण के दौर में नए खतरे भी लोकतंत्र पर आए. नेहरू के समय में ऐसा लगता है कि राज्य अपनी कल्याणकारी भूमिका में था, लेकिन आज उदारीकरण के बाद यह नहीं कहा जा सकता. उन्होंने इसकी वजहें गिनाते हुए कहा कि विश्व बैंक ने राज्य की भूमिका पर जोसेफ इस्टगलीज, जो विश्व बैंक के अध्यक्ष भी रहे हैं, को आगे कर राज्य की भूमिका पर नए सिरे से बहस की. एक दस्तावेज में उन्होंने कहा था कि राज्य को कल्याणकारी कामों से अपनी भूमिका खत्म करके केवल फैसिलेटर की ही भूमिका में आना चाहिए. राज्य के सारे कल्याणकारी काम प्राइवेट कंपनियों को ही करना चाहिए. अगर हम देखें तो अब राज्य फैसिलिटेटर मात्र है. सब कुछ विदेशी कंपनिया ही उपलब्ध कराएंगी. अगर इसमें कमी की शिकायत भी आम जनता ने की या इनकी लूट के खिलाफ कोई आवाज़ उठाई तो राज्य दमन करेगा.

उन्होंने कहा कि तीसरी दुनिया के देशों ने विश्वबैंक के इस दस्तावेज़ को बाइबिल की तरह हाथों-हाथ लिया था. उदारीकरण के बाद 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने इस दिशा पर तेजी से काम करना शुरू किया. उन्होंने पुंजीपतियों को विभाग तक बांट दिए थे. तब की सरकार में मुकेश अंबानी शिक्षा संबंधी नीतियां देखते थे. तब से लगातार यही सब चल रहा है. राज्य के काम अब देश के बड़े पूंजीपति करने लगे हैं. आज इसी क्रम में देश की खनिज संपदा की लूट जारी है. इस लूट से होने वाले विरोध से निपटने के लिए राज्य का सैन्यीकरण ज़रूरी था. फिर आतंकवाद और माओवाद का हौव्वा प्रायोजित करके राज्य ने आम जनता के खिलाफ काले कानून बनाने शुरू किए.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक हम पाते हैं कि सामाजिक और राजनैतिक बदलाव के लिए चिंतित नौजवानों को हिंदू होने पर माओवादी और मुस्लिम होने पर आतंकवादी कहकर जेलों में बंद कर दिया जाता है. यह हौव्वा राज्य के पूर्ण सैन्यीकरण की तैयारी भर है.

आगे उन्होंने कहा कि आतंकवाद और माओवाद के हौव्वे के पीछे पैकेज खाने की राजनीति भी है. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी ने 208 करोड़ का पैकेज उत्तराखंड से माओवाद के खात्मे के नाम पर केन्द्र सरकार से लिया था, जबकि उत्तराखंड में कोई माओवादी आंदोलन का नामोनिशान तक नहीं है. बाद में स्टेट्सटमैन अखबार के पत्रकार प्रशान्त राही को उत्तराखंड सरकार द्वारा माओवादी बता कर गिरफ्तार किया गया. यह सब उस फंड को जस्टीफाई करने के लिए था, जिसे खंडूरी ने केन्द्र से लिया था. यह पूरा केस ही फर्जी था, लेकिन झूठा फंसाने वालों के खिलाफ अदालत ने भी कोई कारवाई नहीं की.

आनन्द स्वरूप वर्मा ने कहा कि बेगुनाहों को जेल भेजने के मामले में आतंकवाद और माओवाद का आधार लिया जाता है. लेकिन ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं होती, जबकि जज सब जानते हैं.

उन्होंने कहा कि आज के ही दिन मकबूल बट्ट को फांसी दी गई थी जो कि न्याय की हत्या थी. इसलिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण है.

आगे उन्होंने अपनी बातों को बढ़ाते हुए कहा कि आज भारतीय स्टेट आतंकवाद का खुद पोषण करता है. इस्लामिक आतंकवाद का पूरा संचालक ही अमरीका है. ऐसा सितंबर 2001 से नहीं, बल्कि 1960 के दशक से यह पोषण जारी है. अमरीका की सीआईए ने इंडोनेशिया की कम्यूनिस्ट पार्टी का खात्मा करवाया. आज वैश्विक आतंकवाद की पूरी कहानी तेल के मुनाफे पर टिकी है. अपने हित के लिए अमरीका ने पूरी दुनिया में तानाशाही को बढ़ावा दिया. आईएआईएस इनकी ही पैदावार है.

आनन्द स्वरूप वर्मा ने कहा कि देश के सात राज्यों में, जहां अफस्पा लागू है. वहीं 16 से ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं. इस तरह इनके बाद केवल 5 राज्य ही शांत बचते हैं. क्या यही हमारा लोकतंत्र है? लेकिन इसके प्रचार की राजनीति को हमें समझना होगा. दरअसल यह केवल हौव्वा है और राज्य के सैन्यीकरण की कोशिश हैं. ऐसी बातें आम जनता को टेरराइज करने की राजनीति के तहत की जाती हैं. वास्तव में यह सब उस समाज में बाजार के घुसाने की एक कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है, जो कि अभी भी अपनी गौरवशील परंपरा बचाए हुए हैं.

सेमिनार को संबोधित करते हुए वीरेन्द्र यादव ने कहा कि रिहाई मंच के इस अभियान को अधिक व्यापक होना चाहिए. राज्य आज आतंककारी भूमिका में खुलकर आ चुका है. लेकिन हमें लड़ना ही हागा क्योंकि आज समय क्रोनी कैपिलटिज्म से आगे जा चुका है. आज अभिव्यक्ति की आजादी पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है और यह वक्त लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है.

बलिया से आए सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत यादव ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि लूट के खिलाफ पुतला फूंकने पर ही हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दिया गया. सड़क खोदकर फेंक दी गई थी, लेकिन आज तक उसे बनाया नहीं गया. इसी मांग पर हमने आंदोलन किया और हमारे ऊपर मुक़दमा दर्ज कर दिया गया. यह समय के संकट को गंभीरता से दर्शाता है.

वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश ने कहा कि बिहार के शंकरबिगहा में 24 लोगों के हत्याकांड के आरोपियों को जिस तरह से रिहा किया गया है, वह साफ कर देता है कि आखिर यह किसका लोकतंत्र है? यह लोकतंत्र आज फासिज्म के मुखौटे को लेकर चल रहा है. आज सहिष्णुता को किसी खास धर्म की सहिष्णुता के रूप में बदला जा रहा है. अयोध्या आंदोलन के दौर में हम सामान्य प्रतीकों को हिंसक प्रतीकों में बदलत देखते हैं. यही फासीवाद का प्रभाव है. इस चुनौती से प्रभावी तरीके से निपटना होगा.

कार्यक्रम की अध्यक्षता रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने की और संचालन अनिल यादव ने किया. कार्यक्रम के अंत में मोहम्म्द शुऐब ने आगुन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया.

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