नागालैंड : क्या आरोप ग़लत साबित होने महिला को फांसी होगी?

Beyond Headlines
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Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

नागालैंड की घटना मानवता को शर्मशार कर देने वाली है. जिन बेतुके महिला-वादियों को ये सही लग रहा हो, वो संभल जाएं और अपनी सोच बदलें. शुरू में मानसिक रूप से विकृत लोगों ने उसके मुसलमान होने का पता चलते ही बांग्लादेशी घोषित कर दिया. यहाँ तक कि लोकल मीडिया ने भी दोगलापन दिखाते हुए बिना तथ्यों की जांच करे ख़बर को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया.

अब ख़बर आ रही है कि रोहतक की घटना के तर्ज़ पर ही लड़की ने उनसे 2 लाख रूपये मांगे, जिसे न देने पर लड़की ने रेप केस दर्ज़ करवा दिया. क्योंकि हमारे देश का कानून तथ्यों की जांच के बिना ही आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है. इसीलिए पुलिस ने फारिद ख़ान को जेल में डाल दिया.

इधर कुछ सनकी लोगों ने आरोप को खुद से सही मानते हुए फारिद खान को जेल से निकाल लिया. बल्कि उसे निकालने के लिए जेल पर हमला किया गया कहना अधिक उचित होगा. इस हमले में दूसरे कुख्यात अपराधियों ने फायदा उठाया और जेल से भाग निकले.

खैर, फारिद को पहले उसे नंगा किया गया… उसके गुप्तांगों को वीभत्स कर दिया गया… फिर उसे सड़क की रेलिंग पर बांधकर हज़ारों की भीड़ ने लाठियों से मारा. वहीं समाज के ठेकेदार बन चुके पढ़े-लिखे लोग मोबाइल से वीडियो बनाने में व्यस्त थे. उसके बाद भीड़ ने उसे ऊपर उछाल-उछाल कर ज़मीन पर पटका और जब फारिद पानी मांगने लगा तब उसके गले में रस्सी बांधकर बाइक से उसके नग्न शरीर को 7 किलोमीटर तक सड़क पर घसीटा, जिस वजह से कुछ ही दूर जाकर फारिद ने दम तोड़ दिया.

देखने की बात ये है धारा-144 लागू होने के बावजूद भी ये घटना हो जाती है और कोई गिरफ्तार नहीं होता.

अब ज़रा फारिद ख़ान के परिवार के बारे में जानिये… फारिद के पिता सेना में 20 साल से ज्यादा काम कर चुके हैं. फारिद के 2 छोटे भाई आसाम राइफल में तैनात हैं. फारिद का बड़ा भाई कारगिल युद्ध में शहीद हो चुका है. इन सबके बावजूद कुछ नपुंसक मानसिकता वाले विकृत लोग फारिद को केवल मुस्लिम होने के वजह से बांग्लादेशी मान रहे हैं और गरिया रहे हैं.

नागालैंड में सेना द्वारा महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ के मुद्दे पर कई बार प्रदर्शन भी हो चुके हैं. इसी को आधार मानकर भीड़ ने फारिद का भी चरित्र तय कर लिया.

अब कुछ महिलावादी लोग सोचेंगे कि मैं महिला विरोधी हूं. पर मैं किसी का पक्ष नहीं ले रहा. बल्कि मैंने वो पक्ष रखा है जो आपके सामने नहीं रखा जाएगा. चलिए मान लीजिए कि उस पर लगे आरोप सही हों. लेकिन तब भी ये कृत्य शर्मनाक है.

अब सवाल यह है कि कैसे साबित होगा कि वो आरोप सही थे या नहीं? अकेले रेस में एक घोड़ी दौड़े और आप उसे विजेता मान लो? क्या होगा अगर ये 2 लाख रूपये ना देने के वजह से आरोप लगाने वाली बात सच निकले? क्या समाज उस लड़की के साथ भी वही करेगा? क्या इस देश में झूठे आरोप लगाने वाली औरतों के लिए सख्त कानून बनाने की ज़रूरत नहीं है? दुनिया जले… कोई फर्क नहीं, देश जले… कोई चिंता नहीं, राज्य जले… कोई बात नहीं. जिला जल जाए… चलता है. शहर जल जाए… बच जाएंगे. लेकिन जब ये आग आपके घर आ जाएगी तब आप कहेंगे कि कोर्ट में फैसला होता, पुलिस करती, ये…, वो…, अभी सब ठीक है.

गंभीर सवाल यह है कि औरत क्या झूठ नहीं बोलती? क्या दहेज़ कानून से लेके रेप रोकने तक के कानूनों का गलत इस्तेमाल नहीं हो रहा? क्या देश में पुरुषों की आत्महत्या दर सबसे ज्यादा नहीं है? ऐसे में उन दोषी महिलाओं के लिए क्या कानून है? दूसरे को फांसी के लिए फंसाने वाली महिला को ग़लत साबित होने पर फांसी की सजा क्यों न हो? क्या आप इसे ही महिला सशक्तिकरण का नाम देंगे, जहां महिला महिलाओं के गलत होने पर भी चुप रह जाती हैं?

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