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‘उनकी गिरफ्तारी ने सब कुछ बर्बाद कर दिया… हमारी बच्चियों से शादी कौन करेगा?’

BeyondHeadlines News Desk

नये साल का जश्न सभी लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. परन्तु 2007 के 31 दिसंबर की रात को रामपुर सीआरपीएफ कैंप के सिपाहियों ने ऐसा जश्न मनाया जिसने छह परिवारों की जिंदगी बर्बाद कर दी. कई स्वतंत्र जांच संगठनों ने अपनी जांच में पाया कि यह कोई आतंकी घटना नहीं थी बल्कि सीआरपीएफ के जवानों ने नए साल के जश्न में शराब के नशे में आपस में ही गोलाबारी कर ली थी. जिसमें सात जवानों सहित एक रिक्शा चालक भी मारा गया.

इस पूरी घटना को सरकार ने आतंकवादी घटना के तौर पर प्रचारित करके बेगुनाहों को गिरफ्तार किया और सच्चाई को छिपा लिया. इस पूरी घटना को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जब अगस्त 2008 में कानपुर में बजरंग दल के कार्यकर्ता बम बनाते मारे गए थे, तो तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि अगर मायावती चाहें तो इस पूरी घटना की जांच सीबीआई कर सकती है तो मायावती ने कहा था कि पहले 2007 में हुए उत्तर प्रदेश में कचहरी बम विस्फोटों व रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हमला प्रकरण की जांच करवाएं.

इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रदेश की जांच एजेंसियों द्वारा रामपुर सीआरपीएफ कैंप प्रकरण की जांच पर तत्कालीन प्रदेश सरकार संतुष्ट नहीं थीं, इसीलिए उसने सीबीआई जांच की बात कही. जिसकी मांग बेगुनाहों के परिजनों व मानवाधिकार संगठनों ने भी की. फिर शुरू हुआ अवैध गिरफ्तारियों का दौर…

11 फरवरी 2008 को उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने कहा कि रामपुर सीआरपीएफ कैंप आतंकी हमले में शामिल लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इन गिरफ्तारियों में जंगबहादुर खान, शरीफ, गुलाब खान, कौसर फारूकी, फहीम अंसारी और सबाउद्दीन सहित तीन पाकिस्तानी नागरिकों इमरान, शहजाद तथा मोहम्मद फारूख को भी गिरफ्तार किया गया. इन सारी गिरफ्तारियों में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई और न ही जिन हथियारों की ‘रिकवरी’ की बात की गई थी, उनकी बरामदगी ही दिखाई गई. लखनऊ में जिन पाकिस्तानी कथित आतंकवादियों को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया, उनका कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है. न ही जंग बहादुर, शरीफ, कौसर फारूकी के विरुद्ध कोई चश्मदीद गवाह ही है.

इनके परिजन लगातार धरना व भूख हड़ताल करके सपा सरकार को ज्ञापन सौंपते रहे हैं कि पूरे मामले की सीबीआई जांच करवाई जाए ताकि 31 दिसंबर की घटना का सच सामने आ सके. परन्तु प्रदेश सरकार सीबीआई जांच के सवाल से लगातार भागती रही. आतंकवाद के विभिन्न प्रकरणों में यह भी तथ्य सामने आ चुका है कि आतंकवाद की घटनाओं की साजिश कोई रचता है और पकड़ा कोई और जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को झूठा फंसाने को लेकर अपने एक फैसले में यह टिप्पणी भी की है कि ’माई नेम इज़ खान बट आई एम नॉट टेररिस्ट’ लोगों को न कहना पड़े.

रामपुर सीआरपीएफ कैंप की घटना के सात साल बाद 48 गवाहियों में से मात्र 23 गवाहियां हुई हैं. एक तरफ अदालत कछुए की चाल चल रही है और दूसरी तरफ बिना सुबूत के आधार पर बेगुनाह इतने दिन से बंद हैं, उन्हें ज़मानत तक नहीं मिल रही है.

रिहाई मंच ने लगातार मांग की है कि आतंकवाद संबंधित मामलों में अदालत की सुनवाई दिन प्रतिदिन होनी चाहिए. पर इससे इतर इनके परिजन बताते हैं कि गवाहियों सुनवाइयों से अधिक सिर्फ तारीख पर तारीख देकर मामले को लंबा खींचा जा रहा है.

बेगुनाहों के परिजनों के हालात

सात सालों से जेलों में बंद इन बेगुनाहों के परिवारों के हालात ठीक नहीं है. प्रतापगढ़, कुंडा के रहने वाले कौसर फारूकी जिनका रामपुर से कोई वास्ता नहीं था और न ही कभी वे रामपुर गए थे, पर आरोप लगाया गया कि वे रामपुर स्थित अपने घर में हमले में इस्तेमाल होने वाले हथियार को छिपाए थे.

आज उनके घर में भाईयों समेत उनका एक लड़का और दो बेटियां अपने बेगुनाह बाप की रिहाई का रास्ता देख रही हैं. दूसरी तरफ जंग बहादुर जिनकी तबियत हमेशा जेल में खराब रहती है, वह हृदय रोग से पीडि़त हैं, ऐसी गंभीर बीमारी में भी न तो उन्हें ज़मानत मिल रही है न ही जेल में चिकित्सा सुविधा. उनके घर में उनकी बेटियों की शादी तक नहीं हो पा रही है.

रामपुर के मोहम्मद शरीफ जिनको आज़मगढ़ से एसटीएफ ने उठाया था, के घर की स्थिति भी ठीक नहीं है. आज़मगढ़ में अपनी पत्नी के साथ जब वे अपने बेटे को दवा के लिए ले जा रहे थे, उसी समय उनको उठाया गया था. बाद में उनके बीमार बेटे की मौत हो गई. मोहम्मद शरीफ के बहनोई गुलाब भी इसी मामले में बंद हैं. उनके घर में उनकी पत्नी और उनकी दो बेटियों व एक बेटे की मदद करने वाला कोई नहीं है. उनकी बड़ी बेटी जिसकी दिमागी हालात ठीक नहीं है, और बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी बंद है.

सपा सरकार की वादा खिलाफी

सपा सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की बात की थी. वहीं एक झूठी घटना में फंसाए गए बेगुनाहों के परिवारों की लगातार मांग के बावजूद भी रामपुर सीआरपीएफ कैंप प्रकरण की जांच सीबीआई से नहीं करवाई.

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