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एक ग़रीब मरीज़ के अपोलो अस्पताल में दाख़िल होने की कहानी

BeyondHeadlines News Desk

ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 10 साल का फ़ुजैल इलाज कराने दिल्ली के  सबसे बेहतरीन निजी अस्पताल कहे जाने वाले अपोलो पहुँचता है.

इस अस्पताल में 239 बेड ग़रीबों के लिए आरक्षित हैं. लेकिन यहां चल रहे गोरखधंधे के तहत 200 विदेश से आए अमीर मरीज़ों को दे दिए जाते हैं.

फ़ुजैल सुबह साढ़े दस बजे अस्पताल पहुँचा था. लेकिन अगले कई घंटों तक उसे किसी डॉक्टर ने नहीं देखा. वो लॉबी में पड़ा रहा.

उनके साथ आए परवेज़ अहमद ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किया. BeyondHeadlines.in की नज़र उस पोस्ट पर पड़ी और तुरंत स्वस्थ भारत अभियान के समन्वयक आशुतोष कुमार सिंह को इसके बारे में अवगत कराया गया.

फ़ुजैल आठ घंते तक स्ट्रेचर पर पड़े रहे लेकिन किसी ने सुध नहीं ली.

फ़ुजैल आठ घंते तक स्ट्रेचर पर पड़े रहे लेकिन किसी ने सुध नहीं ली.

आशुतोष सिंह ने परवेज़ अहमद, अस्पताल के जन सूचना अधिकारी अंगद भल्ला से बात की. आशुतोष के हस्तक्षेप के बाद शाम को पौने पाँच बजे एक न्यूरौ सर्जन ने मरीज़ को देखा और तुरंत आईसीयू में भर्ती किए जाने की सिफ़ारिश की.

लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उनकी एक न सुनी. एक बार फिर मरीज़ को स्ट्रेचर पर ही पड़ा छोड़ दिया गया.

इसके बाद आशुतोष ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री को फ़ोन किया. स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय की ओर से अस्पताल प्रशासन और मरीज़ के तामीरदार परवेज़ अहमद से बात की गई.

आख़िरकार क़रीब आठ घंटों तक अस्पताल में पड़े रहने के बाद अस्पातल प्रशासन ने फुजैल को जनरल वार्ड में भर्ती किया.

परवेज़ अहमद ने अस्पताल की लापरवाही के बारे में फ़ेसबुक पर पोस्ट किया.

परवेज़ अहमद ने अस्पताल की लापरवाही के बारे में फ़ेसबुक पर पोस्ट किया.

इसी बीच तामीरदार परवेज़ अहमद ने 100 पर कॉल किया और सरिता विहार थाने की पुलिस मौक़े पर पहुँची.

पुलिस ने फ़ुजैल के पिता जाकिर अली के बयान दर्ज किए.

परवेज़ अहमद के मुताबिक अस्पताल प्रशासन के ख़िलाफ़ मेडकिल नेगलीजेंस या आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज करा दिया गया है.

पुलिस ने कल सुबह उन्हें एफ़आईआर की कॉपी मुहैया कराने का वादा किया है.

आशुतोष कुमार सिंह के मुताबिक अपोलो अस्पताल के ख़िलाफ़ लापरवाही के आरोप में एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है.

आशुतोष कुमार सिंह के मुताबिक अपोलो अस्पताल के ख़िलाफ़ लापरवाही के आरोप में एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है.

परवेज़ अहमद के सोशल मीडिया पर शेयर करने, स्वस्थ भारत अभियान के समन्वयक आशुतोष कुमार सिंह के हस्तक्षेप और इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री के हस्तक्षेप के बाद आख़िरकार फ़ुजैल को अस्पताल में अपने हिस्से का एक बिस्तर नसीब हो ही गया.

लेकिन सवाल ये रह जाता है कि कितने मरीज़ अस्पताल में भर्ती होने के लिए इतनी जद्दोजहद कर सकते हैं.

हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था ग़रीबों के प्रित ज़िम्मेदार क्यों नहीं है.

क्यों एक बड़े अस्पताल में मरीज़ों के हिस्से के बिस्तर अमीरों को देने का गोरखधंधा सालों से चला आ रहा है और किसी जनप्रतिनिधी या सरकारी संस्था ने इसमें दख़ल देने की कोशिश नहीं की.

आपसे गुज़ारिश है कि हर जुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे. BEYONDHEADLINES आपकी आवाज़ में आवाज़ मिलाती रहेगी.

(BeyondHeadlines.in के साथ फ़ेसबुक पर ज़रूर जुड़ें)

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