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Reading: सीवान की राजनीति : शहाबुद्दीन का असर कितना?
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BeyondHeadlines > India > सीवान की राजनीति : शहाबुद्दीन का असर कितना?
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सीवान की राजनीति : शहाबुद्दीन का असर कितना?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 27, 2015 1 View
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5 Min Read
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By Afroz Alam Sahil

सीवान में जहां शहाबुद्दीन का सिक्का चला करता था, वहां से अब बीजेपी के ओम प्रकाश यादव सांसद हैं. लेकिन बिहार के चुनावी विश्लेषकों का अब भी मानना है कि शहाबुद्दीन का प्रभाव इस बार के विधानसभा चुनाव पर खूब रहेगा.

दैनिक जागरण से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद पांडेय जी बताते हैं कि –‘शहाबुद्दीन महागठबंधन के लिए सबसे अहम तो हैं ही, लेकिन वो बीजेपी के लिए भी देवता से कम नहीं हैं. सीवान में बीजेपी की राजनीति भी शहाबुद्दीन के इर्द-गिर्द ही घूमती है. सच तो यह है कि ये पार्टी शहाबुद्दीन का भय दिखाकर ही वोट हासिल करती हैं.’

स्पष्ट रहे कि सीवान के 8 विधानसभा क्षेत्रों में 5 पर बीजेपी तो 3 पर जदयू क़ाबिज़ है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन 8 सीटों पर लालू की आरजेडी दूसरे नंबर पर रही है. जबकि तीन सीटों पर माले का दूसरा स्थान रहा है. यही नहीं, यहां 2 जदयू विधायकों की मौत के बाद उपचुनाव हुए. एक जदयू की जीत हुई तो दूसरा सीट बीजेपी के क़ब्ज़े में चला गया. राजद दोनों सीटों पर काफी कम वोटों के अंतर से दूसरे नंबर पर रहा.

अब जब जदयू राजद के साथ है तो चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल चुकी है. ऐसे में स्थानीय लोगों का मानना है कि जेल में बंद  शहाबुद्दीन का असर एक बार फिर से बढ़ गया है या यूं कहें कि इस बार सीवान की राजनीति में शहाबुद्दीन फैक्टर ही नज़र आने वाला है.

सीवान की राजनीति से दिलचस्पी रखने वाले स्थानीय निवासी मो. इरशाद बताते हैं कि –‘इस बार भाजपा में जिस प्रकार टिकट के लिए यहां मारामारी है, वैसी मारामारी महागठबंधन में नहीं है. इसका कारण भी शहाबुद्दीन के इर्द-गिर्द ही घूमता है.’

इरशाद बताते हैं कि –‘शहाबुद्दीन जो तय करेंगे, गठबंधन के नेताओं को वही मानना पड़ेगा. बस लालू-नीतिश को यह तय करना है कि कौन सी सीट किस पार्टी को जानी है.’

सीवान ज़िला 1990 से लेकर 2005 तक राजद का गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन 2010 में जब शहाबुद्दीन विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो इसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को मिला. हालांकि नीतिश कुमार के नाम पर भी लोगों ने जमकर बीजेपी-जदयू गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन इस बार जब नीतिश कुमार लालू के साथ हैं, तो ऐसे में शहाबुद्दीन के समर्थकों में फिर से उम्मीद बढ़ गई है कि शहाबुद्दीन फैक्टर ज़रूर काम करेगा.

हालांकि एक ख़बर के मुताबिक बीजेपी भी चाहती है कि शहाबुद्दीन को अपने पाले में किया जाए. शायद यही वजह है कि जन अधिकार पार्टी नेता सांसद पप्पू यादव ने शहाबुद्दीन से सीवान के जेल में जाकर मुलाक़ात की. शहाबुद्दीन से मिलने के बाद पप्पू यादव का स्पष्ट तौर पर कहना था कि लालू यादव के कारण शहाबुद्दीन फंसे हुए हैं.

पप्पू यादव के इस बयान से सीवान राजनीतिक समझ रखने वाले मतदाता यह संकेत निकाल रहे हैं कि कहीं पप्पू यादव शहाबुद्दीन को लालू के खिलाफ़ करने के लिए तो नहीं मिलने गए थे. हालांकि शहाबुद्दीन से राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी समेत कई नेता आकर जेल में मुलाक़ात कर चुके हैं. सीवान में राजद के हर पोस्टर में शहाबुद्दीन ज़रूर नज़र आ रहे हैं.

शहाबुद्दीन कब से हैं जेल में…

राजद से जुड़े रहे पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन ने 12 साल पहले 13 अगस्त, 2003 को कोर्ट में आत्मसमर्पण किया था, तब से वो जेल में बंद हैं. चार दर्जन मामले शहाबुद्दीन पर दर्ज हैं. ट्रायल कोर्ट के गठन के बाद 11 मामलों का फ़ैसला आ चुका है, जिनमें 7 मामलों में एक साल से लेकर उम्र क़ैद तक की सज़ा हो चुकी है. चार मामलों में बरी भी हो चुके हैं. तेज़ाब कांड को छोड़कर बाकी सभी मामलों में उन्हें ज़मानत मिल चुकी है. लेकिन अभी भी शहाबुद्दीन पर 37 मामले लंबित हैं. तेज़ाब कांड मामले में 19 जून से बहस हो रही है. उनके समर्थकों के मुताबिक बहस पूरा होने बाद शहाबुद्दीन ज़मानत पर रिहा हो सकते हैं. (Courtesy: TwoCircles.net)

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