BeyondHeadlines News Desk
कानपुर के महाराजपुर इलाके के जाना गांव में एक 42 वर्षीय अज्ञात मुस्लिम व्यक्ति को पहले चोर बता कर पीटने और फिर इस पिटाई के दौरान जब उसने दर्द से कराहते हुए ‘अल्लाह-अल्लाह‘ कहने लगा तो भीड़ ने उसे पाकिस्तानी आतंकवादी घोषित कर पीट-पीट कर मार डाला.
इस पूरे घटना को रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने सरकार, राजनीतिक दलों, मीडिया और प्रशासन द्वारा पोषित और संचालित मुस्लिम फोबिया से मानसिक तौर पर बीमार हो चुके हिंदू समाज के बड़े हिस्से द्वारा किया गया घृणित अपराध बताया है.
उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक राजनीति ने लोगों को हत्यारों में तब्दील कर दिया है, जो ऐसी हत्याओं को राष्ट्रवाद का पर्याय मानते हैं और संघ परिवार का दबाव इतना ज्यादा है कि कोई भी तथाकथित सेक्यूलर दल इन घटनाओं की निंदा करके, घटनास्थल का दौरा करके अपने हिंदू वोट को नाराज़ नहीं करना चाहता.
रिहाई मंच नेता ने कहा कि इस घृणित और अमानवीय घटना में भी पुलिस की भूमिका हत्यारों और अपने महकमे के सिपाही को बचाने की ही रही है. इसीलिए जब हिंदू समुदाय के ही कुछ लोगों ने शेखपुरा पुलिस आउटपोस्ट को एक व्यक्ति की पिटाई की सूचना दी तो पुलिस न सिर्फ वहां नहीं गई बल्कि चौकी पर ताला भी लगा दिया और वहां से हट गई.
उन्होंने कहा कि कानपुर के एसएसपी शलभ माथुर उस पुलिस कर्मी का पता लगाने के लिए जांच कराने की बात कर रहे हैं, जिसे लोगों ने फोन किया था जबकि लोग उस कांसटेबल का नाम ‘पंडित जी’ बता रहे हैं.
रिहाई मंच नेता ने कहा कि आखिर एसएसपी जिसे अब तक इस घटना में पुलिस की संदिग्घ भूमिका के कारण हटा दिया जाना चाहिए था, लोगों द्वारा बताए जा रहे शिनाख्त के आधार पर ‘पंडित जी’ नाम के कांस्टेबल को क्यों नहीं गिरफ्तार करके पूछताछ कर रहे हैं, क्यों वो इस खुले मामले में भी आरोपी की जांच की बात कर रहे हैं.
रिहाई मंच नेता ने कहा कि सपा राज में मुसलमानों के लिए उत्तर प्रदेश अब सुरक्षित जगह नहीं रह गई है. प्रदेश पुलिस जगमोहन यादव के नेतृत्व में सपा और भाजपा के मुस्लिम विरोधी गुप्त एजेंडे को लागू करने में लगी हुई है.
उन्होंने कहा कि मुस्लिम विरोधी हिंसा में गठित अनेकों जांच आयोगों और पुलिस महकमे द्वारा खुद भी इस बात को कई बार स्वीकार किया गया है कि पुलिस दंगों के दौरान हिंदुत्वावादी मानसिकता के तहत मुस्लिम विरोधी तत्वों को न केवल खुली छूट देती है, बल्कि उसके साथ हिंसा में शामिल भी होती है. इसलिए आज यह ज़रूरी हो जाता है कि मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करने में फेल साबित हो चुका राज्य मशनरी उनको आत्म रक्षा के लिए हथियार मुहैया कराए और उनके खिलाफ भेद-भाव और हिंसा को रोकने के लिए दलित ऐक्ट की तरह माइनॉरिटी ऐक्ट बनाए.
उन्होंने कहा कि अगर मुज़फ्फ़रनगर में मुसलमानों के पास सरकारी असहले होते तो शायद साम्प्रदायिक हिंसा की घटना हुई ही नहीं होती, क्योंकि तब वे हत्यारी समूहों जिनके पास लायसेंसी हथियारों का जखीरा था का, मुक़ाबला कर सकने में सक्षम होते. इसी तरह हाशिमपुरा और मलियाना भी नहीं होता, क्योंकि तब वे हत्यारे पीएसी के जवानों का मुकाबल कर सकते थे.
उन्होंने कहा कि समाज के कमजोर तबके को निहत्था मरने के लिए छोड़ कर कोई लोकतंत्र नहीं टिक सकता.
Note: Image used in this story is only for representational purpose.