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अलविदा सूरजकुंड मेला…

Nikhat Perween for BeyondHeadlines

गांव जो वास्तविक रुप में गांव नहीं है. उसके अंदर जाने के कई रास्ते और हर रास्ते में मिलने वाली कच्ची दिवारों पर खूबसुरती से बनी पक्की पेंटिग को देख कर ही अहसास हो जाता है कि अंदर किस खूबसुरती का दीदार होने वाला है.

क़दम बढ़ने के साथ लोगों की भीड़ भी बढ़ती जाती है. समय-समय पर लाउडस्पीकर से होने वाली घोषणा की तेज़ आवाज़ के बीच एक अनोखी आवाज़ लोगों का ध्यान और नज़र अपनी ओर खिंचती है. ज़रा सी नज़र उठाकर देखने पर चारों तरफ तेज़ रफ़्तार से गोल गोल चक्कर लगाता एक शानदार हैलिकॉप्टर नज़र आता है.

इन दृश्यों को देखकर अंदर जाने का उत्साह और बढ़ जाता है. जी हाँ! ये दृश्य है हरियाणा राज्य के ज़िला फ़रीदाबाद के सूरजकुंड गांव के 40 एकड़ क्षेत्र में 1-15 फरवरी तक लगने वाले 30वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला का, जो अब समाप्त हो चुका है.

SurajKund Mela

लेकिन क्या इस गांव नुमा मेले का आकर्षण भी लोगों के मन मस्तिष्क से इसकी समाप्ति के बाद ही समाप्त हो जाएगा. इस बारे में जब मैंने मेले के आख़िरी दिन कुछ लोगों से बात की तो जम्मू-कशमीर राज्य से आए मोहम्मद रफ़ीक़, जिन्होंने मेले में कशमीरी कपड़ो की दुकान लगाई थी. उन्होंने बताया कि –‘मैं इस मेले में पहली बार ज़रुर आया हूं, लेकिन यहां आने के बाद महसुस ही नहीं हुआ कि ये जगह मेरे लिए नई है. यहां से बहुत कुछ सीखकर और ढेर सारी यादें लेकर जा रहा हूं. बिक्री भी ठिक-ठाक हुई है. इन्शा-अल्लाह अगली बार भी आने की पूरी कोशिश करुंगा.’

पश्चिम बंगाल से आई नरगिस, जिन्होंने मेले में खादी और तात से बने हुए कपड़ों की दुकान लगाई थी, कहती हैं –‘जितना सोचकर आई थी, उतनी बिक्री तो नहीं हुई. लेकिन आने वाले सभी देशी और विदेशी खरीददार इतनी अच्छी तरह मिलते जुलते हैं कि उनसे एक रिश्ता सा बन गया है. कई विदेशी महिलाओं ने तो इस काम के बारे मे मुझसे ढेर सारी जानकारी ली और मुझसे संपर्क करने के लिए मेरा नंबर भी लिया. पैसो का तो पता नहीं, लेकिन इस मेले के कारण मुझे अब कई विदेशी दोस्त भी मिल गई हैं. जिसके लिए मैं इस मेले की हमेशा शुक्रगुज़ार रहुंगी.’

SurajKund Mela

बिहार के मधुबनी ज़िले से आई ज्वालामुखी देवी ने अपने छोटे भाई दिनेश के साथ मधुबनी पेंटिग की स्टॉल लगाई थी. मेले के बारे मे बताती हैं –‘मधुबनी पेंटिग बिहार की एक अलग पहचान तो है ही, लेकिन मेले में हमें जगह मिलने के कारण न सिर्फ़ मधुबनी पेंटिग को, बल्कि कलाकार के रुप में हम भाई-बहन को भी लोगों के बीच नई पहचान मिल रही है. रोज़ की बिक्री अच्छी हो जाती है. मेले का समय अगर 15 दिनों से ज्यादा होता तो और भी अच्छा होता. वैसे यहां का अनुभव हमेशा याद रहेगा अब अगले साल लगने वाले मेले का इंतजार है.’

जहां एक ओर मेले में अपनी-अपनी बिक्री को लेकर कुछ दुकानदार संतुष्ट तो कुछ असंतुष्ट दिखें. तो वहीं दूसरी ओर मेले में साफ़ सफ़ाई का बीड़ा उठाने वाले कई सफाई-कर्मियों में से एक मधु जो फ़रीदाबाद ज़िले की रहने वाली हैं. जब उनसे मेले के अनुभव के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया –‘मुझे मेरी नन्द ने यहां काम दिलवाया है. 15 दिन सफाई करने के अच्छे खासे पैसे मुझे मिल जाएंगे. सुबह साढ़े दस बजे से लेकर रात के साढ़े आठ बजे तक ये मेला चलता है. हम अपने सुपरवाईजर के आदेश पे कुछ-कुछ समय बाद अपने अपने जोन में मेले का चक्कर लगाते हैं और सफाई करते हैं. लेकिन फिर भी थकावट का अहसास ज़रा भी नहीं होता, क्योंकि यहां रोज़ किसी न किसी स्कूल के बच्चे घुमने आते हैं. उनके चेहरे की खुशी देखकर मेरी सारी थकान दुर हो जाती है. हम जैसे लोगो को भी इस मेले ने रोज़गार दिया है. ये बड़ी बात है.’

SurajKund Mela

मेले में आए स्कूल के कुछ बच्चों ने बताया –‘हमारे लिए बहुत ही नया और अनोखा अनुभव है. मेले को गांव का रुप दिया गया है, वो बहुत अच्छा लगा. हाँ! टॉयलेट ज्यादा साफ़ नहीं है. बाकी खाने-पीने की कई चीजों में केसर कुल्फी बहुत टेस्टी लगी. हमने बायोस्कोप भी देखा. बहुत मस्ती की. अगली बार भी ग्रुप में आना चाहेंगे, तब तक के लिए बाय-बाय सूरजकुंड मेला…’

ज़िला फ़रीदाबाद से ही अपनी मां के साथ आई विरेन्द्री कहती हैं –‘मैं पिछले कई सालों से इस मेले में आ रही हूं और हर साल बेसब्री से मेले का इंतज़ार करती हूं, क्योंकि हर बार यहां घर और खुद को सजाने के लिए एक से बढ़कर एक चीजें मिल जाती हैं, जिन्हें खरीदना मुझे काफी पंसद है.’

गुड़गांव से आए मारियो नरोना  कहते हैं –‘मैं पहली बार आया हूं. लेकिन काफी अच्छा अनुभव रहा. मैंने कोई ख़रीददारी नहीं कि क्योंकि चीजें कुछ ज्यादा ही मंहगी लगी. पर मैंने अन्य देश एंव राज्यों से आए हमारे कलाकारों और पर्यटकों से खूब बातें की और उनके काम की भी जानकारी ली. शहर की भीड़-भाड़ से दूर आज यहां आकर एक बार फिर से इस बात का एहसास हुआ कि हमारे देश की पहचान गांव में ही रची बसी है.’

शाहिन बाग की यास्मीन कहती हैं –‘मेले को उपर से दिखने के लिए हैलीकॉपटर का इंतज़ाम किया गया है, लेकिन अगर ये थोड़ा सस्ता होता तो ज्यादा अच्छा था. फिर भी मैंने और बच्चों ने मेले में खूब मस्ती की. बच्चे भी काफी खुश हैं.’

लोगों की बातों से साफ़ झलक रहा है कि इस मेले ने पिछले पंद्रह दिनों तक क्या बच्चे, क्या बड़े, क्या बुढ़े, क्या जवान, क्या देशी, क्या विदेशी, अपने सभी मेहमानों का खूब मनोरंजन किया, जिस कारण हर कोई इस मेले से लंबे समय तक जुड़ाव महसुस करेगा और अगले सूरजकुंड मेले का इंतजार भी.

भागदौड़ भरी जिंदगी में जिस तरह सूरजकुंड मेले ने लोगों में एक नई उर्जा भरी है. उसके लिए हम सबकी तरफ़ से इस मेले को दिल की गहराईयों से शुक्रिया और अलविदा सूरजकुंड मेला…

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