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जलवायु परिवर्तन ले सकता है पांच लाख अतिरिक्त लोगों की जान

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 1, 2016 2 Views
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5 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

‘जलवायु परिवर्तन वर्ष 2050 में पांच लाख से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बन सकता है. ऐसा कम फसल उत्पादन की वजह से खुराक और शरीर के भार में परिवर्तन के कारण होने की आशंका है. इतना ही नहीं, वर्ष 2050 तक फल और सब्जी के सेवन में कमी से मौतों की संख्या कुपोषण से होने वाली मौतों के मुक़ाबले दोगुनी हो सकती हैं. भोज्य पदार्थों के उत्पादन में बदलाव से होने वाली पर्यावरण सम्बन्धी मौतों में से तीन चौथाई मौतें चीन और भारत में होने का अनुमान है.’

इस तथ्य का खुलासा ‘द लांसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन से हुई है. यह अध्ययन इस बात का अब तक का सबसे पुख्ता प्रमाण है कि जलवायु परिवर्तन खाद्य उत्पादन तथा सेहत के लिये पूरी दुनिया में बुरे परिणाम लाने वाला साबित हो सकता है.

ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में फ्यूचर ऑफ फूड के ऑक्सफोर्ड मार्टिन प्रोग्राम से जुड़े डॉक्टर मार्को स्प्रिंगमन की अगुवाई में किया गया यह अध्ययन अपने आप में ऐसा पहला अध्ययन है जो खुराक के संयोजन और शरीर के भार पर जलवायु परिवर्तन के असर का आंकलन करता है, साथ ही वर्ष 2050 तक इसके ज़रिये दुनिया के 155 देशों में मरने वाले लोगों की संख्या का अनुमान भी पेश करता है.

डॉक्टर स्प्रिंगमन ने स्पष्ट  किया “अनुसंधान का ज्यादातर हिस्सा खाद्य सुरक्षा पर केन्द्रित रहा, लेकिन कुछ हिस्से में कृषि उत्पादन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले व्यापक प्रभावों पर भी रोशनी डाली गयी है. भोजन की उपलब्धता और उनके सेवन में बदलाव भी खुराक तथा भार सम्बन्धी जोखिमों जैसे कि फल और सब्जियां कम खाना, लाल मांस का ज्यादा सेवन और शरीर का वज़न ज्यादा होना आदि पर असर डालते हैं. ये सभी चीजें दिल की बीमारी, लकवा और कैंसर जैसे गैर-संचारी रोगों के साथ-साथ उनसे होने वाली मौतों की संख्या को भी बढ़ाती हैं.”

डॉक्टर स्प्रिंगमन ने कहा “हमारे शोध के नतीजे बताते हैं कि प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता में थोड़ी सी कमी भी शरीर की ऊर्जा और खुराक के संयोजन में बदलाव ला सकती है और इन परिवर्तनों से सेहत को खासा नुक़सान सहन करना पड़ेगा.”

अध्ययन में यह भी खुलासा किया गया है कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर कमी नहीं लायी गयी तो वर्ष 2050 तक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में अनुमानित सुधार की सम्भावनाएं एक तिहाई तक कम हो जाएगी. इससे प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता में औसतन 3.2% (99 कैलोरी प्रतिदिन), फल तथा सब्जी के सेवन में 4%, (14.9 ग्राम प्रतिदिन) और लाल मांस की खपत में 0.7% (0.5 ग्राम प्रतिदिन) की कमी आएगी.

अध्ययन मे लगाये गये अनुमान के मुताबिक़ इन बदलावों से वर्ष 2050 में क़रीब पांच लाख 29 हजार अतिरिक्त मौतें होंगी. अगर तुलना करें तो जलवायु परिवर्तन ना होने की स्थिति में भविष्य में खाद्य उपलब्धता और खपत में होने वाली बढ़ोत्तरी से 1.9 मिलियन (19 लाख) मौतों को होने से रोका जा सकता है.

इन हालात से सबसे ज्यादा प्रभावित होने की आशंका वाले देशों में वे मुल्क शामिल हैं, जो निम्न और मध्य आय वर्ग के हैं. इनमें वेस्ट‍र्न पैसिफिक क्षेत्र (264000 मौतें) और दक्षिण एशिया (164000) के देश प्रमुख रूप से शामिल हैं. साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तीन चौथाई मौतें तो चीन (248000) और भारत (136000) में ही होने की आशंका है.

अहम बात यह है कि अध्ययन-कर्ताओं का कहना है कि प्रदूषणकारी तत्वों  के उत्सर्जन में कमी लाने से स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ हो सकते हैं. ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली मौतों की आशंका को 29 से 71 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. हालांकि यह इस दिशा में की जाने वाली कार्रवाई की मज़बूती पर निर्भर करेगा.

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