‘कैसी खामोशी, कैसा सुनापन होगा उनके घरों में?’

Beyond Headlines
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Nikhat Perween for BeyondHeadlines

उस दिन मेट्रो में और दिनों की तरह ज्यादा भीड़ नहीं थी. लेकिन फिर भी खड़े होने के लिए जगह कम पड़ रहे थें. क्योंकि दो नौजवान लड़के बड़े ही शानदार अंदाज़ में मेट्रो की फ़र्श पर विराजमान थे. शायद इसलिए बाकी सारे पैसेंजर उन्हें घूर रहे थे. सबकी नज़रें बता रही थीं कि उन्हें लड़को के इस हरकत पर कितना गुस्सा आ रहा है. लेकिन उनसे कुछ कहने का कष्ट कोई उठाना नहीं चाहता था.

आखिरकार एक अंकल जी से रहा नहीं गया. उन्होंने दोनों से उठने के लिए कहा, लेकिन दोनों उठने के बजाए बहस करने लगें. बेतुकी बहस जो साफ़-साफ़ बता रही थी कि उन्हें बड़ों से बात करने का सलीका नहीं मालूम.

अभी ये बहस ख़त्म भी नहीं हुई थी कि अचानक एक आंटी जी मेरे पास आकर खड़ी हुई. काफी परेशान दिख रही थी और इसी परेशानी में जब उन्होंने पर्स से मोबाइल और चार्जर निकाला तो मालूम हुआ कि वो डिसचार्ज मोबाईल की वजह कर परेशान हैं.

उन्होंने जब चार्जर लगाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो मैंने कहा –लाईए आंटी! मैं कर दूँ? इस छोटी सी मदद के बदले उनके चेहरे पर अजीब सी खुशी और हाँ मुस्कुराहट थी. काफी देर तक हम दोनों चुपचाप खड़े थे. कुछ स्टेशन पार करने के बाद आखिरकार आंटी जी को सीट मिल गई और मुझे भी.

फिर आंटी ने अपना मोबाईल चेक किया. देख रही थी कि कितना चार्ज हुआ है. जैसे ही आंटी ने मोबाईल ऑन किया स्क्रीन पर एक प्यारी सी लड़की का चेहरा दिखा.

मुझसे रहा नहीं गया तो पुछ ही लिया –आंटी! ये कौन है? हालांकि दिल ही दिल मे सोच रही थी कि मुझे पुछना चाहिए था या नहीं. पर खुदा का शुक्र है कि आंटी ने मुझे इग्नोर नहीं किया, बल्कि मुस्कुराते हुए उत्साहित होकर कहा –कौन ये? ये तो मेरी नतनी है. बहुत शैतान है. बहुत शरारती है. सबसे दोस्ती कर लेती है. आपसे कभी मिलेगी तो सीधे कहेगी आप मरी मोछी हो ना?

तुतलाती है ना, इसलिए मौसी को मौछी बोलती है. लेकिन उसकी तोतली बोली और प्यारी लगती है. मुझसे बहुत प्यार करती है और फोन पर खूब बातें करती है. उससे बात करके ही ऑफिस की सारी थकान दुर हो जाती है. मूड एकदम फ्रेश हो जाता है. वगैरह-वगैरह…

मैं आंटी की बातें मज़े लेकर सुन रही थी. तभी आंटी ने पुछा आपको कहां उतरना है? क्या आप जॉब करते हो? मैंने कहा –जी!

ओह अच्छा बहुत अच्छा है. इन बातों में आंटी का स्टेशन आ गया. वो चली गई और मैं सोचती रही कि वाक़ई बच्चे भगवान का रुप होते हैं. मासूम और ईमानदार… उनके होने से घरों में रौनक होती है. और हम जैसे लोगों के लिए तो उनकी बातें, उनकी हरकतें किसी दवा से कम नहीं, जिसे सुनकर उनके साथ खेलकर दिन भर की सारी थकान, सारी फिक्र, यकीनन दुर हो जाती है. लेकिन इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जिनके घर विरान हैं. क्योंकि वो बेऔलाद हैं.

हाँ! इंडियन सोसाईटी फॉर अस्सिटेड रिर्पोडक्शन (आई.एस.ए.आर) की रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ हमारे देश मे 31-40 साल के बीच के कुल 46% दांपत्य  बेऔलाद होने के दुख झेल रहे हैं. कैसी खामोशी, कैसा सुनापन होगा उनके घरों में? इस सोच में डुबी ही थी कि मेरा स्टेशन आ गया और अपनी मंज़िल की तरफ़ चल पड़ी…

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