BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: जब जॉब की वजह से भाई ने डेढ़ साल तक बात नहीं की
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Young Indian > जब जॉब की वजह से भाई ने डेढ़ साल तक बात नहीं की
Young Indianबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

जब जॉब की वजह से भाई ने डेढ़ साल तक बात नहीं की

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 18, 2016
Share
5 Min Read
SHARE

Fatima Farheen for BeyondHeadlines

‘कुछ लम्हे बहुत ख़ुशी के होते हैं. जब मेरा रिज़ल्ट आया, मेरे घर वालों ने दोपहर के खाने पर मेरा इंतज़ार किया.’

ये कहना है दक्षिणी दिल्ली में एक छोटे से इलाक़े जैतपूर में मौजूद ‘पहचान कोचिंग सेन्टर’ से पढ़कर फ़र्स्ट डिवीज़न से पास करने वाली मुबीना का.

गुरुवार को पहचान से जुड़ी लड़कियों की कामयाबी को मीडिया के साथ शेयर करने के लिए वीमेन्स प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कान्फ़्रेन्स में मुबीना ने ये बातें कहीं.

mubina

मुबीना कहती हैं, ‘ब्रेन ट्यूमर के कारण अब्बू की मौत हो गई थी. उनकी बीमारी के वक़्त से ही घर की माली हालत ख़राब हो गई थी. इसकी वजह से मेरी और मेरी बहन की पढ़ाई छुड़ा दी गई थी.’

मुबीना को 2010 में पहचान कोचिंग सेन्टर के बारे में पता चला और वो ‘पहचान’ से जुड़ गईं.

वो कहती हैं, ‘कुछ मेरा पढ़ाई का शौक़ और कुछ पहचान सेंटर चलाने वाली फ़रीदा आपा की मेहनत थी कि आठ साल के बाद पढ़ाई से जुड़ने के बावजूद मैं 10वीं में सेकंड डिवीज़न ला पाई.’

मुबीना कहती हैं, ‘पढ़ाई फिर से शुरू करने और आर्थिक स्थिति के कारण जॉब करने पर रिश्तेदारों और आस-पड़ोस वालों ने सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया. दोस्तों और रिश्तेदारों ने मेरे भाई को बहुत ताने सुनाए, जिसकी वजह से मेरा भाई मुझसे डेढ़ साल तक नाराज़ रहा और मुझसे बात नहीं की.’

लेकिन 12वीं का रिज़ल्ट आने के बाद हालात एक दम से बदल गए.

‘रिज़ल्ट निकलने के वक़्त मैं घर पर नहीं थी और मेरे घर वालों में मुझसे पहले मेरे पास होने की ख़बर मिल चुकी थी. जब मैं घर आई तो मेरी ख़ुशी का उस वक़्त ठिकाना नहीं रहा, जब मैंने देखा कि मेरे घर वाले और ख़ासकर मेरा वही भाई दोपहर के खाने पर मेरा इंतज़ार कर रहा था.’

मुबीना कहती हैं कि पढ़-लिखकर समाज की सोच बदली जा सकती है और वो भी आगे चल कर उन लड़कियों की मदद करना चाहती हैं, जिनकी किसी भी वजह से बीच में ही पढ़ाई छूट गई है.

ये कहानी अकेली मुबीना की नहीं है. जैतपूर में ‘पहचान’ संस्था जिन बच्चियों के लिए काम करती है, वहां शायद सबकी कहानी एक जैसी ही है.

रूक़ैय्या जब पांचवी क्लास में थीं तो उनकी मां का तलाक़ हो गया और उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. लेकिन पहचान से जुड़ने के बाद उन्होंने दोबारा पढ़ाई शुरु की और 10वीं में फ़र्स्ट डिवीज़न हासिल किया.

फ़रहा नाज़ भी पांचवी में थी जब पढ़ाई छूट गई. ‘पहचान’ ने उन्हें भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया. फ़रहा ने 12वीं क्लास फ़र्स्ट डिवीज़न में पास किया. उसके बाद टीचर्स ट्रेनिंग किया और अब ग्रेजुएशन कर रही हैं.

सुमय्या भी एक टूटे हुए परिवार से आती हैं. 2012 में ‘पहचान’ से जुड़ी, 10वीं और 12वीं फ़र्स्ट डिवीज़न से पास करने के बाद नर्सरी प्राइमेरी टीचर्स ट्रेनिंग कर रही हैं.

रूहीन के पिता रोज़ाना काम की तलाश करने वाले मज़दूर थे. रूहीन ने पहचान से जुड़कर पहले 10वीं और 12वीं की और अब दिल्ली वीमेंस पॉलिटेकनिक से फ़ैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स कर रही हैं. फ़र्स्ट ईयर में उन्हें फ़र्स्ट डिवीज़न मिला है.

जैतपूर में 2011 से काम कर रही ‘पहचान’ संस्था की वजह से अब तक क़रीब 50 लड़कियों ने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी है.

हो सकता है ये संख्या कोई बहुत ज़्यादा नहीं हो, लेकिन समाज के जिस हिस्से से ये लड़कियां आती हैं और जिन मुश्किलों में ‘पहचान’ संस्था काम करती है, उस लिहाज़ से देखा जाए तो ये काम सचमुच में तारीफ़ के क़ाबिल है.

‘पहचान’ सेंटर चलाने वाली फ़रीदा ख़ान कहती हैं कि उन्हें घर-घर जाकर लोगों से अपील करनी पड़ती है कि वो अपनी बच्चियों की दोबारा पढ़ाई शुरु करवाएं.

पहचान की एक ट्रस्टी और जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी कहती हैं कि मुस्लिम समाज के एक हिस्से का नज़रिया लड़कियों की शिक्षा को लेकर यक़ीनन नकारात्मक है, लेकिन ये सरकार की ज़िम्मेदारी पर भी सवाल खड़े करता है.

शबनम के अनुसार जैतपूर में क़रीब 4-5 किलोमीटर तक कोई सरकारी स्कूल नहीं है और लड़कियों को दूर भेजना सुरक्षा का एक मुद्दा है, जिसके कारण मां-बाप आसानी से तैयार नहीं होते.

शबनम कहती हैं कि समाज के सभी वर्गों को सुरक्षा का विश्वास दिलाना और घर के नज़दीक से नज़दीक सरकारी स्कूल खोलना या किसी भी तरह से पढ़ाई का इंतज़ाम कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है.

TAGGED:Editor's PickPehchan
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
I WitnessWorldYoung Indian

The Earth Shook in Istanbul — But What If It Had Been Delhi?

May 8, 2025
EducationIndiaYoung Indian

30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…

May 8, 2025
Waqf FactsYoung Indian

World Heritage Day Spotlight: Waqf Relics in Delhi Caught in Crossfire

May 10, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?