पीर मुहम्मद मूनिस भी एक ऐसी ही आत्माओं में से थे…

Beyond Headlines
Beyond Headlines
3 Min Read

By Afroz Alam Sahil

गणेश शंकर विद्यार्थी ने कभी अपने अख़बार ‘प्रताप’ में लिखा था कि, ‘हमें कुछ ऐसी आत्माओं के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त है जो एक कोने में चुपचाप पड़ी रहती हैं. संसार उनके विषय में कुछ नहीं जान पाता. इन गुदड़ी के लालों का जितना कम नाम होता है उनका कार्य उतना ही महान, उतना ही लोकोपकारी. वे छिपे रहेंगे, प्रसिद्धि के समय दूसरों को आगे कर देंगे. किन्तु कार्य करने एवं कठिनाईयों को झेलने के लिए सबसे आगे दौड़ पड़ेंगे. श्रीयुत पीर मुहम्मद मूनिस भी एक ऐसी ही आत्माओं में से थे. आप उन आत्माओं में से थे जो काम करना जानते थे. चंपारण के नीलहे गोरों का अत्याचार चम्पारण-वासियों को बहुत दिनों से असहनीय कष्ट सागर में डाले हुए था. देश के किसी भी नेता का ध्यान उधर को न गया, किन्तु मित्रवर पीर मुहम्मद मूनिस बेतिया-चम्पारण-वासियों की दशा पर आठ-आठ आंसू रोए थे. आप ही ने महात्मा गांधी को चम्पारण की करुण कहानी सुनाई और वह आपके ही अथक परिश्रम का फल था कि महात्मा गांधी की चरणरज से चम्पारण की भूमि पुनित हुई थी…’

यक़ीनन मूनिस ने कभी अपने नाम व अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा. वो प्रताप में हमेशा अलग-अलग नामों से लिखते रहें. ‘दुखी’, ‘दुखी आत्मा’, ‘दुखी हृदय’, ‘सहानुभूति के हृदय’, और ‘भारतीय आत्मा’ जैसे कई छद्म नाम थे. इनके परिवार से बावस्ता रहे लोग बताते हैं कि कई लेख तो इन्होंने ऐसे ही लिखकर लोगों को दे दिया, जिसे लोग खुद के नाम से छापकर अपनी तारीफ़ें बटोरीं… राजकुमार शुक्ल को भी मूनिस ने ही हिरो बनाया. मूनिस ने गांधी को पत्र लिखा लेकिन नाम अपना देने के बजाए राजकुमार शुक्ल का लिख दिया. ये वही राजकुमार शुक्ल थे, वो अंग्रेज़ों के हामी व समर्थक रहे बेतिया राज के मुहर्रिर थे और सुद पर पैसा चलाते थे. यानी सुदखोरी इनका अहम पेशा था. और कई पत्रों में मिलता है कि चम्पारण के किसान अंग्रेज़ों से अधिक भारतीय सुदखोरों से परेशान थे…

(ये स्टोरी अफ़रोज़ आलम साहिल के फेसबुक टाईमलाइन से ली गई है.)

 

 

 

Share This Article