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Reading: देश के हर किसान नेता को यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए
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देश के हर किसान नेता को यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 26, 2017
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8 Min Read
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Afshan Khan for BeyondHeadlines

‘चम्पारण में महात्मा गांधी कोई जादू की छड़ी लेकर नहीं आए थे, बल्कि यहां के किसानों को संगठित और मोर्चाबंद करने में शेख़ गुलाब का महत्वपूर्ण योगदान था, जिसके बूते गांधी जी ने ‘चम्पारण सत्याग्रह’ का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और भारतीय राजनीति के शीर्षस्थ और महान नेता के रूप में स्थापित हुए.’

‘शेख गुलाब: नील आंदोलन के एक नायक‘ अफ़रोज़ आलम साहिल द्वारा लिखी गई एक पुस्तक, जो इन दिनों सोशल मीडिया में काफी चर्चे में है.

लेखक अपनी पुरानी पुस्तकों के लिए इसलिए जाने जाते हैं क्योंकि वो परिश्रम से इतिहास के सच को लोगों के सामने लाने का प्रयास करते हैं. शेख़ गुलाब इसी मेहनत का नतीजा लगती है.

कोई भी पाठक इसे पढ़कर इस बात का अनुमान लगा सकता है कि किसी गुमनाम हस्ती को बिना इतिहास के पन्नों में ढूंढना कितना मुश्किल काम है. यह किताब साफ़–साफ़ इस बात की तरफ़ संकेत करती है कि इतिहास ने जिन लोगों को हीरो बनाकर पेश किया है और ग्लैमराइजेशन में सजा कर पेश किया है, ज़रूरी नहीं है कि वही असली हीरो हों.

यह किताब यक़ीनन शेख़ गुलाब के लीडरशिप क्वालिटी और उनके उम्दा चरित्र को उजागर करती है. जैसा कि लेखक लिखा हैं कि किस तरह से शेख़ गुलाब ने अपने साथियों के साथ मिलकर अय्याश अंग्रेज़ से एक महिला को बचाया.

यहां यह भी स्पष्ट रहे कि शेख़ गुलाब ने पूरी लड़ाई किसान समाज के लिए लड़ी थी. गांधीजी के अफ्रीका से आने से पहले ही चम्पारण के साठी के किसानों द्वारा आंदोलन शुरू किया जा चुका था, जिसका नेतृत्व शेख़ गुलाब ही कर रहे थे.

यह किताब इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि गांधी के आने के बाद का इतिहास सबने लिखा है, लेकिन उससे पहले क्या हुआ? कैसे किसानों का आंदोलन बढ़ता गया? शेख़ गुलाब और गांधी के बीच की बातचीत में क्या हुआ? ये किसी इतिहास लिखने वाले ने नहीं लिखा है.

लेखक बहुत ख़ूबसूरती से ये बताते हैं कि किस तरह से शेख़ गुलाब को तरह–तरह के लालच  दिए जाते थे, लेकिन वो थे कि अपनी बात पर अड़े रहे और लोगों को एकसाथ अंग्रेजों के ख़िलाफ़ खड़ा करने में सफल रहे और कई बार जेल गए.

इस पूरी कहानी को पढ़ने के बाद हमें न केवल शेख़ गुलाब, बल्कि उनके साथियों के बारे में भी जाने को मिलता है और साथ ही ब्रितानी शासन की कड़वी यादें भी ताज़ा हो जाती हैं. ज़मींदारी प्रथा और रैयतों का ज़ुल्म सब कुछ साफ़–साफ़ दिखाई देता है और ब्रितानी एडमिनिस्ट्रेशन का काम करने का तरीक़ा भी पता चलता है.

शेख़ गुलाब का गांधी के सामने इज़हार झकझोर देने वाला है. लेखक अपनी किताब में एक जगह लिखते हैं, भले ही किसी भी लेखक या इतिहासकार ने शेख़ गुलाब व गांधी के मिलने का ज़िक्र न किया हो, उनके दर्ज हुए बयान का ज़िक्र न किया हो, लेकिन प्रताप अख़बार की रिपोर्ट शेख़ गुलाब के ऐतिहासिक बयान की रिपोर्टिंग कुछ इस प्रकार की है. —‘30 अप्रैल, 1917 को 4 बजे सुबह की ट्रेन से महात्मा गांधी अपने साथ एक वकील को लेकर बेतिया से साठी के लिए रवाना हुए. 6 बजे साठी पहुंचे. साठी स्टेशन पर बहुत से कृषक एकत्र थे. स्टेशन पर उतरकर महात्मा जी बेतिया राज्य के भूतपूर्व तथा साठी कोठी के वर्तमान मैनेजर मिस्टर स्टीव सी.आई. ई. से मिले. उन्हीं के सामने चांदबरवा के शेख़ गुलाब का इज़हार हुआ. शेख़ गुलाब ने अपने इज़हार में बतलाया कि ‘मिस्टर स्टीव के पहिले इस कोठी के मैनेजर मिस्टर काफिन थे. मिस्टर काफिन बेतिया राज्य के भूतपूर्व मैनेजर मिस्टर जे. आर. लुईस के श्वसुर थे. उनका अत्याचार हम लोगों पर अधिक हुआ. उन्होंने ‘तिनकठिया’ के बदल 3 रूपया ‘पईन–खर्चा’ फी बीघा का नाजायज़ कर हमलोगों से वसूल किया. ‘हम लोग 1908 में कोठी के इस नाजायज़ कर वसूल करने के विरुद्ध उठ खड़े हुए और उसका फल यह हुआ कि हम लोगों पर (5-6 व्यक्तियों को दिखला कर) दफ़ात 505, 506 आदि क़ानून फ़ौजदारी के दोष लगाए गए और हमलोगों 6 महीने से 5 वर्ष तक के जेल का दुख सहना पड़ा. मैं (शेख़ गुलाब) 5 वर्ष तक जेल में सड़ाया गया क्योंकि मैं ही सब का अगुआ समझा गया था. जेल ही में मेरी आंखें दवा लगा–लगाकर ख़राब कर दी गईं. जिससे आज तक मैं दुख उठा रहा हूं. मेरा लड़का, भाई आदि सब जेल भेज दिए गए. 6 महीने तक मेरे द्वार पर पुलिस तैनात रही, जो शांति रक्षा का ढकोसला फैलाकर हमीं लोगों से खर्चा वसूल कर अपना पेट पाला करती थी. मेरा घर लूट लिया गया और मेरा हज़ारों मन गन्ना बरबाद कर दिया गया. सर्वे सेटलमेंट के डिपुटियों की कृपा से ‘पईन खर्च’ तो इस समय बंद है मगर कोठी के और अत्याचार जैसे पहिले थे, वैसे अभी तक बने हैं.’

इस किताब को लेखक ने ऐसे अंदाज़ में लिखा है कि ज़रूरी नहीं है कि कोई एक्सपर्ट ही इसे पढ़ेगा या समझेगा, बल्कि कोई भी स्टूडेंट या आम इंसान इसे पढ़कर समझ सकता है. किताब छोटी–छोटी बारीकियों पर भी ध्यान देती है. जैसे कि राजकुमार शुक्ल शेख़ गुलाब के शागिर्द थे और उम्र में छोटे थे. गांधी जी जिस फ़सल को काटकर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुए, वो फ़सल शेख़ गुलाब ने लगाई थी. गांधी के आने से बहुत पहले ही ये आंदोलन ज़ोरों–शोर से बुलंद था और अंग्रेज़ बौखलाए हुए थे.

अंत मे लेखक ने कुछ संजीदा टिप्पणियां भी की हैं और कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाए हैं. गांधी जी की शेख़ गुलाब से मुलाक़ात हुई, बातचीत भी हुई और वो अगर इस बात से अवगत थे कि ये पूरा कारनामा शेख़ गुलाब ने अंजाम दिया है तो गांधी जी के किसी पत्र आदि में क्यों उनका नाम नहीं मिलता है? ना जाने लिखे गए इतिहास में कितने नायकों के साथ ये नाइंसाफ़ी हुई होगी. आखिर कौन है इसका ज़िम्मेदार. सरकार, इतिहासकार या वो लोग जिनके लिए इन योद्धाओं ने अपनी जान दांव पर लगा दी? 

पुस्तक का नाम : शेख़ गुलाब: नील आंदोलन के एक नायक

लेखक : अफ़रोज़ आलम साहिल

प्रकाशक : इंसान इंटरनेशनल पब्लिकेशन, जामिया नगर, इंडिया

पहला संस्करण : जून , 2017

क़ीमत : 120 रूपये

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