Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines
लातेहार : बीते साल लातेहार में दो मुसलमानों की हत्या करने वाले गो-रक्षकों का आतंक ज़मानत पर रिहा होने के बाद भी जारी है. बालूमाथ के क़ुरैशी मुहल्ले में बसने वाले हर शख़्स की ज़बान पर इनके आतंक की कहानी है. ज़मानत पर रिहा होने वाली आरोपी जहां पहले से आक्रामक हो गए हैं, वहीं पीड़ित अल्पसंख्यकों को लगता है कि उनके लिए इंसाफ़ अब दूर की कौड़ी होती जा रही है. झारखंड पुलिस उनकी एफ़आईआर तक दर्ज नहीं कर रही.
बालूमाथ के मुबारक क़ुरैशी (28 साल) के मुताबिक़ बजरंग दल से जुड़ा अरूण साहू जो लातेहर कांड का मुख्य आरोपी है, उन्हें पिस्टल निकालकर उन्हें गोली मारने की धमकी दे चुका है. मुबारक के मुताबिक़ उनसे एक लाख रूपये की फिरौती मांगी गई और मना करने पर ज़बरदस्ती जंगल में ले गए. फिर लाठी से पीट-पीटकर अधमरा कर दिया. इतना ही नहीं, साहू और उनके सहयोगियों ने पुलिस को बुलाया और कहा कि इसे आप मार दो. हालांकि पुलिस वालों ने मुझे अस्पताल में दाख़िल कराया. मैं 15 दिन रांची के रिम्स में एडमिट रहा, लेकिन इस कांड की एफ़आईआर नहीं लिखी गई.
ठीक एक साल पहले मो. हाशिम क़ुरैशी (60 साल) के साथ भी ऐसी ही घटना घटी. हाशिम बताते हैं कि, वो अपने दो दोस्तों के साथ पालने के लिए जानवर ख़रीद कर आ रहे थे. तब बरियातू में 15-16 लोगों ने रोक कर हमारे साथ मारपीट शुरू कर दी. ड्राईवर शमीम का सर फाड़ दिया. फिर हम तीनों को बांधकर सड़क के किनारे ले गए. ज़िन्दा जलाने की बात करने लगे. ऐसे में वहीं का एक आदमी पुलिस को फोन कर दिया. तब जाकर हमारी जान बची. लेकिन पुलिस ने इस मामले में भी कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं की. इन सभी मामलों को अंजाम देने वाले वही लोग हैं जिन्होंने मार्च 2016 में मज़लूम अंसारी और नाबालिग़ आज़ाद खान को मारकर पेड़ पर लटका दिया था.
क्या है लातेहार कांड
लातेहार ज़िला के झाबर गांव में 18 मार्च, 2016 को 32 साल के मज़लूम अंसारी और 12 साल के आज़ाद खान को पीट-पीटकर मार डाला गया था, फिर उनकी लाश को पेड़ में लटका दिया गया. दोनों के हाथ पीछे की ओर बंधे हुए थे.
इस हत्याकांड में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और गो-रक्षकों की भूमिका सामने आई थी. तब तो इस घटना पर ख़ूब शोर मचा था. भाजपा छोड़ तमाम राजनीतिक दलों के लोगों ने इस पर धरना-प्रदर्शन किया. साथ ही सीबीआई जांच कराने की मांग उठी. मगर इस मामले में गिरफ़्तार आठों आरोपी ज़मानत पर रिहा हो चुके हैं. और खुलेआम तौर पर अपना अगला शिकार ढ़ूंढ़ रहे हैं.
लातेहार ज़िले के नवादा गांव में तक़रीबन 250-300 घर हैं, लेकिन सिर्फ़ 55 घर ही मुसलमानों के हैं. मज़लूम अंसारी का पैतृक घर इसी गांव में है.
मज़लूम के छोटे भाई मनव्वर अंसारी (26 साल) बताते हैं कि, यहां हर वक़्त अपनी जान जाने का डर बना रहता है. सुरक्षा के लिए कोर्ट में अर्ज़ी दी थी, लेकिन सुरक्षा नहीं मिली.
वो बताते हैं कि, मामला लातेहार कोर्ट में चल रही है. 8 आरोपी पकड़े गए थे, लेकिन अब सब ज़मानत पर रिहा हैं. वहीं इस मामले में 5 गवाह हैं. पिछले डेढ़ सालों में सिर्फ़ 3 की ही गवाही हुई है. बस तारीख़ टलती रहती है.
मनव्वर बताते हैं कि, मेरे भाई के हत्यारे हर तारीख़ पर हीरो की तरह आते हैं. उनके साथ सैकड़ों समर्थकों की भीड़ होती है और हमारे साथ कभी-कभी कोई नहीं होता.
उनका यह भी आरोप है कि, 8 में से एक आरोपी का बाप हमारे गांव आया था, हमसे केस न लड़ने की गुज़ारिश की. वहीं मीडिया भी इसे ग़लत ख़बर के आधार पर इसका रूख मोड़ना चाहती है. वो इसे लूट का मामला बता रही है. प्रशासन भी रवैया भी हमारे प्रति सही नहीं है.
बता दें कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार पांचों आरोपियों के बयान से भी स्पष्ट है कि हत्या की मंशा गाय की रक्षा थी. यह कहीं से भी पशु धन की लूट का मामला नहीं है. (BeyondHeadlines के पास सबके बयान मौजूद हैं.)
वो आगे बताते हैं कि, भाजपा को छोड़कर तमाम दलों के नेता मेरे घर आए. कांग्रेस के लोहरदग्गा से विधायक सुखदेव भगत ने एक लाख रूपये की मदद भी की. क़ौम के लोगों ने भी आर्थिक रूप से साथ दिया. लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया. वो एक लाख रूपये मुवाअज़ा देने की कोशिश कर रहे थे, जिसे हमने लेने से मना कर दिया.
इस घटना में 12 साल के इम्तियाज़ खान की भी जान गई थी. इम्तियाज़ के घर वाले आराहरा गांव में रहते हैं. इस गांव में क़रीब 100 घर हैं. जिसमें सिर्फ़ 5-6 घर ही मुसलमानों के हैं.
इम्तियाज़ के पिता आज़ाद खान (40 साल) बताते हैं कि, गांव के ज़्यादातर लोग अब हमारे परिवार से बातचीत नहीं करते. वो अपने बेटे को याद करते हुए कहते हैं कि, मैं कैसा बदनसीब बाप हूं कि अपने बेटे को अपने सामने पिटते व मरते देखा, लेकिन कुछ नहीं कर सका… इतना कहते हुए वो रो पड़ते हैं. बता दें कि इस मामले में आज़ाद भी चश्मदीद गवाह हैं.
आज़ाद अपना टूटा हुआ पैर दिखाते हैं और कहते हैं कि, जब से पैर टूटा, तब से मेरा बेटा ही मेरा घर संभाल रहा था. हम शुरू से जानवरों को मेले में बेचने का काम करते आए हैं. समझ नहीं आ रहा है कि अब क्या काम करें.
आज़ाद कहते हैं कि, सरकारी वकील पर मुझे बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. कई बार देखा है कि वो लोग वकील के साथ ही होते हैं. उनसे हंस-हंसकर बात करते हैं और हमारा मज़ाक़ बनाते हैं. वैसे भी वकीलों से मैं तंग आ चुका हूं. बार-बार पैसे मांगते हैं. अब मैं बार-बार पैसे कहां से लाकर दूं.
इम्तियाज़ की मां नजमा बीबी की शिकायत है कि सारे नेता और क़ौम के लोग मज़लूम के घर ही आएं, मेरे घर सिर्फ़ वृंदा करात ही आई, उन्होंने 25 हज़ार रूपये की मदद की. इसके अलावा कांग्रेस राज्यसभा सांसद धीरज साहू ने एक लाख रूपये की मदद की.
बता दें कि आज़ाद के 7 बच्चे हैं, जिनमें 4 लड़कियां व 3 लड़के शामिल हैं. एक लड़की की शादी हो चुकी है और दो लड़कियां शादी करने लायक़ हो चुकी हैं.
मज़लूम की पत्नी सायरा बीबी (27 साल) डूमरटांड में रहती हैं. मज़लूम अपने 4 लड़कियां व एक लड़का छोड़ गए हैं. इनकी एक बच्ची फिलहाल बीमार है.
सायरा बताती हैं कि मज़लूम ज़्यादातर ससुराल में ही रहते थे. वो मेले में जानवरों के ख़रीद-बिक्री का काम करते थे. इन इस काम से शायद उन्हें समस्या थी, क्योंकि उनके लोग भी यही काम करते हैं. इनकी वजह से उनका जानवर नहीं बिक पाता था. इसलिए वो एक महीने पहले घर आकर धमकी भी दे चुके थे. सायरा अपनी ये बात कोर्ट में भी रख चुकी हैं.
दरअसल, मज़लूम अंसारी अपने दोस्त आज़ाद खान के साथ जानवरों के ख़रीद-फ़रोख्त का ही व्यापार करते थे. लेकिन आज़ाद का एक छोटे से एक्सीडेन्ट में पैर टूट जाने के बाद वो अपने बेटे इम्तियाज़ को इनके साथ भेजने लगे. 11 मार्च, 2016 को लातेहार में लगे पशु मेले से 8 बैल इन्होंने खरीदा. इन बैलों को लेकर मज़लूम अपने ससुराल डूमरटांड आ गए. 18 मार्च को टूटीलावा में मेला लगना था, इसलिए सुबह के क़रीब साढ़े तीन बजे वो अपने 8 बैलों के साथ पैदल ही घर से निकल पडे़. इनके साथ आज़ाद खान का बेटा इम्तियाज़ भी था. और पीछे से बाद में बाईक पर आज़ाद भी निकले और इसके अलावा इनके एक और पार्टनर निज़ाम भी गए. रास्ते में पड़ने वाले झाबर गांव के क़रीब तथाकथित गो-रक्षकों ने उनकी पिटाई की और उन्हें जंगल में एक पेड़ से लटका दिया.
पुलिस भी मानती है कि इन्हें दोषी
इसी साल जुलाई महीने में आरटीआई के जवाब में पुलिस ये मान रही है कि आठों आरोपियों के ख़िलाफ़ जो आरोप है, वो सत्य पाया गया है. ये बात खुद लातेहार के पुलिस अधीक्षक ने आरटीआई के जवाब में लिखित रूप में दिया है. लेकिन मज़लूम अंसारी के घर वालों व वकीलों का मानना है कि पुलिस ही इन्हें अदालत में बचाने का काम कर रही है.
रंजीत उरावं ने जब अपने आरटीआई के सवाल में ये पूछा कि हत्या में संलिप्त लोगों या संगठनों पर क्या कार्रवाई हुई? जांच एवं कार्रवाई की छाया-प्रति उपलब्ध कराई जाए तो इसके जवाब में लातेहार के पुलिस अधीक्षक का कहना है कि, इस कांड का पर्यवेक्षण अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी, लातेहार द्वारा किया गया है, परन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली द्वारा क्रिमिनल अपील संख्या 1424/2014 सुनीता देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य में पारित न्यायादेश के आलोक में महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक, झारखंड, रांची के कार्यालय ज्ञापांक -273/ मु. के अन्तर्गत आदेश पारित किया गया है कि ‘पर्यवेक्षण टिप्पणी की प्रति किसी भी व्यक्ति को उपलब्ध नहीं कराई जाए तथा इसकी गोपनीयता अच्छुण्य रखी जाए.’
बालूमाथ के तमाम गांव में डरे हुए हैं मुस्लिम युवा
बालूमाथ के आस-पास के गांवों में मुस्लिम युवा काफ़ी डरे हुए हैं. दरअसल, मज़लूम अंसारी व इम्तियाज़ खान की लाश के साथ जब यहां लोग सड़क जाम कर विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे. तो पुलिस ने इन पर लाठी चार्ज किया और फिर फायरिंग. इस घटना में कई लोग घायल हुए. इस मामले में प्रखंड विकास पदाधिकारी आफ़ताब आलम के बयान पर 10 लोगों को नामज़द और 150-200 लोगों पर एफ़आईआर दर्ज किया गया.
गांव के लोगों के मुताबिक़, इन 10 लोगों ने किसी तरह से अपनी ज़मानत कराकर गांव छोड़कर भागे हुए हैं. बाक़ी युवा भी डरे-सहमे हैं कि पता नहीं कब पुलिस उन्हें भी उस मामले में गिरफ़्तार कर लें.
नवादा, अमुवाटोली व बनियाटोली गांव के ज़्यादातर लोगों का आरोप है कि पुलिस हमें परेशान करती है. वहीं इस मामले को लेकर इम्तियाज़ के पिता आज़ाद खान महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है.
इन्होंने अपने पत्र में लिखा है, चंदवा थाना प्रभारी रतन कुमार सिंह ने ग़ैर-क़ानूनी ढंग से लाठी-चार्ज एवं 84 राउंड फायरिंग किया. भद्दी-भद्दी गालियां दी. कईयों के सर फोड़े, तो किसी का हाथ-पैर तोड़ डाले. साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित होकर मज़लूम अंसारी के बड़े भाई अफ़ज़ल अंसारी का दाढ़ी पकड़कर जान से मारने की धमकी दी. ये सब संविधान के अनुच्छेद —21 में दिए अधिकार का हनन है. पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने भी इस हत्याकांड की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की है.