अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines
सिविल सर्विस में जाने के लिए दुनिया छोड़ने की ज़रूरत नहीं है, आप दुनिया के बाक़ी काम करते हुए भी इसकी तैयारी कर कामयाब हो सकते हैं. कामयाबी की यही मिसाल अली अब्बास ने पेश की है. सैय्यद अली अब्बास को इस साल यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में 137वीं रैंक हासिल हुई है.
उत्तर प्रदेश के बहराईच शहर में दुलदुल हाउस, नाज़िरपुरा मोहल्ला में रहने वाले 29 साल के अली अब्बास के पिता सफ़दर रज़ा एक रिटायर्ड अधिकारी हैं. 2016 में भारत सरकार के सेन्ट्रल बेहराउसिंग कारपोरेशन से मैनेजर के पद से रिटायर हुए हैं. वहीं अम्मी ज़किया बेगम एक सरकारी प्राईमरी स्कूल में प्रिसिंपल थीं और 2017 में रिटायर हो चुकी हैं. छोटे भाई जौहर अब्बास घर पर ही रहते हैं, वहीं बहन कनीज़ फ़ातिमा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एम. आर्क कर रही हैं.
अली अब्बास ने दसवीं व बारहवीं की पढ़ाई बहराईच से ही की है. वहीं लखनऊ के इंटीग्रल यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन में बी.टेक की डिग्री हासिल की है.
बस यूं आया सिविल सर्विस में जाने का ख़्याल
अली अब्बास बताते हैं कि, मेरे घर, खानदान और आस-पास के इलाक़ों में भी सिविल सर्विस के लिए किसी ने ट्राई नहीं किया है, ऐसे में इसको लेकर कोई जागरुकता नहीं थी. बावजूद इसके जब मैं बी.टेक फाईनल ईयर में था तो मुझे लगा कि मुझे इधर ही जाना चाहिए. ये बात अपने घर वालों को बताई, उन्होंने भी कहा कि अगर आप करना चाहते हो तो फिर तैयारी करो. बस फिर क्या था. कॉलेज में जिस दिन मेरा आख़िरी पेपर था, उसके अगले ही दिन ट्रेन पकड़ कर मैं दिल्ली आ गया. तब मुझे कुछ नहीं पता था कि तैयारी कैसे करनी है. कौन सी कोचिंग ज्वाईन करनी है. बस एक ही धुन सवार था कि करना तो सिविल सर्विस ही है. इसलिए बाक़ी बच्चों की तरह मैं भी मुखर्जी नगर में रहने लगा और वहां एक क्लास ज्वाईन कर ली.
तैयारी करना नहीं था इतना आसान
अली अब्बास के लिए सिविल सर्विस की तैयारी करना इतना आसान नहीं था. तैयारी के दौरान होने वाले खर्च से अब्बास परेशान थे. उन्होंने ये भी सोचना शुरू किया कि आख़िर कब तक घर से पैसे मंगाते रहेंगे. इसी दौरान उन्होंने आईबीपीएस का फॉर्म भर दिया और बैंक ऑफ बड़ौदा में बतौर असिस्टेंट मैनेजर नौकरी मिल गई.
अली अब्बास बताते हैं कि, 2012 में मैंने ग़ाज़ियाबाद की राजनगर ब्रांच ज्वाईन कर लिया. यहां नौकरी शुरू करते ही सिविल सर्विस की तैयारी हल्की पड़ गई. लेकिन मैंने तैयारी नहीं छोड़ी. 8-9 घंटे की नौकरी के बाद जितना समय मिलता था, पढ़ता रहा. 2014 में फिर से एग्ज़ाम दिया, लेकिन इंटरव्यू तक पहुंच कर कुछ नंबरों से रह गया.
वो आगे बताते हैं कि, इसके बाद मेरा ट्रांसफर हापुड़ कर दिया गया. फिर मैं वहां चला गया. पूरे 5 साल नौकरी के बाद 2017 में लगने लगा कि बैंक की नौकरी करते हुए तैयारी नहीं कर पाऊंगा तो घर वालों से मश्विरा करके इस्तीफ़ा दे दिया और जामिया मिल्लिया इस्लामिया चला आया. यहीं रहकर तैयारी की और अब मैं सेलेक्ट हो चुका हूं.
अली अब्बास की पहली च्वाईस आईएएस थी. लेकिन उनका कहना है कि मुझे इस रैंक पर शायद ही आईaएस मिले, इसलिए अब आईपीएस बनकर ही देश की सेवा करना चाहता हूं.
लोगों के मन का डर दूर करना चाहता हूं…
आईपीएस बनकर आप क्या बदलना चाहेंगे? इस सवाल पर वो कहते हैं कि मेरी पहली ख़्वाहिश पुलिस को पब्लिक फ्रेंडली बनाने की है. पुलिस को लेकर लोगों के मन में जो डर है, मैं वो डर दूर करना चाहता हूं.
अली अब्बास कहते हैं कि, एडमिनिस्ट्रेशन और पब्लिक के बीच जो मिडल मैन है, इनको हटाने की ज़रूरत है. अगर किसी को कोई परेशानी है तो वो डायरेक्ट एसएचओ से सम्पर्क कर सके. उसे एफ़आईआर दर्ज करवाने के लिए किसी पावरफूल आदमी की ज़रूरत न हो. या फिर किसी को एसपी से मिलना है तो उसे पांच दिन का इंतज़ार करना पड़े. मैं ऐसा नहीं चाहता. इसे बदलना चाहता हूं.
मैं कैसे मान लूं कि आप जो ये वादा कर रहे हैं, इसे कर पाएंगे. क्योंकि शायद आपकी ट्रेनिंग ऐसी हो जाएगी कि ये सारे आदर्श आप भूल जाएंगे? इस पर अली अब्बास का कहना है कि देखिए, सारे अधिकारी ग़लत नहीं होते. मैं तो यही मानता हूं कि मैं भी आम लोगों के बीच से ही हूं. मैंने भी वही परेशानियां झेली हैं, जिसे आम आदमी झेल रहा है. और इस सर्विस में आने का मक़सद ही है कि इनकी सेवा कर सकूं. मैं शायद ये नहीं भूलूंगा कि पब्लिक सर्वेन्ट हूं. मेरे अंदर सर्वेन्ट वाली भावना आगे भी रहेगी. और इसी भावना की बदौलत ही मैं आगे बेहतर काम कर सकूंगा.
अपनी दिलचस्पी के मुताबिक़ सब्जेक्ट का चयन करें
अली अब्बास ने बतौर सब्जेक्ट समाजशास्त्र का चयन किया था. उनका कहना है कि ये मेरे लिए काफ़ी फ़ायदेमंद रहा. इसमें मेरे अच्छे मार्क्स भी आए हैं. ये स्कोरिंग सब्जेक्ट है.
लेकिन साथ में वो ये भी कहते हैं कि, कोई भी उम्मीदवार ये सोचकर सब्जेक्ट का चयन न करे कि ये स्कोरिंग है. बल्कि सबसे पहले आपको अपनी दिलचस्पी देखनी चाहिए. अब किसी को थिंकर्स को पढ़ने व समझने में दिलचस्पी नहीं है तो समाजशास्त्र उसके लिए परेशानी का सबब बन सकता है.
खेलना भी है ज़रूरी, ये आपको ज़ेहनी तौर पर फिट रखेगा
अली अब्बास को क्रिकेट से गहरा लगाव है. तैयारी के दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं होगा, जिस दिन इन्होंने क्रिकेट न खेला हो. वो कहते हैं कि मैंने तो इंटरव्यू के एक दिन पहले जमकर क्रिकेट खेला.
वो आगे बताते हैं कि, मुझे पता है कि ये काम मेरी पढ़ाई के बीच में नहीं आता. बल्कि मैं हर तैयारी करने वालों से यही कहना चाहूंगा कि आप भी एक न एक फिज़ीकल एक्टिविटी के साथ खुद को ज़रूर जोड़ें. ये आपको ज़ेहनी तौर पर फिट रखेगा. अगर आप ऐसा करेंगे तो ये तैयारी आपको बोझ नहीं लगेगी. और आप कई तरह की बीमारियों से भी बचे रहेंगे, क्योंकि दिन-रात एक ही कमरे में बैठकर पढ़ते रहना ही एक बीमारी है. अपने आपको स्पोर्ट्स से ज़रूर जोड़िए.
डायरी लिखना है सबसे मुफ़ीद
अली अब्बास ने इस तैयारी के दौरान अपनी पर्सनल डायरी लिखने का काम भी लगातार किया. उनका कहना है कि इससे आप रिलैक्स रहेंगे. दिल को सुकून मिलेगा. जो मन में आए, उसे अपनी डायरी में लिख डालिए. इससे आपके मन का बोझ हल्का होगा. क्योंकि हमारे दिल-दिमाग़ में अनगिनत बातें चलती रहती हैं और हम किसी से कुछ कह नहीं पाते. ऐसे में डायरी लिखना सबसे मुफ़ीद है. और इससे आपके लिखने की प्रैक्टिस भी बढ़ेगी.
अपनी तैयारी में इन बातों का रखा ध्यान
आपने अपनी तैयारी में और किन-किन बातों का ध्यान रखा? नौकरी के साथ आपने तैयारी कैसे की? इस सवाल पर अब्बास बताते हैं कि पांच साल की नौकरी में कई बार ये ख़्याल आया कि मैं भी प्रमोशन ले लूं. क्योंकि मेरे साथ के ज़्यादातर दोस्त काफ़ी आगे बढ़ चुके थे. लेकिन मुझे यह पता था कि अगर मैंने प्रमोशन ले लिया तो बैंक कहीं भी शिफ्ट कर देगा. प्रमोशन नहीं लेने का ये फ़ायदा था कि मैं दिल्ली के आस-पास था, जहां इसकी तैयारी का एक माहौल मिल जाता था. छुट्टी के दिन तैयारी करने वाले दोस्तों के पास आकर उनसे कुछ न कुछ फ़ायदा हासिल करने की कोशिश करता. यक़ीनन मुझे इसका फ़ायदा भी मिला.
तैयारी करने वाले इन बातों का रखें ख़्याल
और जो तैयारी कर रहे हैं, उनसे आप क्या कहना चाहेंगे? इस पर अब्बास का कहना है कि, इस एग्ज़ाम के लिए आपको दुनिया छोड़ने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन आपको टाईम मैनेजमेंट का ख़्याल रखना है. ऐसा न हो कि आप हर टाईम सीरियस होकर घूम रहे हैं, पढ़ कुछ भी नहीं रहे हैं. इससे काम नहीं चलेगा. आप कम पढ़िए लेकिन वो क्वालिटी वाली होनी चाहिए. छोटे-छोटे टारगेट तय करके शेड्यूल के हिसाब से पढ़िए. मुझे तो 8-9 घंटे की नौकरी में पढ़ना था. ऑफिस में तो आप पढ़ नहीं सकते, लेकिन मैं ऑफिस में ही न्यूज़-पेपर अच्छे से पढ़ लेता था. बाक़ी रात में दो-तीन घंटे टारगेट बनाकर पढ़ता था. थोड़ा मुश्किल ज़रूर था, लेकिन मैं तैयारी में लगा ही रहा.
वो यह भी बताते हैं कि, इस तैयारी में ईमानदार होना बहुत ज़रूरी है. जब तक आप पूरी ईमानदारी से तैयारी नहीं करेंगे, कुछ नहीं होने वाला. मैं बहुत ही नॉर्मल स्टूडेन्ट हूं, अगर मैं ये एग्ज़ाम निकाल सकता हूं तो मैं समझता हूं कि बाक़ी बच्चे भी एग्ज़ाम बहुत आसानी से निकाल सकते हैं. आप बस पढ़ाई करें, हिम्मत न हारें. अगर आप अपना काम कर रहे हैं तो आज या कल रिज़ल्ट पॉजिटिव ज़रूर आएगा.
प्रोपेगेंडा थ्योरी में ना पड़ें…
मुल्क के नौजवानों से अब्बास कहते हैं कि, क़ौम की हालत तभी बेहतर की जा सकती है जब उस क़ौम का नौजवान पढ़े-लिखे हों. उनमें आगे बढ़ने का जज़्बा हो. अगर नौजवान सिर्फ़ गौसिप करेंगे. प्रोपेगेंडा थ्योरी में पड़े रहेंगे. तब तक क़ौम का कुछ भी भला नहीं होने वाला.
मुस्लिम नौजवानों से अब्बास कहते हैं कि, आप खुद से सवाल कीजिए कि हर चौथा भिखारी मुसलमान क्यों, जबकि अल्पसंख्यक बरादरी में सिक्ख भी आते हैं, लेकिन इनके यहां तो भिखारी नहीं दिखते. दरअसल, हमारी सोच हमें रोक रही है. हमें एक दूसरे का हाथ पकड़ कर ही आगे बढ़ना है. जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, कुछ नहीं होने वाला.
अगर नाकाम भी हुए तो भी बहुत कुछ लेकर जाएंगे…
आगे वो कहते हैं कि, आपके मन में जो भी सरकारी नौकरी है, उनको लेकर किसी भी तरह का शक है, तो उसे अपने मन से निकाल दीजिए. यहां किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होता है. ये बात भी दिल से निकाल दीजिए कि किसी ख़ास मज़हब या जाति से ताल्लुक़ रखते हैं, तो आपका कुछ नहीं होने वाला है. तो ये बात भी मिथ्य है. इस मिथक से आपको बाहर निकलने की ज़रूरत है. जिन छात्रों को लगता है कि कम्पीटिशन की तैयारी के लिए पैसा चाहिए, जो आपके पास नहीं है, तो मैं बता दूं कि दिल्ली में ऐसे कई कोचिंग या संस्थान हैं जो आपकी हर मदद के लिए तैयार हैं. वो आपको ढ़ूंढ़ रहे हैं. मैं इस बात की गारंटी लेता हूं कि जो कोई भी सिविल सर्विस की तैयारी में आएगा, यक़ीनन उसके सोचने का ढंग और दायरा बदल जाएगा. ये आपको एक अनुशासन वाली ज़िन्दगी देगा. और हां, यहां से कुछ न कुछ लेकर ज़रूर जाएगा. यक़ीनन आप यहां अगर नाकाम भी हुए तो भी बहुत कुछ लेकर जाएंगे…