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Reading: आरिफ़ खान: मैंने सोच लिया था कि अपनी क़िस्मत को ज़रूर मात दुंगा और कामयाब रहा…
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आरिफ़ खान: मैंने सोच लिया था कि अपनी क़िस्मत को ज़रूर मात दुंगा और कामयाब रहा…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 22, 2018 7 Views
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10 Min Read
(Photo By : Afroz Alam Sahil)
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अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

कोई ज़रूरी नहीं है कि आप पढ़ाकू या इंटेलीजेन्ट हो तो ही सिविल सर्विस में जा सकते हैं, बल्कि ये एग्ज़ाम इतना आसान है कि कोई भी आसानी से निकाल सकता है. ये कहना है आरिफ़ खान का, जिन्होंने इस बार यूपीएससी की सिविल सर्विस में 850वीं रैंक हासिल की है.

दिल्ली में जन्में 26 साल के आरिफ़ खान के पिता जाफ़र अली खान बीएसएफ़ में थे. वहीं मां आएशा बेगम घर का कामकाज संभालती हैं. आरिफ़ के पिता हमीरपुर के गांव खेड़ा प्लाजी के रहने वाले हैं. लेकिन पिछले 20 सालों से पूरा परिवार उत्तर प्रदेश के झांसी शहर के संगम विहार कॉलोनी में रहता है. आरिफ़ के बड़े भाई भी यहीं रहकर एक जेनरल स्टोर की दुकान चलाते हैं.

आरिफ़ की दसवीं व बारहवीं की पढ़ाई झांसी के केन्द्रीय विद्यालय से हुई. फिर इन्होंने आईआईटी कानपूर से बायो-टेक्नोलॉजी में बी.टेक की डिग्री हासिल की.

आरिफ़ बताते हैं कि, 2012 में आईआईटी कानपुर में ही कैम्पस प्लेसमेंट के ज़रिए एक अच्छे पैकेज पर मेरी जॉब दिल्ली के ‘स्नैपडिल’ कम्पनी में लगी. तब मेरा जॉब करना मेरी मजबूरी था. घर के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे. इसलिए मैंने यहां डेढ़ साल नौकरी की. इस नौकरी में पैसे तो अच्छे मिल रहे थे, लेकिन मुझे कभी संतुष्टि नहीं मिली. 

आरिफ़ आगे बताते हैं कि, आईआईटी में मैंने एनएसएस ज्वाईन कर रखा था. इसी के तहत कैम्पस से लगे एक नानकारी नामक गांव में हम बच्चों को पढ़ाते थे. ये बच्चे काफ़ी गरीब घर के थे. पढ़ाकर अच्छा लगता था. एक तसल्ली मिलती थी कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं. और यहीं से मेरे मन में ख़्याल आया कि काश! इन बच्चों के लिए हम कुछ और कर पाते. काश! हमारा एजुकेशन सिस्टम बेहतर होता. सरकारी योजनाएं इन तक भी पहुंच पातीं. हमने यहां देखा कि इनके लिए स्कूल तो मौजूद हैं, लेकिन इन स्कूलों में इन्हें पढ़ाया नहीं जाता. दिल में ख़्याल आया कि फिलहाल तो हम सिर्फ़ इन्हें पढ़ा ही सकते हैं, लेकिन काश! हमारे हाथों में ये पावर आ जाती कि हम इनके स्कूलों को बेहतर कर पाते. यहीं से ख़्याल आया कि हम एडमिनिस्ट्रेशन में आ जाएं तो इनके लिए काफ़ी कुछ किया जा सकता है. ये बातें मैं अपने नौकरी के दौरान भी सोचता रहा और फिर फैसला किया कि मुझे सिविल सर्विस में जाना है और सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना है.

वो बताते हैं कि जॉब के साथ ही मैंने राजेन्द्र नगर में कोचिंग ज्वाईन की. अब रोज़-रोज़ दिल्ली में कालका जी से राजेन्द्र नगर आना-जाना मुश्किल काम लगा. लेकिन दिमाग़ में आईएएस बनने की धुन इतनी सवार हो चुकी थी कि मैंने नौकरी छोड़ दी और राजेन्द्र नगर में रहने लगा.

आरिफ़ ने 2013 में चार महीने राजेन्द्र नगर में रहकर कोचिंग की. लेकिन उनका कहना है कि इस कोचिंग के बाद मुझे लगा कि तैयारी के लिए कोचिंग की कोई ज़रूरत नहीं है. अगर किसी को बस इतना ही गाईडेंस मिल जाए कि क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, काफ़ी है.

आरिफ़ 2014 में पहली बार सिविल सर्विस के एग्ज़ाम में बैठे और इंटरव्यू तक पहुंच गए, लेकिन इनका सेलेक्शन सिर्फ़ 7 नंबरों से रह गया. इसके बाद आर्थिक हालात की वजह से घर वापस लौटना पड़ा. यहीं से तैयारी की. फिर कुछ दिनों बाद दिल्ली के जामिया मिल्लिया आएं. यहां से हमदर्द स्‍टडी सर्किल गएं. 2015 में फिर से इंटरव्यू तक पहुंच कर नाकाम हुए. इस बीच इन्होंने एसएससी की परीक्षा दी और कामयाब रहे. 2016 में महाराष्ट्र के नागपुर शहर में बतौर एक्साईज़ इंस्पेक्टर ज्वाईन कर लिया. अब आरिफ़ यहां जीएसटी ऑफ़िसर हैं.

आरिफ़ बताते हैं कि, इस नौकरी के बाद भी आईएएस बनने का ख़्वाब आंखों से गया नहीं था. लगातार अपनी तैयारी जारी रखी. हालांकि अब तैयारी करना इतना आसान नहीं था. लेकिन इसी नौकरी में बचे समय में अपनी पढ़ाई करता रहा. लेकिन क़िस्मत साथ नहीं दे रही थी. तीसरी कोशिश में भी इंटरव्यू तक पहुंच कर सिर्फ़ 5 नंबर से रह गया. लेकिन इस बार मैंने सोच लिया था कि अपनी क़िस्मत को मात ज़रूर दुंगा और कामयाब रहा.

हालांकि आरिफ़ अभी भी इस कामयाबी से ज़्यादा खुश नहीं हैं और अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं. 3 जून को फिर से प्रीलिम्स दे रहे हैं. क्योंकि उनका कहना है कि बनना तो मुझे आईएएस ही है, लेकिन इस रैंक पर तो ये नहीं मिलेगा. इंशा अल्लाह अगले रिज़ल्ट में बेहतर रैंक लाऊंगा.

आरिफ़ कहते हैं कि, मुझे ये बात हमेशा खटकती है कि सरकार ने नियम-क़ानून व पॉलिसियां तो ख़ूब बना रखी हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. हर स्कीम के लिए खूब सारे फंड हैं, लेकिन वो इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहे हैं या अगर इस्तेमाल हो भी रहे हैं तो सही लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. राज्य सरकारों का तो और भी बुरा हाल है. अगर मैं आईएएस बना तो सबसे पहले इस ओर ध्यान देने की कोशिश करूंगा, ताकि देश की गरीब जनता सरकारी योजनाओं का लाभ ले सके और सरकारी योजनाएं सही लोगों तक पहुंच सके. 

आरिफ़ ने बतौर सब्जेक्ट भूगोल लिया था. उनका कहना है कि मैं गणित और भूगोल को लेकर कंफ्यूज़न में था. लेकिन फिर मैंने भूगोल लेना ज़्यादा मुनासिब समझा, क्योंकि एक तो ये टेक्नीकल सब्जेक्ट था, वहीं ये जीएस के पेपर के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद रहता है.

सिविल सर्विस में आने की सोच रखने वाले नौजवानों से आरिफ़ कहते हैं कि, ये भूल जाईए कि इस एग्ज़ाम के लिए आपको बहुत इंटेलीजेन्ट होना पड़ेगा. या आप बहुत पढ़ाकू हैं, तभी ये एग्ज़ाम निकाल सकते हैं. मैं ऐसे भी लोगों को जानता हूं जो बारहवीं में फेल हो गए थे, लेकिन उन्होंने इस एग्ज़ाम में काफ़ी बेहतर किया है. बस आपके अंदर कांफिडेंस का होना ज़रूरी है.

वो आगे कहते हैं कि, अगर आप दसवीं व बारहवीं में ही इसके लिए प्लान बना रहे हैं तो कोशिश कीजिए कि बैचलर में ऐसे सब्जेक्ट को लिया जाए, जिसे आप सिविल सर्विस परीक्षा में ऑप्शनल पेपर के तौर पर ले सकें. कम से कम इस सब्जेक्ट को दिल लगाकर पढ़िए. बस समझ लीजिए कि आपकी आधी तैयारी मुकम्मल हो गई. साथ ही ये बात भी दिमाग़ से निकाल दीजिए कि यहां कोई बायसनेस है. मैं गांरटी के साथ कह सकता हूं कि यूपीएससी किसी में कोई फ़र्क़ नहीं करता है.

आरिफ़ का यह भी कहना है कि, कभी भी आप निराश न हों. मैं तीन बार इंटरव्यू तक पहुंच कर हर बार मामूली नंबरों से रह गया, लेकिन कभी भी निराश नहीं हुआ.

अपने अम्मी-अब्बू के साथ आरिफ़ खान…

आरिफ़ को सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्में देखने का शौक़ है. वो बताते हैं कि ये सिलसिला तैयारी के दौरान भी जारी रहा. इससे मुझे काफ़ी फ़ायदा मिला. हर फिल्म के बाद मुझे एक पॉजिटिव एनर्जी मिली है. लेकिन मैटर करता है कि आप फिल्में कैसी देख रहे हैं. मैंने हमेशा चुनिंदा फिल्में देखी हैं.

अपने क़ौम के नौजवानों से आरिफ़ कहना चाहते हैं कि, सबसे पहले आप इस परीक्षा को देने का हौसला अपने अंदर पैदा कीजिए. असल समस्या यह है कि हमारी क़ौम के बच्चे इसके बारे में सोचते ही नहीं, इस एग्ज़ाम में बैठते ही नहीं. पहले ही डर जाते हैं कि अरे, ये मुझसे नहीं हो पाएगा. यक़ीन मानिए यूपीएससी का ये एग्ज़ाम एसएससी से भी आसान है. मेरे पास कई उदाहरण हैं. जो लोग एसएससी का एग्ज़ाम नहीं निकाल पाए, लेकिन वो यूपीएससी में बेहतर रैंक के साथ कामयाब हुए हैं. और हां, एक बार आपने इसकी तैयारी कर ली, तो फिर दूसरे कम्पीटिशन आप आसानी से निकाल सकते हैं. बस थोड़ी मेहनत की ज़रूरत है. मैं तो यही कहूंगा कि आज से आप भी इसकी तैयारी में लग जाईए और अगर आप ये नहीं कर सकते तो कम से कम हर कोई अपने जानने वाले पांच बच्चों को इस परीक्षा के बारे में ज़रूर बताए.

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