BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: अज़र ज़िया: मिल जाए तुझको दरिया तो समुन्दर तलाश कर
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > अज़र ज़िया: मिल जाए तुझको दरिया तो समुन्दर तलाश कर
LeadReal HeroesYoung Indianबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

अज़र ज़िया: मिल जाए तुझको दरिया तो समुन्दर तलाश कर

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 21, 2018 1 View
Share
11 Min Read
SHARE

अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

मंज़िल से आगे बढ़कर मंज़िल तलाश कर

मिल जाए तुझको दरिया तो समुन्दर तलाश कर

हर शीशा टूट जाता है पत्थर की चोट से

पत्थर ही टूट जाए वो शीशा तलाश कर

अल्लामा इक़बाल का ये शेर पश्चिम बंगाल के अज़र ज़िया पर हू-बहू लागू होता है. ये शेर उन्होंने बचपन से ही अपने दिल में बसा लिया था. अज़र ज़िया ने इस बार देश के सबसे ऊंचे इम्तिहान यानी यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सर्विस परीक्षा में 97 रैंक हासिल किया है. उनके मुताबिक़ पश्चिम बंगाल राज्य में 36 सालों के बाद किसी मुसलमान ने यह कामयाबी हासिल की है और आईएएस बना है. आज़ादी के बाद ये इस राज्य से तीसरे मुसलमान आईएएस बने हैं.

कोलकाता के बेनियापुकुर इलाक़े के तांती बागान मुहल्ले में रहने वाले 31 साल के अज़र ज़िया के पिता मो. ज़ियाउद्दीन हैदर राज्य स्तर पर सिविल सर्विस से जुड़े रहे हैं. कुछ सालों पहले वेस्ट बंगाल एसेंशियल कमोडिटी सप्लाई कारपोरेशन के जेनरल मैनेजर के पोस्ट से रिटायर हुए हैं. तो वहीं इनकी अम्मी क़मरून हैदर एक प्राईवेट कम्पनी में एडमिनिस्ट्रेटिव पोस्ट पर जॉब करती थीं.

अज़र ने कोलकाता के ही सेंट जेम्स स्कूल से दसवीं व बारहवीं की शिक्षा हासिल की है. वहीं हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन में बी.टेक की डिग्री हासिल की.

कारपोरेट दुनिया में अपनी शोहरत चाहता था

वो बताते हैं कि यहां से बी.टेक करते ही दो अच्छी कम्पनियों में मेरा प्लेसमेंट भी हुआ, लेकिन मैंने नौकरी नहीं की, क्योंकि उस वक़्त मेरे अरमान थे कि मैं एमबीए करके कारपोरेट वर्ल्ड में जाऊं. 2009 में कैट के ज़रिए दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ में दाख़िला लिया. यहां पढ़ने के बाद मुंबई में एक बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में मेरी नौकरी लगी. मैं उस समय कारपोरेट दुनिया में अपनी शोहरत व नाम बनाना चाहता था. वहीं कामयाब होना, मेरी ज़िन्दगी का एकमात्र मक़सद था.

तो फिर आपके ज़ेहन में सिविल सर्विस का ख़्याल कब और कैसे आ गया? इस सवाल पर अज़र बताते हैं कि, कारपोरेट सेक्टर के ग्लैमर ने मुझे हमेशा से आकर्षित किया. इसकी वजह ये थी कि मेरे पिता भले ही सरकारी सर्विस में थे, इज़्ज़त भी बहुत थी, लेकिन पैसे नहीं थे. दरअसल हम लोग अभी भी एक ज्वाईंट फैमिली में रहते हैं. मेरे चाचा भी स्टेट सर्विस में थे. हम बचपन से ही देखते आ रहे हैं कि कैसे हमारे घर लोग आकर इनका शुक्रिया अदा करते थे. मुझे अच्छा लगता था कि घर में लोग आते हैं. इज़्ज़त करते हैं.

लेकिन पूरी तरह खुश नहीं था…

वो आगे बताते हैं कि, ग्लैमर के चक्कर में कारपोरेट दुनिया में आ तो गया था, लेकिन पूरी तरह खुश नहीं था. अच्छा पैसा कमाने के बावजूद खुशी या तसल्ली नहीं मिल रही थी. कहीं न कहीं मुझे ये लगा कि ये जो हमारी परवरिश है, उसी का नतीजा है. मेरे अब्बू ने पैसे को कभी अहमियत नहीं दी. तो फिर मुझे कैसे पैसों से संतुष्टि मिल पाएगी. बस मुझे यहीं से लगा कि सिविल सर्विस ही मेरा करियर है.

अज़र बताते हैं कि, 2015 में नौकरी करते-करते मैंने प्रीलिम्स दिया. मुझे मालूम था इसमें मेरा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन मैंने ये इम्तेहान इसके स्टैण्डर्ड और अपनी औक़ात समझने के लिए दिया था. कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन मेरे अंदर कांफिडेंस आ गया. मुझे ये समझ आ गया कि मेरी औक़ात है. मैं तैयारी करके इसे पास कर सकता हूं. इस वक़्त मैंने तय किया कि मैं सिर्फ़ दो साल तैयारी करूंगा, इसमें अगर कुछ हुआ तो हुआ, नहीं तो वापस अपने कारपोरेट की दुनिया में लौट जाउंगा.

अज़र के मुताबिक़ उन्होंने अक्टूबर, 2015 में अपनी जॉब छोड़ दी. जनवरी 2016 के आख़िर में वो दिल्ली के हमदर्द स्टडी सर्किल आ गएं.

उनका कहना है कि कोलकाता में अभी भी इसे लेकर इतनी जागरूकता नहीं है. इसके लिए यहां कोई ख़ास कोचिंग भी नहीं है. वैसे मैं भी फुल टाईम कोचिंग के पक्ष में नहीं था, बल्कि मैं सिर्फ़ एक ऐसा माहौल चाहता था कि जहां मैं बिना किसी परेशानी व रूकावट के शांत माहौल में अपनी पढ़ाई कर सकूं. यहां मुझे ये माहौल मिला. इंटरनेट के ज़रिए भी मैंने काफ़ी फ़ायदा हासिल किया.

इन्होंने बतौर सब्जेक्ट पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन लिया था. वो कहते हैं कि,  इंजीनियरिंग वाले सब्जेक्ट यहां थे नहीं, और मैनेजमेंट मैं लेना नहीं चाहता था. मैं चाहता था कि कोई ऐसा सब्जेक्ट लूं जो सिविल सर्विस से जुड़ा हुआ हो. पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन मुझे बेहतर सब्जेक्ट लगा. इसकी थ्योरी वगैरह मेरे लिए समझना आसान था, क्योंकि पहले से ही इन चीज़ों की प्रैक्टिस कर चुका था.

आईएएस बनना अज़र की पहली च्वाइस है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि उन्हें इस बार आईएएस मिल जाएगा.

अज़र ज़िया ने ये कामयाबी तीसरी कोशिश में हासिल की है. हालांकि उनका मानना है कि शायद मुझे ये कामयाबी दूसरी बार में ही मिल गई होती, लेकिन दिल्ली के चिकनगुनिया ने मेरा बेड़ा गर्क कर दिया. मैं बहुत बुरी तरह से बीमार पड़ा. वापस मुझे कोलकाता जाना पड़ा. जिसके कारण मेरा मेन्स कुछ नंबरों से रह गया. क्योंकि बीमारी के चक्कर में पढ़ाई नहीं कर सका था.

हमारे देश में गवर्नेंस की हालत अच्छी नहीं है

जिस ज़िले में जाएंगे, वहां आप क्या बदलाव लाएंगे? इस सवाल पर अज़र कहते हैं कि, आज हमारे देश में गवर्नेंस की हालत अच्छी नहीं है. ऐसे में इसे बेहतर करने के लिए मेरा जो कारपोरेट व मैनेजमेंट का एक्सपीरियंस है, उसे मैं यहां इस्तेमाल करने की कोशिश करूंगा.

आगे उनका कहना है कि, अगर मुझे मौक़ा मिला तो हिन्दुस्तान में गरीबों के बीच तालीम को और भी आगे ले जाने की कोशिश करूंगा. गरीबी तालीम के साथ जुड़ी हुई है. देश में अगर गरीबी मिटाना है तो उन्हें क़ाबिल बनाना होगा और क़ाबिल बनाने के लिए तालीम बहुत ज़रूरी है.

क्या आपको नहीं लगता है कि सिस्टम में पारदर्शिता व जवाबदेही नाम की कोई चीज़ नहीं है? इस पर अज़र कहते हैं कि, मुल्क में इसके लिए क़ानून है, लेकिन हम प्रैक्टिस में देखते हैं तो शायद ये इतना नज़र नहीं आता. हालांकि सिस्टम इसके लिए काफ़ी कुछ कर रही है. आगे आने वाले दिनों में हम ज़रूर देखेंगे कि धीरे-धीरे पारदर्शिता व जवाबदेही प्रशासन में बढ़ेगी. आरटीआई जैसा क़ानून है इस देश में, इसे और अच्छे से अमल में लाने की ज़रूरत है.

लेकिन इस आरटीआई को तो सरकार ख़त्म करने पर तुली है? इस सवाल पर अज़र कहते हैं, देखिए! हमारा काम सरकार की पॉलिसियों को अच्छे से लागू करना है. आज पॉलिसी तो बहुत अच्छी बन जाती हैं, लेकिन कहीं न कहीं उनके क्रियान्वयन में कमी रह जाती है. तो मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं जहां भी रहूं, सरकारी पॉलिसियों व नीतियों को अच्छे से लागू करूं.

अज़र ज़िया को स्केचिंग व पेन्टिंग में काफ़ी दिलचस्पी है. साथ ही गाना सुनना व फिल्में देखना भी पसंद है. आमिर खान इनके पसंदीदा अभिनेता हैं.

तैयारी के दौरान अच्छी फ़िल्में देखा करता था

अज़र बताते हैं कि, तैयारी के दौरान अच्छी फ़िल्मों को देखा करता था. आख़िरी फ़िल्म सिक्रेट सुपर स्टार व दंगल देखी थी. इससे काफ़ी प्रेरणा मिली. साथ ही मैं हमेशा मोटिवेशनल गाने भी सुनता रहता था. इससे मन थोड़ा हल्का होता है.

यूपीएससी की तैयारी करने वालों से अज़र का कहना है कि, किसी भी तैयारी में तीन बातें बहुत ज़रूरी हैं —सोच, मेहनत और क़िस्मत… हालांकि मैं क़िस्मत को सिर्फ़ 10 फ़ीसद ही दूंगा, लेकिन सबसे अधिक 50 फ़ीसद सोच और 40 फ़ीसद मेहनत मायने रखती है. अगर लोग नकारात्मक सोच के साथ इस इम्तिहान की तैयारी में कूदेंगे तो फिर उनका कुछ नहीं होने वाला. सकारात्मक सोच बहुत ज़रूरी है.

साथ ही वो ये भी कहते हैं कि, तैयारी के साथ ही खुद को सिविल सर्वेन्ट के रूप में ढाल लेना चाहिए. जैसे —ज़िम्मेदारी लेना, बैलेंस विचार रखना, टाईम मैनेजमेंट सही से करना, अनुशासन में रहना और हर काम बेहतर करने की कोशिश करना… ये क्वालिटी अगर आपने अपने अंदर ढाल लिया तो फिर आपकी मेहनत यक़ीनन रंग लाएगी.

वो आगे कहते हैं कि, इस इम्तिहान में हर कोई एक है. हर एक को इस इम्तिहान में बराबर अवसर प्राप्त है कि वो कामयाबी हासिल कर सके. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि, किसी भी आईडिया को अगर आप दिलों जान में बसा लें तो यही तरक़्क़ी हासिल करने का ज़रिया है. मैं भी यही मानता हूं कि इसे कण-कण में बसा लीजिए और बस लग जाइए.

लंबी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है… 

अज़र ज़िया के घर का माहौल अदब से जुड़ा हुआ है. वो बताते हैं कि सबको उर्दू से काफ़ी दिलचस्पी है और सबने उर्दू के ज़रिए सरकारी नौकरियां हासिल की हैं.

अज़र को शायरों में अल्लामा इक़बाल के अलावा फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ बहुत पसंद हैं. वो आख़िर में इस शेर के साथ अपनी बात ख़त्म करते हैं और अपने क़ौम के नौजवानों से कहते हैं इसे समझने की कोशिश कीजिए.

दिल ना-उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है

लंबी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है   

TAGGED:AZAR ZIACIVIL SERVICEEditor's PickMUSLIM IAS FROM WEST BENGALUPSC
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
I WitnessWorldYoung Indian

The Earth Shook in Istanbul — But What If It Had Been Delhi?

May 8, 2025
EducationIndiaYoung Indian

30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…

May 8, 2025
Waqf FactsYoung Indian

World Heritage Day Spotlight: Waqf Relics in Delhi Caught in Crossfire

May 10, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?