Exclusive

इनाबत ख़ालिक़: फॉरेन सर्विस में जाकर देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती हूं…

अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

किसी मंज़िल को पाने की चाहत में अगर शिद्दत हो तो इंसान उसे एक एक दिन पा ही लेता है. यही कहानी कश्मीर की इनाबत ख़ालिक़ की भी है.

इनाबत ख़ालिक़ की इस बार यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में 378वीं रैंक आई है. जबकि ये पिछले साल ही 604 रैंक लाकर इस परीक्षा में कामयाब रही थीं.

बावजूद इसके इनाबत एक बार फिर से अपनी तैयारी में जुट गई हैं. इस बार इनके हौसले पहले के मुक़ाबले और भी बुलंद हैं और पूरी उम्मीद है कि अगले साल जब नतीजे आएंगे तो इन्हें इनकी मंज़िल ज़रूर मिल जाएगी.

दो बार सेलेक्शन हो जाने के बाद भी तीसरी बार परीक्षा देने की वजह पूछने पर इनाबत बताती हैं कि, मुझे इस बार के रैंक पर आईआरएस मिलेगा और मुझे फॉरेन सर्विस में जाना है. क्योंकि मेरी लिट्रेचर में काफ़ी दिलचस्पी है. अलगअलग भाषाओं को जानने और ट्रेवलिंग का भी काफ़ी शौक़ है, तो मैं चाहती हूं कि मैं दुनिया देखूं और मुख़्तलिफ़ लोगों से मिलूं और अपने मुल्क को रिप्रेजेंट करूं.

वो यह भी बताती हैं कि 70 व 80 के दशक में लोग पहले फॉरेन सर्विस में ही जाना चाहते थे, लेकिन अब लोगों का इंटरेस्ट आईएएस की तरफ़ शिफ्ट हो गया है.

भारत की फॉरेन पॉलिसी को लेकर आप क्या सोचती हैं? क्या हमारे लीडर्स के विदेश दौरे फॉरेन पॉलिसी में कारगर साबित होते हैं? इसको पॉलिटिकल सवाल कहकर पहले तो इनाबत थोड़ा हंसती हैं, फिर कहती हैं कि हमारे डिप्लोमैट्स और लीडर्स जितना ज़्यादा दूसरे मुल्कों से इंटरैक्ट करेंगे और इंगेज़ होंगे, उतना ज़्यादा देश की विदेश नीति में मज़बूती आएगी और फ़ायदा होगा. हमारे मुल्क की विदेश नीति में काफ़ी कन्टिन्यूटी है. क्योंकि जो स्टैंड हमारे देश का काफ़ी सालों से रहा है वो बरक़रार है, चाहे पार्टी कोई सी भी आए.

इनाबत ख़ालिक़ दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िला के पारिगाम गांव से ताल्लुक़ रखती हैं, लेकिन इनका पूरा परिवार श्रीनगर में रहता है. इनके पिता अब्दुल ख़ालिक़ डॉक्टर हैं और श्रीनगर के गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते हैं. जबकि मां मंज़ूरा ख़ालिक़ सरकारी टीचर हैं. इनके अलावा इनके दो छोटे जुड़वा भाई हैं.

इनाबत ने अपनी दसवीं व बारहवीं की पढ़ाई श्रीनगर से की है. उसके बाद कश्मीर यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल की.

इनाबत कहती हैं कि मेरी बारहवीं तक की पढ़ाई साइंस स्ट्रीम में हुई थी, लेकिन अब मेरी रूचि हयूमैनिटीज़ में थी, लेकिन इसको लेकर घर वाले खुश नहीं थे. थोड़ा प्रेशर भी था, क्योंकि मम्मीपापा साइंस बैकग्राउंड से हैं. उनको ये बात पसंद नहीं थी कि इनाबत हयूमैनिटीज़ में इंटरेस्ट ले रही है. लेकिन मैंने दोनों को कन्विंस करने की कोशिश की और कामयाब रही.

आपके दिमाग़ में यूपीएससी का ख़्याल कब आया? इस सवाल पर उनका कहना है कि, ये ख़्याल तो बचपन से ही है. बचपन से ही सुनती थी कि आईएएस ऑफ़िसर होते हैं, डिप्लोमेट्स होते हैं. तो ये सारी चीज़ें पहले से सुनी हुई थीं, बस क्या और कैसे करना है, इसकी जानकारी नहीं थी. लेकिन कॉलेज टाईम से सिविल सर्विसेज़ के बारे में जानना शुरू कर दिया.

वो बताती हैं कि, मेरे घर में तो दूर-दूर तक किसी का इससे कोई ताल्लुक़ नहीं था. फिर मैंने कुछ दोस्तों को कांटेक्ट किया, जिनके घर में किसी का ब्यूरोक्रेसी से कोई ताल्लुक़ था. इन लोगों की सलाह ली कि क्या किया जाए और कैसे, तो ज़्यादातर लोगों की सलाह यही थी कि मुझे दिल्ली जाना चाहिए.

मेरे मम्मीपापा ने मेरा साथ दिया. और मैं उनके सपोर्ट की वजह से दिल्ली आई. शुरू में जामिया हमदर्द से अपना सफ़र शुरू किया. फिर जामिया मिल्लिया इस्लामिया आ गई. दो कोशिश में फेल होने के बाद तीसरी कोशिश में कामयाब रही. इनाबत की मानें तो जामिया में पढ़ने का माहौल काफ़ी अच्छा है और यहां  सब बहुत सपोर्टिव हैं.

आपने इस परीक्षा की तैयारी कैसे की? इस सवाल के जवाब में भी वो क्रेडिट जामिया हमदर्द और जामिया मिल्लिया इस्लामिया को ही देती हैं, लेकिन वो ये भी कहती हैं कि उन्होंने ज़्यादा क्लासेज़ नहीं की, जितनी ज़रूरत थी उतनी ही की. शुरू से ही एनसीईआरटी की किताबें पढ़ रखी थीं और बेस क्लियर था. अगर किसी का बेसिक क्लियर होता है तो सेल्फ़ स्टडी पर ध्यान देना चाहिए.

उनके मुताबिक़ इस परीक्षा के लिए अलग से रणनीति बनानी पड़ती है. और ये तब समझ आती हैं, जब आप लोगों से बात करते हैं, ख़ासतौर पर वो लोग जो तजुर्बेकार हों. कई बार बहुत ज़्यादा पढ़ने वाले लोग भी कामयाब नहीं हो पाते हैं, इसलिए स्ट्रैटेजी बनाना बहुत ज़रूरी हो जाता है.

इनाबत ने बतौर सब्जेक्ट इतिहास चुना था. इसके पीछे की वजह थी उनका ग्रेजुएशन में भी इसी सब्जेक्ट को पढ़ना.

इनाबत कहती हैं कि यहां हमेशा वही सब्जेक्ट लेना चाहिए, जिसमें लगे कि आप सचमुच मेहनत कर सकते हैं. आप इसे ही पढ़ सकते हैं, जब इसमें इंटरेस्ट होगा, किसी और की बात सुनकर सब्जेक्ट का चुनाव करें कि इसमें मार्क्स आते हैं और उसमें नहीं.

इनाबत कहती हैं कि उनको भी इस विषय को चुनने के लिए डिस्क्रेज किया गया था कि इतिहास में बहुत पढ़ना पड़ेगा. लेकिन मैं जानती थी कि इस सब्जेक्ट को मैं बारीकी से पढ़ सकती हूं और पढ़पढ़ के बोर नहीं होउंगी.

यूपीएससी की तैयारी करने वालों को इनाबत की सलाह है कि कभी भी अटेंप्ट लेने में जल्दी करें. यही ग़लती मैंने भी की थी. ख़ासतौर से जब आप जनरल कैटेगरी से हैं, तो आपके पास लिमिटेड अटेंप्ट्स होते हैं, बिना तैयारी के इसे ज़ाया मत कीजिए. कम से कम एक साल पूरे डेडिकेशन के साथ पढ़िए और फिर एग्ज़ाम दीजिए. साथ में ये भी याद रहे कि ये फ़िल्ड बहुत हीन-प्रेडिक्टेबल है, तो कभी कामयाबी जल्दी मिलेगी कभी देर से, बस हिम्मत मत हारिए. अगर आप सच में इसे हासिल करना चाहते हैं तो यक़ीनन आप कर लेंगे.

इनाबत को पढ़ने-लिखने के अलावा स्टैंड- कॉमेडी देखना बहुत पसंद है. इनका मानना है किससे मानसिक तनाव कम होता है. इसके साथ ही इन्हें नॉवेल पढ़ने का भी बहुत शौक़ है.

मुल्क के नौजवानों को ख़ासकर मुस्लिम नौजवानों को इनाबत का पैग़ाम है कि,  आप हर चीज़ को सिर्फ़ उस नज़रिए से मत देखिए कि कितना पैसा मिलेगा या कितना नाम होगा, बल्कि इंसानियत के नज़रिए से भी देखिए कि आप क्या अच्छा कर पाएंगे. ये भी सोचिए कि आप इस काम को करके कितने लोगों का भला कर सकते हैं.

आप उन गार्जियन को क्या कहना चाहेंगी जो अपनी बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहते? इसके जवाब में इनाबत कहती हैं, ‘देखिए! माँबाप अपने बच्चों का हमेशा भला ही सोचते हैं. कभीकभी ऐसा ज़रूर होता है कि जिस माहौल या समाज में वो रहते हैं, उसमें उनको लगता है कि ये सही नहीं है. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि वो अपनी बेटियों का बुरा चाहते हैं. बस थोड़ा सोच का फ़र्क़ होता है. फिर भी मैं ये कहूंगी कि अपनी बेटियों को भी समझें और उनका भी साथ दें. ऐसा करने से किसी का कोई नुक़सान नहीं होगा, बल्कि फ़ायदा ही होगा.’

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]