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बिहार में शराब-बंदी से नुक़सान किसको?

Afshan Khan

जब भी एक आम इंसान जो देश की तरक़्क़ी चाहता है, शराब बंदी जैसे सरकार की कोशिश के बारे में जानता है तो खुशी से झूम उठता है. क्योंकि हम जैसे आम लोगों को ये लगता है कि अब क्राइम ख़त्म हो जाएगा. हम सोचने लगते हैं कि गरीब तबके और महिलाओं के लिए इससे अच्छा क़ानून हो ही नहीं सकता. कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके गुर्दे छिलने लगते हैं ऐसे क़ानून का ज़िक्र सुनकर.

खैर! आप चाहे किसी भी कैटेगरी में आते हों, किसी भी पॉलिसी की तारीफ़ करने से पहले ये ज़रूर सोचिए कि क्या पॉलिसी में कोई कमी तो नहीं है. दूर के ढ़ोल सुहावने जैसे हालात तो नहीं हैं.

बिहार में तो फिलहाल यही होता नज़र रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि गरीब महिलाओं के पति जब शराब पीकर घर आकर हंगामा करते थे, तब उनको बहुत परेशानी होती थी या शराब के कारण वो कमाते नहीं थे. जिससे घर नहीं चल पाता था. इसलिए शराब बंदी पर क़ानून सख्त होने के बाद एक खुशी की लहर थी महिलाओं में. लेकिन इस क़ानून के लागू होने के बाद इसकी कमी भी सामने रही है. दरअसल किसी भी पॉलिसी में कमी उसके लागू होने के बाद ही नज़र आती है.

जहां पहले लोग शराब पीकर घर का ख़्याल नहीं रखते थे या जो पुरुष कमाते नहीं थे वहीं अब वो जेल के भीतर रहने की वजह से अपने घर के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं. उल्टा उनके घर के अन्य सदस्यों का पैसा उनके उपर खर्च हो रहा है.

ये माना गया है कि बिहार में नीतीश कुमार गरीबों और कमज़ोर तबक़े के लिए काम करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन यहां उल्टा हो गया. उनका शराब बंदी का तरीक़ा कमज़ोर तबक़ों के लिए भारी पड़ रहा है.

आंकड़ों के मुताबिक़ बिहार के एससी, एसटी, और ओबीसी समुदाय के लोग सबसे ज़्यादा जेल गए हैं. तो ऐसे में क्या उनके घर को चलाने के लिए कोई व्यवस्था है?

इस क़ानून में सबसे बड़ी ग़लती ये रही कि शराब की सप्लाई जो माफिया करते हैं उन पर कोई रोक नहीं लगी और इसको जो लोग खरीदते हैं या यूं कहिए कि जो उपभोक्ता हैं उन सबको जेल में डाला गया. ओबीसी तबक़े के एक तिहाई लोग जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि लिकर माफिया खुलेआम घूम रहे हैं. लखपति से करोड़पति बन चुके हैं. ये बात भी हैरान करने वाली है कि ज़्यादातर शराब माफ़िया किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं.

इन शराब माफ़ियाओं के तमाम शिकायतों के बावजूद सरकार इनके ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर रही है, लेकिन गरीब लोग जेल के अंदर जा रहे हैं और काफ़ी वक्त वहीं गुज़ार रहे हैं, क्योंकि उनके पास बेल के लिए पैसे नहीं हैं. इसलिए जिन लोगों की मदद सरकार को करनी चाहिए थी, जो वादा किया गया था गरीबों से की उनका फ़ायदा होगा, असल में इसके विपरीत हो रहा है, सबसे बड़ा नुक़सान उन्हीं को है. जिन्हें शराब पीना है वो अभी भी पी रहे हैं, ये बात बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है…

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