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Reading: इस गांव में अगर शराब पी तो लगेगा दो हज़ार का जुर्माना…
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इस गांव में अगर शराब पी तो लगेगा दो हज़ार का जुर्माना…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 31, 2018
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7 Min Read
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शराब के ख़िलाफ़ महिलाओं के प्रयास ने सजाया बच्चों की आंखों में सपना

अनीसुर्रहमान खान

ओडिशा के संभलपुर ज़िला स्थित लरियापली ग्राम पंचायत की महिलाओं की ये कहानी वाक़ई अद्भूत है. यहां की महिलाओं ने सख़्त क़दम उठाते हुए क्षेत्र को शराब जैसी कुरीतियों से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है. इससे बच्चों का न केवल भविष्य संवर रहा है, बल्कि उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के भी प्रयास जारी है.

शराबबंदी से होने वाले परिवर्तनों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गांव की एक युवा लड़की बताती है कि “अब मुझे विश्वास हो गया है कि मास्टर बनने का मेरा सपना अब पूरा हो सकता है.”

वहीं दूसरी ओर आठवीं क्लास में पढ़ने वाली 14 वर्षीय सुकांति कालू आत्मविश्वास से लबरेज होकर बताती है कि “पहले मेरे पापा न केवल सभी प्रकार का नशा किया करते थे, बल्कि घर में झगड़ा और मारपीट भी करते थे. जब शाम को उनके घर आने का समय होता तो हम लोग घर का अंधेरा कोना खोज कर इसमें अपने आप को छिपाने के प्रयास में लग जाते, लेकिन बेचारी माँ! उसकी तो जमकर पिटाई होती थी. माँ को मार खाता देख, बर्दाश्त नहीं होता तो मैं उस को बचाने जाती, मगर जब खुद की पिटाई होती तो न चाहते हुए भी अलग होना पड़ता था.”

सुकांती के पिता घनश्याम कालू एक राजमिस्त्री है, जो दिन भर की अपनी मेहनत की कमाई को शाम में शराब की चंद बोतलों में उड़ा दिया करता था.

उसकी एक रिश्तेदार रुक्मणी प्रधान कहती हैं कि “घनश्याम कालू पहले महुआ और चावल से बने स्थानीय शराब का भी आदी था, इतना ही नहीं उसकी पत्नी भी ताड़ी का सेवन की आदी थी.” लेकिन अब उन्होंने इस बुराई से तौबा कर ली है.

दाहिने हाथ में क़लम और बाएं हाथ में कॉपी पकड़े कुर्सी पर बैठी सुकांति मुस्कुराते हुए कहती है कि “अब हमारे पापा और मम्मी हमें खूब पढ़ाना चाहते हैं, अब शाम को जब हमारे पिता घर आते हैं तो उनके हाथ में हमारे लिए मिठाइयां या फल होते हैं. हमारी एक मांग पर कॉपी, क़लम, किताब सबकुछ हाज़िर कर देते हैं और कहते हैं कि एक दिन मेरी बेटी मेरा नाम रोशन करेगी, मैंने भी सोच रखा है कि अब मैं दिल व जान से पढ़ाई करूंगी और मास्टर बनकर गांव के सारे बच्चों को भी पढ़ाऊंगी.”

गांव में अचानक आए इस बदलाव को लेकर 23 वर्षीय पदमनी बदनाईक कहती हैं कि “मैं खुद बीए पास हूं, मेरा घर सुन्दरगढ़ ज़िले में है, लेकिन मैंने यह तय कर रखा है कि अपने लोगों के लिए कुछ ज़रूर करूंगी, यह उसी का हिस्सा है कि मैं यहां महिलाओं को एकत्रित करके उन्हें शराब से होने वाले जानी-माली नुक़सान से अवगत कराया, और महिलाओं को तैयार किया कि गांव में शराब की क्रय–विक्रय को बंद किया जाए. शुरू में इस काम में थोड़ी मुश्किल ज़रूर आई, लेकिन अब स्थिति बहुत बेहतर है.”

अपनी मुहिम के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “शुरुआत में हमने यहां की महिलाओं को समूह से जोड़ने के लिए, उनके घर गए और साथ बैठकर समस्या का समाधान करने की कोशिश की, लेकिन हताश और मार खाने की आदी हो चुकी अधिकांश महिलाओं ने यही उत्तर दिया कि “हम क्या कर सकते हैं?” लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे दस महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाया, जिन्होंने शराब की भट्ठी चलाने वालों का विरोध शुरू कर दिया. देखते ही देखते और भी महिलाएं समूह का हिस्सा बनने लगीं, तो समूह को बड़ा करते हुए इसका नाम “नारी शक्ति संघ” कर दिया गया.”

“नारी शक्ति संघ” की अध्यक्षा हमादरी धरवा अपनी पंचायत की उप सरपंच भी हैं, जबकि सचिव परीमोदोनिय नायक हैं.

एक अन्य सदस्य अपना परिचय कराते हुए कहती है कि, मेरा नाम पुष्पलता नायक है. गांव के अन्य पुरुषों की तरह मेरा पति भी शराब पीता था, जिसके कारण हमारे घरेलू हालात बद से बदतर हो गए थे. यही हाल गांव की अन्य महिलाओं के घरों का भी था. इसलिए सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि इसके ज़िम्मेदार शराब की भट्ठी को बंद करवाना होगा. इस निर्णय को बदलने के लिए हमारे पतियों ने हम पर काफ़ी दबाव बनाया. यहां तक कि हमारे साथ मारपीट भी की. वहीं दूसरी ओर हमारे आंदोलन को ख़त्म करने के लिए शराब भट्टी के मालिकों ने कई तरह के प्रलोभन और धमकियां भी दीं, लेकिन आख़िरकार हमारे अटल इरादे के आगे उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा.

बता दें कि इस समूह ने यह फैसला भी लिया कि यदि गांव में कोई भी पुरुष या महिला शराब पीकर गाली गलौज करेगा तो उस पर पहली बार एक हज़ार रूपए का जुर्माना लगाया जाएगा. अगर दूसरी बार भी पकड़ा गया तो जुर्माने की राशि बढ़कर दो हज़ार हो जाएगी. ऐसे ही शराब की भट्टी वालों के लिए भी एक क़ानून बनाया कि अगर गांव में शराब बनाते हुए पकड़े गए तो पहली बार पांच हज़ार का जुर्माना देना होगा और यदि दूसरी बार भी पकड़े जाते हैं, तो दंड की राशि दोगुनी हो जाएगी.

इस फैसले का गांव में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला. शराबबंदी से एक तरफ़ जहां गांव के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है, वहीं दूसरी ओर उनके घर की आमदनी भी बढ़ी है. अब बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी बल दिया जा रहा है.

लरियापली जैसे हज़ारों गाँव में लाखों बच्चे न जाने कैसे-कैसे सपनों को अपनी आंखों में सजाते होंगे. लेकिन क्या हर बच्चे अपने सपनों को सुकांति की तरह पूरा कर पाते है? यह वह प्रश्न है जो हर शराबी को कम से कम एक बार अपने हाथ में शराब की बोतल पकड़ने से पहले अवश्य करना चाहिए. आपका यह प्रश्न और उत्तर लाखों बच्चों की ज़िन्दगी बदल देगा.

(लेखक चरखा फीचर के मुख्य संपादक हैं.)   

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