By Afshan Khan
2019 लोकसभा का चुनावी बिगुल बज चुका है. बीजेपी एक बार फिर से विकास की बात करने लगी है. लेकिन पिछले चार सालों में विकास एक मज़ाक़ बनकर रह गया. इस मज़ाक़ का आलम ये है कि लोग अपने बच्चों का नाम विकास रखने से भी घबराने लगे हैं.
विकास के नाम पर ‘अच्छे दिन’ लाने का जो वादा किया गया था, वो महज़ जुमलेबाज़ी साबित हुआ है. देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है. साम्प्रदायिक द्वेष लगातार बढ़ता ही जा रहा है. रोज़गार बढ़ने के बजाए लगातार घटती नज़र आई और सरकार में शामिल नेता देश के युवाओं को पकौड़े बेचने की सलाह देते नज़र आए. ज़्यादातर नेताओं के उलूल-जुलूल बयान ही हम लगातार झेलते रहें और इन सबके बीच असल विकास पूरी तरह गायब नज़र आया.
असल सवाल ये है कि हमारे देश भारत के अंदर न तो संसाधनों की कमी है और न ही जनसंख्या की. फिर किस कारण हम चीन से पीछे हैं, जो हमारे बाद 1949 में आज़ाद हुआ. क्यों हम जापान से पीछे हैं जो 1945 में परमाणु हमले का शिकार हुआ था. स्वास्थ और पोषण के मामले में तो हम श्रीलंका और बांग्लादेश से भी पीछे हैं. आख़िर हम पीछे हैं तो क्यों?
इसकी एक असल वजह मेरी नज़र में तो यही है कि हमने सर्वप्रथम कभी भी सुशासन और बेहतर प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया. दूसरा हमने अपने संसाधनों का उचित इस्तेमाल नहीं किया और तीसरा हमने भारतीय जनसंख्या को मानव संसाधन में तब्दील नहीं किया बल्कि भारतीय जनसंख्या को मात्र मतदाता तक ही सीमित रहने दिया.
बल्कि इससे भी आगे जाकर सत्ता पर आसीन राजनीतिक दलों ने इन्हें धर्म के आधार पर बांट दिया. जब उससे भी काम नहीं बना तो कुछ जगहों पर उन्हें जाति के आधार पर बांटा. उनका वोट पाने के लिए हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया गया. बल्कि ये कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे राजनीतिक दलों ने वोट पाने के लिए देश तक को दांव पे लगा दिया है.
ज़रा सोचिए कि वोट पाने के लिए दंगे कौन कराता है? और फिर इन दंगों से नुक़सान किसका होता है? तो हम इस सवाल के जवाब में पाएंगे कि हमेशा नुक़सान देश का हुआ है, और इससे लाभवंतित हमारे नेता हुए हैं. और सच पूछे तो मौजूदा सरकार ने विकास से ज़्यादा इस देश का विनाश ही किया है. शायद ये बात अभी समझ न आए, लेकिन इसके नतीजे बहुत जल्द हमें देखने को ज़रूर मिलेंगे. आज हमारा समाज जितना बंटा हुआ है, उतना सम्पूर्ण इतिहास में कभी भी बंटा हुआ नहीं था.
इसके साथ ये भी ज़रा ये भी सोचकर देखिए कि आपको एक फाईव स्टार होटल में रखा जाए, लेकिन वहां काम करने वाला मामूली स्टाफ या बैरा आपको गाली दे, आपको मारने पर उतारू हो जाए तो क्या आप वहां रहना पसंद करेंगे? नहीं, शायद कभी नहीं…
उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के सत्ताधारी व विपक्षी लोग बदलाव की ज़रुरत को समझेंगे तथा जुमलेबाज़ी की जगह असल विकास व सुशासन पर ध्यान देंगे. वरना भारत एक दिन छोट-छोटे काम करवाने के लिए आंदोलन की धरती बन जाएगा और ये देश टूट कर बिखर जाएगा.
वैसे ये ज़िम्मेदारी हमारी भी है कि हम झूठे विकास के दावे व वादे पर ध्यान देने के बजाए इस बात के लिए फिक्र करें कि देश में इंसानियत कैसे बचेगी. देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब कैसे बचेगी. हमेशा की तरह हिन्दू-मुस्लिम एकता कैसे बरक़रार रहे… क्योंकि जब हम बचेंगे, इंसानियत बचेगी, तभी ये देश असल मायनों में विकास कर सकेगा.