BeyondHeadlines News Desk
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार शाम, नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में आरएसएस के स्वयंसेवकों के तीसरे साल के प्रशिक्षण वर्ग के समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर स्वयंसेवकों को संबोधित किया.
प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति… इन तीनों मुद्दों पर खुलकर अपनी बातें रखीं. उन्होंने कहा कि, ”सहिष्णुता हमारी मज़बूती है. हमने बहुलतावाद को स्वीकार किया है और उसका आदर करते हैं. हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं.’’
उन्होंने कहा, ”भारत की राष्ट्रीयता एक भाषा और एक धर्म में नहीं है. हम वसुधैव कुटुंबकम में भरोसा करने वाले लोग हैं. भारत के लोग 122 से ज़्यादा भाषा और 1600 से ज़्यादा बोलियां बोलते हैं. यहां सात बड़े धर्म के अनुयायी हैं और सभी एक व्यवस्था, एक झंडा और एक भारतीय पहचान के तले रहते हैं.’’
उन्होंने यह भी कहा कि, ”नफ़रत और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान ख़तरे में पड़ेगी. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि भारतीय राष्ट्रवाद में हर तरह की विविधता के लिए जगह है. भारत के राष्ट्रवाद में सारे लोग समाहित हैं. इसमें जाति, मजहब, नस्ल और भाषा के आधार पर कोई भेद नहीं है.’’
आगे उन्होंने कहा कि, ”भारत का संविधान करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है. हमारा राष्ट्रवाद हमारे संविधान में निहित है.’’
उन्होंने गांधी को भी याद किया और उनका हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रपिता ने कहा था कि भारत का “राष्ट्रवाद आक्रामक और विभेदकारी नहीं हो सकता, वह समन्वय पर ही चल सकता है.”
दरअसल, अंग्रेज़ी में दिए गए ज़ोरदार भाषण में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नेहरूवादी नेशनलिज़्म की क्लास लगाई थी. लेकिन सवाल यह है कि क्या भविष्य में ‘दादा’ के नेहरूवादी नेशनलिज़्म की क्लास का कोई फ़र्क़ दिखेगा. इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल इतना तो तय है कि 2019 तक आरएसएस और उससे जुड़े लोगों के लिए इस क्लास की कोई अहमियत नहीं है. क्योंकि इसके असर से इनका वजूद ही ख़त्म हो जाएगा. अभी तो इनकी भलाई सिर्फ़ और सिर्फ़ नेहरूवादी नेशनलिज़्म के विरोध में ही है.
