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‘भारत बंद के दौरान विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने चलाए थे पत्थर, पुलिस ने नहीं की उन पर कोई कार्रवाई’

BeyondHeadlines News Desk

2 अप्रैल 2018 को एससी/एसटी अत्याचार निरोधक एक्ट 1989 को कमज़ोर करने को लेकर देश व्यापी बंद के दौरान होने वाली हिंसा और उसके बाद पुलिस की कार्रवाई पर कई तरह के सवाल हैं. क्या प्रदर्शनकारी वास्तव में हिंसक हो गए थे? क्या हिंसा के पीछे कुछ अदृश्य हाथ काम कर रहे थे? क्या पुलिस ने राजनीतिक दबाव के चलते बल प्रयोग किया? क्या जातीय भेदभाव के चलते मुक़दमें गढ़े गए और क़ानून का दुरूपयोग किया गया?

ऐसे ही सवालों का जवाब ढूंढने के लिए एक प्रतिनिधि मंडल ने 13 अप्रैल को आज़मगढ़ की सगड़ी तहसील के कई प्रभावित गांवों का दौरा किया जिसमें भदांव, सराय सागर, मालटारी, अज़मतगढ़ नगर पालिका, महादेव नगर झारखंडी, फैजुल्ला ज़हीरुल्ला, ज़मीन सिकरौला आदि शामिल हैं.

इसके अलावा प्रतिनिधिमंडल ने स्थानीय बाज़ारों में अलग-अलग वर्ग के लोगों से मुलाक़ात कर घटना और पुलिसिया कार्रवाई की जानकारी ली.

प्रतिनिधि मंडल ने पाया कि कुछ मामलों में सिरे से वह घटना घटी ही नहीं, जिसका आरोप लगाते हुए पुलिस ने गंभीर धाराओं में एफ़आईआर दर्ज की.

मिसाल के तौर पर भदांव, सराय सागर और आसपास के गांवों से नौजवानों ने निकल कर मालटारी बाज़ार में चक्का जाम किया. बंद के दौरान किसी को भी चोट आई हो या प्राणघातक हथियार का इस्तेमाल किया गया हो, इसका कोई प्रमाण नहीं मिला. लेकिन पुलिस ने एफ़आईआर में कुल 17 धाराएं लगाई हैं, जिसमें धारा 307 (हत्या का प्रयास) भी शामिल है.

अपनी अंधाधुंध कार्रवाई के दौरान पुलिस ने राहगीरों, दुकानदारों, नाबालिग़ों और विद्यार्थियों को भी नहीं बख्शा. इस घटना में कुल 18 लोगों को नामज़द किया गया है.

दानिश और ताबिश पुत्रगण आलमगीर, निवासी बिलरियागंज मालटारी बाज़ार में मोबाइल बनवाने गए थे, विजय बहादुर सरोज निवासी टाड़ी अपने बीमार पिता रामकिशुन सरोज के लिए दवा लेने बाज़ार आया था, रंजीत और विजय शंकर जो आपस में चाचा-भतीजा हैं, अपनी दुकान पर थे, पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया.

इसी प्रकार विकास कुमार और एक अन्य रंजीत कुमार क्रमशः कक्षा 9 व 10 के छात्र हैं और नाबालिग़ हैं. आदित्य कुमार पुत्र जवाहिर राम की बीएससी और प्रवीण कुमार की एमए की परीक्षा छूट गई.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस ने जान-बूझकर छात्र नौजवानों को आरोपी बनाया ताकि अधिक से अधिक नुक़सान पहुंचाया जा सके.

एक सवाल यह भी पैदा होता है कि जब पुलिस राहगीरों और दुकानदारों तक को पकड़ रही थी तो ऐसा कैसे सम्भव हो पाया कि पकड़े गए सभी लोग दलित या अल्पसंख्यक समुदाय के ही थे?

स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि चक्का जाम क़रीब दो बजे तक शान्तिपूर्ण तरीक़े से सम्पन्न हो गया था, अवरोध हटाए जा चुके थे, लेकिन दारोगा जीतन्द्र कुमार राय ने कहा कि बंद अभी तीन बजे तक चलेगा. वहां तमाशा देख रहे उत्साहित बच्चों से मार्ग फिर से अवरुद्ध करवा दिया.

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि दारोगा ने युवकों को फंसाने के लिए यह जाल बिछाया था. उन्हें अपनी कार्यवाही को अंजाम देने के लिए अधिक पुलिस बल का इंतेज़ार था, जो उस समय तक मालटारी पहुंच नहीं पाई थी. पुलिस बल के वहां पहुंचने के बाद अचानक पथराव की घटना हुई. इसकी शुरूआत कुछ अज्ञात लोगों द्वारा की गई, जो उस आनदोलन का हिस्सा नहीं थे. एक बार आन्दोलन के शान्तिपूर्ण तरीक़े से सम्पन्न हो जाने बाद दारोगा जीतेंद्र राय द्वारा उसे जारी रखने के लिए कहना, अधिक संख्या में पुलिस बल के पहुंचने के बाद अज्ञात लोगों द्वारा पथराव की घटना को अंजाम दिया जाना, भगदड़ के माहौल में भी केवल दलितों और अल्पसंख्यकों की गिरफ्तारी और मौक़े पर ही बुरी तरह से पीटना ज़ाहिर करता है कि मामला क़ानून व्यवस्था का कम जातीय विद्धेश का अधिक था और आन्दोलन को बदनाम करने के लिए सब कुछ सुनियोजित ढंग से किया गया था.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि दारोगा की जाति के लोग छात्रों और सक्रिय नौजवानों को साज़िश के तहत मुक़दमें फंसाने के लिए निशानदेही कर रहे थे.

मालटारी बाज़ार से लगी दलित बस्ती सराय सागर के निवासियों ने बताया कि प्रवीण कुमार और राम प्रवेश की चालान पुलिस ने धारा-151 के अन्तर्गत की. जब परिजन ज़मानत के लिए गए तो उनसे पांच-पांच लाख रूपये की दो ज़मानत मांगी गई.

संसाधन विहीन और सम्पत्ति विहीन शान्ति भंग की आशंका के दलित आरोपियों से पांच-पांच लाख रूपये की ज़मानत मांगने का उनकी रिहाई के लिए रोड़ा अटकाने के अलावा क्या औचित्य हो सकता है?

यह बात उस समय और हास्यास्पद हो जाती है जब काला हिरन हत्या मामले में सज़ा पा चुके सम्पन्न सलमान खान को ज़मानत देते समय अदालत मात्र पचास हज़ार रूपये की ज़मानत राशि मांगती है और मात्र आरोपी बनाए गए गरीब दलित से पांच-पांच लाख.

इसी तरह फैज़ुल्लाह ज़हीरुल्ला गांव के रमेश चंद्र और राम सरीक को भी धारा-151 के तहत गिरफ्तार किया गया है. इन दोनों से भी पांच-पांच लाख रूपये राशि की ज़मानत देने को कहा गया.

रमेश चंद्र आन्दोलन का हिस्सा नहीं था. वह अपनी मां की दवा लाने के लिए जीयनपुर बाज़ार गया हुआ था. दुर्भाग्य से उसी समय दलितों को चिन्हित कर पकड़ धकड़ चल रही थी. रमेश चंद्र को भाजपा से जुड़े कुछ स्थानीय लोगों ने पहचान लिया और पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया.

सवाल पैदा होता है कि जब जीयन पुर में कोई घटना नहीं घटी और क़रीबी घटनास्थल सगड़ी तहसील भी वहां से क़रीब तीन किलोमीटर दूर है तो ऐसे में जीयनपुर बाज़ार में गिरफ्तारी अभियान का क्या औचित्य हो सकता है?

इस घटना से ज़ाहिर होता है कि एक ख़ास राजनीतिक विचारधारा के लोगों की इस आन्दोलन के ख़िलाफ़ किस हद तक दिलचस्पी और सक्रियता थी. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी परिजनों को मौखिक रूप से बताया गया कि कागज़ात पर एसडीएम के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, इसलिए रिहाई नहीं हो सकती.

परिजनों ने यह भी बताया कि उनसे स्पष्ट कहा गया कि एसडीएम के हस्ताक्षर 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के बाद ही किए जाएंगे. आमतौर पर साधन विहीन और सम्पत्ति विहीन दलित वर्ग से पांच-पांच लाख रूपये राशि की ज़मानत मांगना और एसडीएम का रिहाई के परवाने पर अम्बेडकर जयंती से पहले हस्ताक्षर न करने की बात कहना ज़ाहिर करता है कि आन्दोलन से किस माइंड सेट के साथ निपटा जा रहा था.

अज़मतगढ़ क़स्बे से लगे हुए गांव महादेव नगर झारखंडी के चंद्रशेखर को भी धारा-151 के तहत निरुद्ध किया गया है और उनकी रिहाई में भी वही बाधाएं हैं जिनका उल्लेख पहले किया जा चुका है.

झारखंडी के लोगों ने बताया कि 2 अप्रैल की शाम को कई वाहनों में सवार पुलिस वाले अचानक गांव में आएं. पहुंचते ही जो भी मिला उसे पीटना शुरू कर दिया. नौजवान खेतों की तरफ़ भागे. पुलिस ने उनमें से कई का पीछा करके गिरफ्तार कर लिया.

गांव की महिलाओं ने बताया कि पुलिस की कार्यवाही बहुत अचानक और अंधाधुंध थी. जो भी सामने आया उस पर डंडे बरसाए और बुरी बुरी गालियां दीं. कई बच्चियां और बूढ़ी महिलाओं को चोटें आईं. पूरे गांव में भय का माहौल बन गया. घरों से भाग-भागकर लोगों ने खेतों में पनाह ली.

जांच टीम को अज़मतगढ़ बाज़ार में बताया गया कि बाज़ार के बाहर कुछ युवक क्रिकेट खेल कर लौट रहे थे, इतने में पुलिस की कई गाड़ियां वहां पहुंच गईं. युवकों से उनकी जाति पूछने लगीं. एक लड़के ने अपनी जाति कन्नौजिया (हिंदू धोबी) बताया तो पुलिस वालों ने उसकी पिटाई शुरू कर दी और गाड़ी में भरकर ले गए. जब एक अन्य लड़के ने अपनी जाति मिश्रा बताया तो उसे डांटकर वहां से भाग जाने के लिए कहा गया.

लोगों ने बताया कि कन्नौजिया को बुरी तरह मारपीट कर रात में दस बजे पुलिस ने छोड़ दिया. उस पर कोई मुक़दमा नहीं बनाया गया.

अज़मतगढ़ नगरपालिका क्षेत्र से, जिसमें झारखंडी गांव भी आता है, तीस लोगों को नामज़द किया गया है. इसका घटनास्थल तहसील सगड़ी गोरखपुर आज़मगढ़ राजमार्ग है, जहां पथराव, तोड़फोड़ और आगज़नी के सिलसिले में तीन एफ़आईआर दर्ज की गई.

एक एफ़आईआर रोडवेज़ के बस ड्राइवर की तरफ़ से दूसरी तहसीलदार सगड़ी और तीसरी कोतवाल जीयनपुर की तरफ़ से दर्ज कराई गई है.

कोतवाल जीयनपुर ने तीस लोगों को नामज़द किया है. इसमें चेयरमैन अज़मतगढ़ पारस सोनकर को मुख्य अभियुक्त बनाया गया है.

हैरत की बात है कि जन-प्रतिनिधि और चेयरमैन होने के बावजूद एफ़आईआर में पारस सोनकर के पिता के नाम के स्थान पर अज्ञात दर्ज है.

स्थानीय लोगों ने बताया कि सगड़ी तहसील के पास रोडवेज़ की बस को पुलिस वालों ने रोका, यात्रियों को बाहर निकाला, तीन चार पुलिस वाले बस के अंदर गए और देखते ही देखते बस से आग की लपटें उठने लगीं, जबकि प्रदर्शनकारी बस के पास मौजूद नहीं थे. इसी दौरान पुलिस पर पत्थर फेंके गए, जो निश्चित रूप से प्रदर्शनकारियों की तरफ़ से नहीं आए थे.

आसपास के लोगों ने बताया कि पत्थर फेंकने वाले विश्व हिंदू परिषद व बजरंगदल के लड़के थे, जिनमें अगली पंक्ति वालों ने अपने चेहरे ढंक रखे थे.

मालटारी से गिरफ्तार युवकों ने ज़मानत मिलने के बाद बताया कि पुलिस द्वारा उन्हें थाने ले जाते समय एक स्थान पर गाड़ी से नीचे उतार कर पिटाई की गई. उसके बाद जीयनपुर थाने पहुंचे तो देखा कि अज़मतगढ़ के युवकों को इतना पीटा गया था कि वह बुरी तरह पस्त हो चुके थे. वहां से रात में पुलिस लाइन ले जाया गया जहां एक बार फिर सबको पीटा गया. इस दौरान पुलिस वाले लगातार मां बहन की और जाति आधारित गालियां देते रहे और जय भीम नारा लगाने को लेकर बुरा भला कहते और उसका मज़ाक उड़ाते रहे.

ज़मानत पर रिहा होने वालों ने बताया कि गिरफ्तारी के समय उनके पास मौजूद पैसे, मोबाइल, अंगूठी और अन्य सामान पुलिस वालों ने ले लिए और वापस नहीं किया.

जमुई सिकरौला के मुन्ना ने बताया कि मकान बनवाने के लिए उसके पास क़रीब 91,000 रूपये थे जिसे लेकर वह जीयनपुर बाज़ार गया हुआ था, पुलिस ने ज़ब्त कर लिया और उच्च अधिकारियों से शिकायत के बावजूद पैसे वापस नहीं किए और धमकी दिया कि पैसे भूल जाओ वरना ऐसा मुक़दमा लगाएंगे कि कभी विदेश नहीं जा पाओगे.

स्थानीय लोगों ने बताया कि 2 अप्रैल 2018 को दोपहर क़रीब ढ़ाई बजे लगभग दस पंद्रह वाहनों से पुलिस बल पारस सोनकर के घर पहुंचा और लोगों के सामने ही पारस सोनकर के पिता मुसफिर लाल सोनकर को गिरफ्तार करके ले गई.

एफआईआर में मुसफिर लाल पुत्र मंसूरी सोनकर को भी नामज़द किया गया है. एफ़आईआर के अनुसार कोतवाल जीयनपुर ने 3 अप्रैल 2018 को शाम पौने चार बजे जीयनपुर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवाई, उसके बावजूद पारस सोनकर के पिता के नाम की जगह अज्ञात दर्ज किया.

पारस सोनकर के परिजन और आस-पास के लोगों का कहना है कि वह सगड़ी तहसील पर होने वाले विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं थे. जिस समय वहां तोड़फोड़ की घटना हुई उस समय पारस सोनकर अज़मतगढ़ क़स्बे में ही थे. पारस सोनकर के भाई ने आरोप लगाया कि कोतवाल ने पूर्व चेयरमैन और भाजपा नेता अरविन्द जयसवाल के कहने पर पारस को फंसाया है.

उनका कहना था कि सुबह 9 बजे के आस-पास पारस घर से निकले तो आन्दोलनकारी नौजवानों ने उन्हें अपने साथ चलने को कहा. इस पर पारस उनके साथ कुछ दूर तक गए और अम्बेडकर प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस बीच कोतवाल वहां पहुंच गए, पूर्व चेयरमैन की शह पर उन्होंने पारस का कालर पकड़ लिया और मौजूद नौजवानों पर लाठीचार्ज किया.

कोतवाल की इस उकसावे की कारवाई के बावजूद पारस शान्त रहे और पूरा मामला साढ़े दस बजे तक ख़त्म हो गया. आन्दोलनकारी भी वहां से चले गए. उसके बाद पारस क़स्बे में कई जगहों पर गए और लोगों से मुलाक़ातें कीं. ढाई बजे क़रीब कोतवाल ने उनके पिता मुसफिर लाल सोनकर को घर से गिरफ्तार कर लिया और पारस के लिए अपशब्द कहे. उस समय भी पारस सोनकर क़स्बे में ही मौजूद थे.

पारस के भाई ने आरोप लगाया कि कोतवाल जिस समय चेयरमैन से अकारण ही उलझ रहे थे, उस समय उनके पीछे विश्व हिंदू परिषद के लोग भी थे.

स्थानीय लोगों ने बताया कि पारस सोनकर ने चेयरमैन बनने के बाद जनहित में जो काम किए, उससे उनकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई. इस वजह से पूर्व चेयरमैन उन्हें फंसाना चाहते थे.

पूरे मामले की छानबीन के बाद पारस सोनकर को नामज़द किया जाना और उनके पिता को आरोपी बनाकर घर से गिरफ्तार करना राजनीति से प्रेरित लगता है.

जांच दल इस नतीजे पर पहुंचा कि बंद के दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को उकसाने का काम किया. दलित विरोधी रवैया अपनाते हुए पुलिस ने न केवल आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग किया, बल्कि आस-पास की बाज़ारों से दलित युवकों की निशानदेही करके शान्तिभंग की धाराओं में निरूद्ध किया और प्रशासन ने उनकी ज़मानत में रोड़े अटकाए. सगड़ी तहसील के पास बस के जलाए जाने की घटना गढ़ी गई, जिसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध है.

यह भी ज्ञात हुआ कि पुलिस ने युवकों की जाति पूछ पूछकर गिरफ्तारियां कीं और जाति सूचक गालियां देते हुए कई क़िस्तों में उन्हें पीटा. यह अत्यंत गंभीर मामला हैं जिनकी निष्पक्ष जांच किया जाना आवश्यक है.

जांच टीम में रिहाई मंच के मसीहुद्दीन संजरी, सालिम दाऊदी, जन मुक्ति मोर्चा के राजेश, अखिल भारतीय प्रगतिशील छात्र मंच के तेज़ बहादुर, राहुल, लोक जनवादी मंच के दुखहरन राम, नवयुवक अम्बेडकर दल के राजकुमार, रविंद्र, जीतेन्द्र, छात्र नेता हिमांशु कुमार और किसान संग्राम समिति के सूबेदार व रामाश्रय शामिल थे.

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