Edit/Op-Ed

ये आतंकी और माओवादी हमेशा चुनावी साल में ही सक्रिय क्यों होते हैं?

अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

शुक्रवार के अख़बार के पन्ने बता रहे हैं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई अब डी कम्पनी के ज़रिए दिल्ली समेत उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी वारदातों को अंजान देने की फिराक़ में है. इसके लिए दुबई में बैठे डी कम्पनी के तीन गुर्गों फारूख डेवड़ीवाला, सईद उर्फ सैम और खैय्याम को ज़िम्मा सौंपा गया है. इस खुफ़िया सूचना के बाद से दिल्ली पुलिस सहित देश की सभी सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट पर हैं.

वहीं आज मीडिया के ज़रिए ये ख़बर भी आई है कि पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में आतंकी संगठन जमात उद दावा के एक आतंकी मौलाना बशीर अहमद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जान से मारने की बात कही है.

दूसरी ओर एक ई-मेल व चिट्ठी के माध्यम से पता चला कि चला है कि माओवादी पीएम मोदी को किसी रोड शो के दौरान आत्मघाती हमले में निशाना बना सकते हैं.

बता दें कि एक न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक़, पुलिस ने माओवादियों के इंटरनल कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट किया. ई-मेल में कहा गया है —”नरेंद्र मोदी 15 राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने में कामयाब हुए हैं. अगर ऐसे ही चलता रहा तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी. कॉमरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कॉमरेड ने मोदी राज ख़त्म करने के लिए कारगर सुझाव दिए हैं. हम इसके लिए राजीव गांधी जैसे हत्याकांड पर विचार कर रहे हैं. यह आत्मघाती जैसा होगा और इसके नाकाम होने की संभावना भी ज्यादा है. पर पार्टी हमारे प्रस्ताव पर विचार ज़रूर करे. उन्हें रोड शो में टारगेट करना असरदार रणनीति हो सकती है. पार्टी का अस्तित्व किसी भी त्याग से ऊपर है. बाकी अगले पत्र में…’’

लेकिन अजीब बात ये हैं कि इतने गंभीर मुद्दे को कांग्रेस ने इसे मोदी का पुराना हथकंडा क़रार दिया है. कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा कि, ”मैं ये नहीं कह रहा हूं कि यह मामला पूरी तरह से झूठ है, लेकिन यह प्रधानमंत्री मोदी का पुराना हथकंडा भी रहा है, जब वे मुख्यमंत्री थे. जब उनकी प्रसिद्धी कम होने लगे तो हत्या की साज़िश की बातें फैलाई जाएं. ऐसे में जांच हो कि इसमें कितनी सच्चाई है.’’

वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ”हमें आतंकवाद, नक्सलवादी या उग्रवाद किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बेअंत सिंह और नंद कुमार पटेल का बलिदान देने वाली कांग्रेस से ज्यादा इनके बारे में और कोई नहीं जानता. राजनीति करने की बजाय इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.’’

खैर, ये राजनीतिक लोग हैं. राजनीति ही करेंगे. लेकिन इतना तो मैं ज़रूर कहना चाहूंगा कि ऐसे मुद्दों पर सियासत क़तई नहीं होनी चाहिए. बल्कि इस गंभीर समस्या पर समस्त भारतीयों को एकजूट होकर सोचना चाहिए.

हालांकि एक सवाल हमेशा मेरे दिमाग़ को परेशान कर रही है कि ये डी-कम्पनी वाले, पाकिस्तान के ये तथाकथित जिहादी व आतंकी और फिर माओवादी हमेशा चुनावी साल में ही क्यों सक्रिय होते हैं? क्या उन्हें सरकार की ओर से तन्ख्वाह मिलती है कि बेटा चार साल आराम से सोकर खाओ, ऐश करो और हमें अपनी सरकार चलाने दो. जब तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी कि तो तुम्हें जगा देंगे. बस फिर तुम अपने काम में लग जाना… अब आप ही देखिए ना चुनाव आते ही मोदी जी को धमकियां मिलने लगीं और उससे भी अजीबो-गरीब बात यह है कि ये धमकियां मोदी जी तक पहुंचने से पहले ही मीडिया के हाथ लग गईं.

बहरहाल, इतना तो तय है कि इस चुनावी साल में जब सरकार के पास अपनी उपलब्धि बताने को कुछ भी नहीं है तो ऐसे वारदात तो ज़रूर होंगे. इसमें जान भी हम जैसे निर्दोष लोगों की ही जानी है. इसके बाद कुछ तथाकथित आतंकी पकड़े जाएंगे. इनकी गिरफ़्तारियों से एक तबक़ा खुश होगा और खुलकर सत्तापक्ष के पार्टी को अपना वोट देगा. और आतंक के नाम पर गिरफ़्तार तथाकथित आतंकी अपनी पूरी जवानी जेल में काटेगा. उनके मानवाधिकारों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाएंगी. और फिर वो दस-बीस साल जेल में अंडर ट्रायल क़ैदी रहकर बाइज़्ज़त बरी हो जाएगा. अब तक का तो शायद यही ट्रैक रिकार्ड रहा है…

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