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आख़िर आसमान से क्यों हो रही है कीचड़ की बारिश?

अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

आमतौर पर हम हमेशा देखते हैं कि बारिश के तुंरत बाद भारत के ज़्यादातर सड़कों पर कीचड़ हो जाता है. लेकिन ज़रा सोचिए अगर कीचड़ की ही बारिश होने लगे तो फिर क्या होगा?

पिछले 15 जून को बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बगहा शहर के कई इलाक़ों में कीचड़ युक्त हुए बारिश ने सबको हैरान व परेशान कर दिया. हर जगह इसकी चर्चा होती नज़र आई. यहां यह भी चर्चा रही कि ईरान में आई धुलभरी आंधी की वजह से ऐसा हुआ है.

ऐसी ही बारिश चम्पारण के रामनगर, मैनाटाड़, सिकटा और इनसे सटे नेपाल के कई तराई इलाक़ों में हुई है.

पश्चिम बंगाल व हिमाचल प्रदेश में भी हुई ऐसी बारिश

ये कहानी सिर्फ़ बिहार के चम्पारण ज़िले की ही नहीं है. बल्कि पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी इलाक़े और हिमाचल प्रदेश में शिमला के आस-पास कई इलाक़ों में भी ऐसी बारिश हुई है.

चम्पारण में सिकटा के नहर चौक इलाक़े में रहने मो. अब्दुल्लाह बताते हैं कि, रात के क़रीब 9 बजे वो ईद की ख़रीदारी करके घर की ओर आ रहे थे. तभी अचानक बारिश शुरू हुई. उनकी दिली ख़्वाहिश थी कि खुदा की इस रहमत से आज वो भी फ़ैजयाब होंगे यानी बारिश में भींगते हुए घर जाएंगे. लेकिन कुछ ही देर में देखा कि उनका सफ़ेद कुर्ता बिल्कुल काला पड़ चुका है. ऐसा लग रहा था कि किसी ने कीचड़ डाल दिया है.

वहीं बगहा के विजय दुबे का कहना है कि जब सुबह घर से बाहर आए तो देखा कि पूरी मोटरसाईकिल पर कीचड़ लगा हुआ है. पहले तो लगा था कि किसी ने जान-बुझ कर ऐसी हरकत की है. लेकिन फिर कुछ ही मिनटों में सारा सच सामने आ गया है. विजय दुबे इसे प्राकृतिक प्रकोप मानते हैं.

रामनगर के एक स्थानीय पत्रकार के मुताबिक़ 15 जून की शाम जब कीचड़ की बारिश हुई तो खुले में खड़े व बैठे रहने वाले हर शख़्स के कपड़े गंदे हो गए. बाहर खड़ी गाड़ियों पर कीचड़ की परत जमा हो गई. घर के आंगन व छत भी गंदे नज़र आने लगे. इस बारिश ने लोगों को हैरान कर दिया है. कोई प्रदुषण का मामला बता रहा है तो कोई ईश्वरीय प्रकोप के रूप में देख रहा है.

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में रहने वाले लोग भी कीचड़ युक्त हो रही बारिश से काफ़ी चिंतित हैं. यहां भी बारिश के पानी में मिट्टी घुली हुई है. यहां के पर्यावरण प्रेमी संगठन और मौसम विभाग ने इसके लिए प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया है.

कहीं ये एसिड की बारिश तो नहीं है?

पर्यावरण प्रेमी संस्था ‘हिमालयान नेचर एंड एडवेन्चर फाउंडेशन’ के अध्यक्ष अनिमेश बसु ने मीडिया को दिए अपने बयान में बताया है कि, पिछले काफ़ी समय से सिलीगुड़ी व आसपास के इलाक़ों में खुदाई व निर्माण कार्य हुआ है. एशियन हाइवे सड़क निर्माण कार्य भी जारी है. इन सबकी वजह से भारी मात्रा में धूल पर्यावरण में हैं. यही धूल वायुमंडल के किसी स्तर में जम गया है. हालांकि उन्होंने प्रशासन से इस बात की भी मांग की कि इस बात की भी जांच की जानी जानी चाहिए कि कहीं ये एसिड की बारिश तो नहीं है.

हिमाचल प्रदेश के शिमला में भी पिछले दिनों 16 जून को कई क्षेत्रों में कीचड़ की बारिश हुई. यहां के लोगों में इस बात की चर्चा है कि कुछ दिन पहले पाकिस्तान के बलूचिस्तान व भारत के ही राजस्थान की ओर से धूलभरी गर्म हवाएं चली थीं. इस कारण हिमाचल में वातावरण में धूल की परत थी. वही धूल बारिश होने पर ज़मीन पर आ गई है.

क्या कहते हैं जानकार?

इस पूरे मामले में ग्रीनपीस से जुड़े सीनियर कैंपेनर व वायु प्रदूषण के मामलो में शोध कर रहे सुनील दहिया BeyondHeadlines से बातचीत करते हुए बताते हैं कि, हमारी हवा धूल ज़्यादा हो रहा है, इसलिए ऐसा हो रहा है. वायु प्रदुषण ही इसका प्रमुख कारण है.

लेकिन चम्पारण के जिन इलाक़ों में ये कीचड़ वाली बारिश हुई है, वहां प्रदुषण दूसरी जगहों के मुक़ाबले कम है, इस पर सुनील दहिया का कहना है कि, हवा किसी शहर या गांव की बाउंड्री को नहीं जानता है. प्रदुषण अगर किसी गांव के 200-300 किलोमीटर दूर भी हो रहा है तो उसका असर कहीं भी देखने को मिल सकता है.

लेकिन वायु प्रदूषण की इन बातों को बिहार में पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वाले इश्तेयाक़ अहमद ख़ारिज कर देते हैं.

BeyondHeadlines से ख़ास बातचीत में वो कहते हैं कि, आमतौर पर लोग इसे साधारण वायु प्रदुषण बताकर टाल देते हैं, लेकिन ये मामला उससे भी आगे का है. मैं बता दूं कि वायुमंडल में जमा धूल कभी भी कीचड़ की शक्ल में नीचे नहीं आएगा.

उनका कहना है कि इसके लिए कोल पावर प्लांट या थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला आधा जला या उससे भी कम जला हुआ कार्बन असल वजह है. इन प्लांटों से निकलने वाली चीज़ें कीचड़ बना सकती हैं. और न सिर्फ़ कीचड़ बल्कि इसका पानी लसलसा टाईप होगा.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भूगोल विषय में शोध कर चुके इश्तेयाक़ अहमद का कहना है कि, ये नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा पहली बार हुआ है, लेकिन जिस तरह से अब हो रहा है, ये ज़रूर अलार्मिंग है.

उनके मुताबिक़ आज से क़रीब 7-8 साल या उससे भी पहले ऐसी ही बारिश हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के कुछ इलाक़ों में हो चुकी है. तब इसे ‘एसिड रेन’ बताया गया था, लेकिन बाद में हुए शोध में पता चला कि इसके लिए भारत के थर्मल पावर प्लांट ज़िम्मेदार हैं. साथ ही ये भी माना गया कि मिडल ईस्ट में जो वार सिचुएशन था, वहां बमों के एक्सप्लोज़न के कारण भी ऐसा हुआ.

इश्तेयाक़ अहमद का कहना है कि कोल पावर प्लांट या थर्मल पावर प्लांट पर सरकार का कोई रेगूलेशन है नहीं, हालांकि नियम-क़ानून खूब बने हैं, लेकिन इनका पालन हो नहीं रहा है. सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है, अन्यथा हालात इससे भी बुरे हो जाएंगे और बारिश हमारे लिए सज़ा बन जाएगी.

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