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सतना लिंचिंग से उठे सवाल…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 4, 2018 1 View
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By Javed Anis

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से गौ-रक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले और उन्हें आतंकित करने के मामले बढ़े हैं.

इंडिया स्पेंड के आंकड़ों के अनुसार साल 2010 से 2017 के बीच गौ-रक्षा के नाम पर हुई घटनाओं में से 97 प्रतिशत घटनाएं मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई हैं.

इस दौरान गायों की ख़रीद-बिक्री और मारने की अफ़वाहों को लेकर मुसलामानों पर हमले के लिए तो जैसे स्वयं-भू “गौ-रक्षकों” के गिरोहों को खुली छूट और संरक्षण मिल गई है.

ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा जारी ‘वर्ल्ड रिपोर्ट 2018’ के अनुसार मोदी सरकार अल्पसंख्यकों पर हमलों को नहीं रोक सकी है. वर्ष 2017 में नवंबर तक 38 ऐसे मामले हुए हैं, जहां गौ-रक्षा के  नाम  पर मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमले हुए, जिनमें 10 लोग मारे गए. लेकिन इन हमलावर लोगों/गिरोहों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने के बजाय प्रशासन की दिलचस्पी पीड़ितों, उनके परिवार के लोगों और रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ ही गौ-हत्या निषेध क़ानूनों के तहत मामले दर्ज करने में ज़्यादा रही. इस दौरान हत्यारों/हमलावरों को अगर गिरफ्तार भी किया जाता है तो उन्हें इस बात का पूरा भरोसा रहता है कि वे जल्दी ही बरी हो जाने वाले हैं.

सतना ज़िले के अमगार गांव में गौ-हत्या के शक में की गई हिंसा और अनुतरित सवाल

मध्य प्रदेश जो खुद को शांति का टापू कहता है, भी इससे अछूता नहीं है. मध्य प्रदेश में अल्पसंख्यकों की अपेक्षाकृत कम आबादी होने के बावजूद साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील बना रहता है. यहाँ गौ-रक्षकों द्वारा रेलगाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं पर हमला करने जैसी घटनाएं पहले हो चुकी हैं.

इसी कड़ी में बीते 17 मई 2018 की रात को सतना ज़िले के अमगार गावं में गौ-कशी करने के शक में भीड़ द्वारा दो लोगों पर हमले का मामला सामने आया है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है तथा दूसरा गंभीर रूप से घायल है.

इसके बाद मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा बिना किसी ठोस जांच के मृतक और घायल व्यक्ति के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया जाता है. इस पूरे मामले में आदिवासी गौड़ समुदाय की भूमिका सामने आ रही है, जो आदिवासी के हिन्दुकरण की लिए चलाई गई लंबी प्रक्रिया का परिणाम है.

मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार गौड़ आदिवासी बाहुल्य गांव “अमगार” में लगातार मवेशी चोरी होने की घटनाएं हो रही थीं. 17 मई की रात को अमगार गांव के कुछ लोगों ने गावं से कुछ दूरी पर खदान के पास अज्ञात लोगों को मांस काटते हुए देखा, जिसके बाद उन्होंने इसकी सूचना गावं के अन्य लोगों को दी और फिर आधी रात को पूरा गावं एकजुट होकर मौक़े पर पहुंच गया, जहां गुस्साई भीड़ ने गौ-हत्या शक में शकील और सिराज नाम के दो व्यक्तियों को बुरी तरह से मरते दम तक पीटा गया.

इसके बाद घटना की सूचना 100 नम्बर पर पुलिस को दी गई. पुलिस क़रीब लगभग सुबह 4 बजे मौक़े पर पहुंची और दोनों घायलों को मैहर अस्पताल ले गई. इलाज के दौरान एक की मौत हो गई, जबकि दूसरे को इलाज के लिए जबलपुर रेफ़र कर दिया गया. घटनास्थल पर पुलिस द्वारा दो कटे हुए बैल, एक सर कटा हुआ बैल और एक बंधी हुई गाय मिली और तीन बोरे में कटा हुआ मांस और मांस काटने का औज़ार भी बरामद किया गया.

इस पूरे मामले की एक स्वतंत्र नागरिक जांच दल द्वारा पड़ताल की गई है, जिसकी रिपोर्ट में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं.

जाँच दल द्वारा निरीक्षण के दौरान पाया गया कि घटनास्थल से 100 मीटर की दूरी पर पक्की सड़क है और वहां से कुछ दूरी पर ही गावं भी है. ऐसे में वहां किसी भी बड़े जानवर के काटने की आवाज़ विशेष तौर पर रात में बहुत आसानी से सुनाई पड़ जानी चाहिए. ऐसे में कोई वहां तीन बड़े जानवर काटने का इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा?

क़रीब 40-50 ग्रामीणों ने इन दोनों के अलावा न तो किसी को घटनास्थल से भागते हुए देखा और न ही उन्होंने किसी वाहन की आवाज़ सुनी. जबकि बड़े मवेशियों को काटने के लिये कम से कम 6 से 8 अनुभवी लोगों की ज़रूरत पड़नी चाहिए. ऐसे में कई सवाल अनुतरित रह जाते हैं, जैसे केवल दो व्यक्ति इस घटना को कैसे अंजाम दे सकते हैं?

यदि सिराज खान, शकील अहमद मवेशी काट रहे थे तो उनके साथ और कौन लोग शामिल थे? क्या मांस को ले जाने के लिए उनके पास गाड़ी थी? घटनास्थल से 3-4 क्विंटल मांस बरामद किए गए हैं. इतनी अधिक मात्र में मांस का वो क्या करने वाले थे? क्या इसके पीछे मांस तस्करी का कोई गैंग है?

इसी तरह से अमगार गांव के लोगों का कहना था है कि घटना के दिन से पहले ही उनके गांव से 10 दिनों से हर रात औसतन 2 से 4 मवेशी ग़ायब हो रहे थे और उन्हें जानवरों के ताज़े कंकाल मिल रहे थे, लेकिन किसी ने भी इसको लेकर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

बदेरा थाना निरीक्षक द्वारा भी इसकी पुष्टि नहीं की गई और इस दौरान मिले कंकालों को कई महीनों पुराना बताया जाता है.

जांच दल  द्वारा सिराज खान की मौत और शकील अहमद के ख़िलाफ़ मामला फॉरेंसिक परीक्षण रिपोर्ट आने के पहले ही पंजीकृत करने पर भी सवाल उठाए गए हैं और यह मांग की गई है कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि बरामद किया गया मांस गाय का ही है, तब तक के लिए सिराज खान, शकील अहमद पर मध्य प्रदेश गौ-वंश वध प्रतिशेष अधिनियम और कृषक पशु अधिनियम के तहत लगाई गई धाराओं को वापस लिया जाए.

बजरंग दल का पेंच

जांच दल की रिपोर्ट में बजरंग दल जैसे संगठनों का पेंच भी उभर कर सामने आया है. अमगार के लोगों ने जांच दल को बताया गया है कि अमगार और बदेरा थाना के आस-पास के क्षेत्रों में बजरंग दल सक्रिय है और इनका अमगार और आरोपीगणों से भी संपर्क रहा है.

ग्रामीणों ने बताया कि जानवर ले जा रही गाड़ियों को रोक कर मारपीट की घटनाएं कई बार हो चुकी है. इसी तरह से गावं वालों द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस को देने से पहले बजरंग दल वालों को दी गई थी और घटनास्थल पर पुलिस टीम के पहुंचने से पहले बजरंग दल के लोग पहुंच चुके थे.

अमगार गावं के लोगों द्वारा जांच दल को यह भी बताया गया कि बजरंग दल वालों ने आश्वासन दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें चार से छ महीने के अन्दर रिहा करवा लिया जाएगा तब तक शांत रहना है. 

पिछले कुछ सालों से मैहर और इसके आस-पास का इलाक़ा साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील बना हुआ है और इसके पीछे मुख्य रूप से बजरंग दल जैसे संगठनों की गतिविधियां और उनको दी गई खुली छूट है.

पिछले साल दिसम्बर में ईद मिलादुन्नबी के दिन झंडा लगाने को लेकर मैहर में तनाव की स्थिति बनी थी. उस समय मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार बजरंग दल के ज़िला संयोजक महेश तिवारी द्वारा ईद मिलादुन्नबी के दिन मैहर घंटा घर चौराहे पर इस्लामी झंडा लगाने का विरोध किया गया, जिससे तनाव की स्थिति बन गई थी.

इस दौरान दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई, जिसमें महेश तिवारी को भी चोटें आई. बाद में बजरंग दल और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा इस घटना को आधार बनाकर पूरे शहर में आगज़नी और तोड़फोड़ की और मुस्लिम समुदाय के कई दूकानों को आग के हवाले कर दिया गया. इस दौरान पुलिस निष्क्रिय बनी रही. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान तैनात पुलिस फोर्स को धक्का देकर भगा दिया गया, यहां तक कि थाने में पुलिस वालों से अभद्रता की गई.

मैहर और आस-पास के इलाक़ों में गाय को लेकर बजरंग दल की सक्रियता को उसके ज़िला संयोजक महेश तिवारी के 20 दिसंबर 2017 के फेसबुक पोस्ट और पोस्टर से समझा जा सकता है. पोस्टर इस साल 16 मार्च 2018 को मैहर में आयोजित हुए हिन्दू पंचायत को लेकर है, जबकि फेसबुक पोस्ट में वो मैहर में गौ-हत्या, इसको लेकर मुस्लिम समाज के लोगो को गिरफ्तारी, बड़ी बसों और ऑटो से मैहर से गौ-मांस की सप्लाई की बात कर रहे हैं और इसके साथ ही चेतावनी दे रहे हैं कि “ये अत्याचार मैं मैहर में नहीं होने दूंगा चाहे धर्म की रक्षा के लिए मुझे अपने प्राणों की आहूति देनी पड़े. हंसते-हंसते मां भारती के लिए अपने सीस कटा दूंगा.”

मध्य प्रदेश में गौ-रक्षा के नाम पर हुई पूर्व की घटनाएं

खिरकिया रेलवे स्टेशन में ट्रेन पर मुस्लिम दंपति के साथ मारपीट— हरदा ज़िले के खिरकिया रेलवे स्टेशन में ट्रेन पर एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिए मारपीट की गई, क्योंकि उनके बैग में बीफ़ होने का शक था. मार–पीट करने वाले लोग गौ-रक्षा समिति के सदस्य थे.

घटना 13 जनवरी 2016 की है. मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार के यहां से अपने घर हरदा लौट रहे थे. इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौ-रक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे, विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गई. इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्टेशन पर आ गए और उन्हें बचाया. इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते–होते बच गई.

इससे पहले खिरकिया में 19 सितम्बर 2013 को गौ–हत्या के नाम पर दंगा हो चुका है, जिसमें क़रीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया था. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे. बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे, उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी.

इस मामले में भी मुख्य आरोपी गौ–रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत था. सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैख़ौफ़ है, इसका अंदाज़ा उस ऑडियो को सुनकर लगाया जा सकता है, जिसमें वह हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कह रहा है कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा.

मंदसौर रेलवे स्टेशन पर दो मुस्लिम महिलाओं के साथ मारपीट— दूसरी घटना 26 जुलाई 2016 के शाम की है, जिसमें मंदसौर रेलवे स्टेशन पर गाय के मांस रखने के शक में दो मुस्लिम महिलाओं को सरेआम पीटा गया और फिर पुलिस द्वारा इनके ख़िलाफ़ गौ–वंश प्रतिषेध की धारा -4 और 5 मध्य प्रदेश कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया.

इस मामले में पुलिस द्वारा बिना वेटेनरी रिपोर्ट के ही दोनों महिलाओं को कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया था.

बाद में जांच में पाया गया कि महिलाएं जो मांस लेकर जा रही थीं. असल में वो गाय का नहीं भैंस का था. इस दौरान महिलाओं ने आरोप लगाया था कि जिस समय उनके साथ मारपीट हो रही थी. पुलिस के लोग वहां मौजूद थे लेकिन वे तमाशबीन बने रहे.

दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का पूरा ज़ोर इस घटना को “छोटी-मोटी धक्का-मुक्की” साबित करने पर रहा उनके अनुसार यह एक स्वाभाविक जनाक्रोश था और इसे इंटेशनली नहीं किया गया था. बिना किसी जांच उन्होंने यह भी दावा किया कि इस मामले में कोई भी व्यक्ति हिन्दू संगठनों से नहीं जुड़ा है. जबकि पीड़ित महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ मारपीट करने वाले बजरंग दल के लोग थे. मंदसौर से बीजेपी विधायक यशपाल सिसोदिया ने तो और आगे बढ़ते हुए इसे क्रिया की प्रतिक्रिया बता डाला.

हिन्दुत्ववादी संगठनों को दी गई छूट

दरअसल भाजपा सरकार के दौर में हिन्दुत्ववादी संगठनों के सामने पुलिस प्रशासन लाचार नज़र आता है. मध्य प्रदेश में “गाय” और “धर्मांतरण” ऐसे हथियार है, जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसन और आम हो गया है. हिन्दुत्ववादी संगठन इनका भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं, जिसमें उन्हें सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों का शह भी प्राप्त है.

पिछले ही दिनों मध्य प्रदेश के राजगढ़ ज़िले में बजरंग दल द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए कैंप का आयोजन करने की ख़बरें आई हैं, जो बताती हैं कि प्रदेश में संगठन की पैठ कितनी गहरी है और उन्हें सरकार की तरफ़ से भी पूरा संरक्षण प्राप्त है.

इसको लेकर बजरंग दल के ज़िला संयोजक देवी सिंह सोंधिया का मीडिया में बयान है कि ‘ये हर साल होने वाले एक नियमित कैंप है, जो देश विरोधी और लव जेहादी तत्वों से निपटने के लिए किया जाता है.’

हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण का आयोजन केवल सरकार या उसके द्वारा अधिकृत संस्थाएं ही कर सकती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बजरंग दल हथियार चलाने का प्रशिक्षण कैसे चला सकता है?

सतह पर जो दिखाई दे रहा है, उसके पीछे एक लम्बी प्रक्रिया चलाई गई है. लम्बे समय से हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा गौ-रक्षा को लेकर अभियान चलाए गए हैं, जिसमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ दुर्भावना अन्तर्निहित रही है.

इसी के साथ ही भाजपा शासित राज्यों द्वारा बारी-बारी से गौ-हत्या को लेकर कड़े क़ानून बनाए गए हैं, जिसमें मध्य प्रदेश भी शामिल है. यहां 2004 से ही मध्य प्रदेश गौ-वंश वध प्रतिशेष अधिनियम लागू है, जिसके बाद 2012 में इसे और अधिक सख्त बनाने के लिए इसमें संशोधन किया गया, जिसमें गौ-वंश वध के आरोपियों को स्वयं अपने आपको निर्दोष साबित करने जैसा प्रावधान जोड़ा गया.

अंग्रेज़ों ने हम भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए गाय और सूअर का उपयोग किया था अब एक बार फिर यही दोहराया जा रहा है. उनकी कोशिश हमें एक ऐसा बर्बर समाज बना देने की है, जहां महज़ अफ़वाह या शक के बिना पर किसी भी इंसान का क़त्ल कर दिया जाए. गौ-हत्या के नाम पर दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है. वो हमारे देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत है, यह सीधे तौर भारत के लोकतंत्र और क़ानून व्यवस्था को चुनौती है.

भारत में भीड़ का नहीं विधि का शासन है, इसलिए न्याय देने का काम भी क़ानून का है. यह सुनिश्चित करना सरकारों का काम है कि क़ानून अपना काम करे और अगर कोई सरकार अपना यह बुनियादी दायित्व निभाने में असफल होती है तो यह उसका नाकारापन है.

सितम्बर 2017 में गौ-रक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “हमें ये कहने की ज़रूरत नहीं है. गाय के नाम पर हुई हिंसा में शिकार लोगों को मुआवज़ा देना सभी राज्यों की ज़िम्मेदारी है, साथ ही क़ानून व्यवस्था सर्वोपरि है और क़ानून तोड़ने वालों से सख़्ती से निपटा जाए.”

क्या सतना लिंचिंग के मामले में शिवराज सिंह चौहान की सरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमल करेगी?

(जावेद अनीस भोपाल में रह रहे पत्रकार हैं. उनसे javed4media@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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