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‘सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने की कोशिश’

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : पुणे पुलिस द्वारा देश के विभिन्न शहरों में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर छापे मारकर पांच कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने का मामला सामने आया है.

बता दें कि हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं में मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता वेरनॉन गोंजाल्विस, पी वरावरा राव, अरुण फरेरा और पत्रकार गौतम नवलखा शामिल हैं.

इसके अलावा अलग-अलग शहरों में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर पुणे पुलिस ने छापे मारे हैं. बताया जा रहा है कि ये छापे पिछले साल पुणे में एक कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के कोरेगांव भीमा गांव में हुई हिंसा की जांच के तहत मारे गए हैं.

इस मामले में उत्तर प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने छापेमारी और उनकी गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करते हुए तत्काल रिहाई की मांग की.

मंच ने सुधा भारद्ववाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वेराॅन गोंजाल्विस, आनंद तेलतुंबडे, वरवर राव, फादर स्टेन स्वामी, सुसान अब्राहम, क्रांति और नसीम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं पर इस हमले को अघोषित आपातकाल कहा है.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मोदी जब भी राजनीतिक रुप से फंसते हैं, उनकी जान पर ख़तरे का हौव्वा खड़ा हो जाता है. कभी इशरत जहां को मार दिया जाता है तो आज मानवाधिकार-लोकतांत्रिक अधिकारवादी नेताओं, वकीलों और शिक्षाविदों की गिरफ्तारी हो रही है.

मुहम्मद शुऐब का कहना है कि, अच्छे दिनों के नाम पर जिस मध्यवर्ग को वोट बैंक बनाया गया सरकार उसे कुछ भी दे पाने में विफल रही. इस असफलता को छुपाने के लिए ‘अरबन नक्सली‘ की झूठी कहानी गढ़ी गई है. सुधा भारद्वाज का बस इतना जुर्म है कि वो आदिवासी जनता के हक़-हुक़ूक़ की बात करती हैं तो वहीं गौतम नवलखा सरकारी दमन की मुख़ालफ़त करते हैं. तो वहीं आनंद तेलतुबंडे बाबा साहेब के विचारों को एक राजनीतिक शिक्षाविद के रुप में काम करते हैं. दरअसल सच्चाई तो यह है कि छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में चुनाव होने को हैं और जनता भाजपा के ख़िलाफ़ है. ऐसे में जनता की लड़ाई लड़ने वालों की गिरफ्तारी सरकार की खुली धमकी है.

मुहम्मद शुऐब कहते हैं कि सनातन संस्था की उजागर हुई आतंकी गतिविधियों से ध्यान बंटाने की यह आपराधिक कोशिश है, जिसकी कमान मोदी-शाह के हाथ में है. एक तरफ़ पंसारे, कलबुर्गी, दाभोलकर, गौरी लंकेश की सनातन संस्था हत्या कर रही है, दूसरी ओर मोदी पर हमले के नाम पर इस तरह की गिरफ्तारियां साफ़ करती हैं कि जो तर्क करेगा वो मारा जाएगा या उसे जेल में सड़ाया जाएगा.

रिहाई मंच ने कहा कि यह कार्रवाई असंतोष की आवाज़ों को दबाने और सामाजिक न्याय के सवाल को पीछे ढ़केलने की सिलसिलेवार कोशिश का चरम हिस्सा है. भीमा कोरेगांव मामले को माओवाद से जोड़ा जा रहा है और उसके मुख्य अभियुक्त संभाजी भिडे को संरक्षण दिया जा रहा है. यह मोदी की दलित विरोधी नीति नया पैंतरा है.

उन्होंने कहा कि मीडिया के एक हिस्से ने जेएनयू को बदनाम किया और उसके छात्र उमर को बार-बार देशद्रोही बताकर उस पर जानलेवा हमले की ज़मीन तैयार की. ठीक इसी तरह कुछ दिनों पहले सुधा भारद्वाज को देश-विरोधी घोषित करने की कोशिश हुई. जिसका उन्होंने खुलेआम विरोध भी किया. आज हुई गिरफ्तारी के बाद उन्हें तब तक कोर्ट नहीं ले जाया गया जब तक रिपब्लिक टीवी के नुमाइंदे नहीं पहुंच गए.

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