Mango Man

आज़ादी! संविधान जलाने की?

By Raees Ahmadi

“सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलिस्तां हमारा”

मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल का ये शेर उस हिन्दुस्तान की अक्कासी करता है जिसे आज़ादी की परवानों ने अपनी जान की क़ुर्बानी देकर सींचा था. भारत के उन परवानों ने आज़ादी के जिस ख्वाब का तसव्वुर अपने ज़ेहन में रखकर इंक़लाब का झंडा बुलंद किया था, उसमें तमाम हिन्दुस्तानियों के बीच प्यार मोहब्बत की शमा जलाकर रख दी थी. जहां मज़हबी नफ़रतें और तमाम फ़र्क़ भुलाकर एक क़ौम होकर अंग्रेज़ी हुकूमत की नाइंसाफ़ियों का डटकर सामना किया. उनके सपनों के भारत में गंगा-जमुनी संस्कृति आपसी भाईचारे से सराबोर तरक़्क़ीयाफ़्ता मुल्क बसता था.

आज आप अपने चारों ओर नज़र घुमाईए और देखिए कि आज़ादी के उन मतवालों ने जिस भाविष्य के भारत के अरमानों का दिल में लेकर अपनी जाने कुर्बान की थी, क्या यह वहीं भारत है? आज़ाद होने 71 साल बाद हम उस भारत को बनाने में किस हद तक खरे उतरे हैं?

जो आज़ादी हमें मिली उसमें संविधान के अनुच्छेद 19(1) में बात कहने की आज़ादी भी दी गई, उसी का इस्तेमाल करके कुछ सरफ़िरे तत्व आज देश का संविधान जलाने से भी पीछे नहीं रहते. एक विशेष समुदाय के कुछ लोगों को महज़ किसी नेता की सोशल मीडिया पर तस्वीर शेयर कर देने से ही पुलिस आनन फ़ानन में राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा दर्ज कर जेल भेजने से नहीं चूकती, वहीं कुछ फ़ासीवादियों के संविधान की प्रतियां जलाने और संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर के ख़िलाफ़ अभद्र भाषा का प्रयोग होने पर भी आख़िर मूकदर्शक क्यों बनी रहती है. मामला भी तब तक दर्ज करने में आनाकानी करती है, जब तक दिल्ली सरकार के मंत्री की मांग और भीम सेना के राष्ट्रीय नेता की शिकायत थाने में नहीं पहुंच जाती.

युथ फाॅर इक्वालिटि (आज़ाद सेना) के कुछ नादान लोगों ने इस हरकत को अंजाम दिया है. उन्हें शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि जिस संविधान की वह प्रतियां जलाकर विरोध कर रहे हैं, उसी संविधान ने उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध करने का अधिकार प्रदान किया है.

आज़ादी के जश्न की तैयारियों के दौरान 15 अगस्त के आस-पास दिल्ली अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क हो ही जाती है, इसके बाद भी संसद के बिल्कुल क़रीब कंस्टीट्यूशन क्लब के बाहर उमर ख़ालिद पर गोली चलाने की कोशिश होती है. सुरक्षा के लिहाज़ से इस हाई अलर्ट ज़ोन में दिनदहाड़े कोई पिस्टल लेकर आने की हिम्मत कैसे कर गया और फ़रार भी हो गया.

वहां ‘ख़ौफ़ से आज़ादी’ नाम का कार्यक्रम होने वाला था, उसी में शरीक होने के लिए उमर ख़ालिद समय से पहले पहुंच कर चाय पी रहे थे. क्या हमलावर अचानक आ गया या वो वहां से गुज़र रहा होगा यूं ही पान खाने के लिए, हाथ में पिस्तौल लेकर और उमर दिख गया होगा तो सोचा होगा चलो गोली-सोली चलाते हैं.

क्या यह सोचना ही भयावह नहीं है कि एक छात्र को गोली मारने के लिए कोई पीछे से आ धमकता है, उसे मारता है और फिर पिस्तौल छोड़ कर भाग जाता है.

उमर इस हमले में बाल-बाल बचे हैं. क्या अभी भी बहुत दिमाग़ लगाने की ज़रुरत है कि कौन लोग हैं, जो पिस्तौल लेकर बीच दिल्ली में घूम रहे हैं और किसकी तलाश कर रहे हैं.

क्या यह सब अचानक हो जाता है या फिर कहीं कुछ है, जहां बड़ी तैयारी के बाद फैसला लिया जाता होगा. गौरी लंकेश की हत्या के बाद जो जांच में बातें सामने आ रही हैं, क्या इसके बाद भी उमर ख़ालिद पर हुए इस हमले को हल्के में लिया जा सकता है.

‘‘ख़ौफ़ से आज़ादी‘ कार्यक्रम में रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, जेएनयू के लापता छात्र नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस, जुनैद की मां फ़ातिमा, वही जुनैद जिसकी फ़रीदाबाद के पास चलती ट्रेन में पीट कर हत्या कर दी गई थी. पूर्व आईपीएस अफ़सर एस.आर. दारापुरी, राज्यसभा सांसद मनोज झा, प्रशांत भूषण, आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, अमित सेनगुप्ता, पूर्व सांसद अली अनवर बोलने के लिए आने वाले थे. झारखंड में भीड़ ने जिस अलीमुद्दीन की हत्या कर दी थी, उनकी पत्नी भी बोलने वाली थीं. गोरखपुर के बी.आर. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर कफ़ील ख़ान भी बोलने आए हुए थे. अंकित सक्सेना के पिता यशपाल सक्सेना भी थे.

कन्हैया और उमर ख़ालिद को लेकर आए दिन व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के ज़रिए प्रोपेगंडा किया जाता है जैसे कि दुनिया को इन्हीं से ख़तरा है, और जो सबसे सुरक्षित क्षेत्र हैं, वहां इनके पीछे पिस्तौल लेकर पहुंचने वाले को कोई ख़तरा नहीं है.

कन्हैया ने भी कहा है कि इस घटना में कौन लोग शामिल हैं यह पता लगाने का काम दिल्ली पुलिस का है, लेकिन यह पता लगाने की ज़रूरत नहीं है कि उमर या कन्हैया की बातों से किन लोगों को दिक्कत हो रही है.

ग़ौरतलब है कि उमर ख़ालिद ने मार्च 2016 में भी पुलिस सुरक्षा की मांग की थी, जो नहीं दी गई. दो महीने पहले उमर खालिद को फिर धमकी आई तो उसने दिल्ली पुलिस से सुरक्षा की मांग की, मगर नहीं मिली.

हमारे देश में किसी निहत्थे इंसान के उपर गोली चलाने की तो पूरी आज़ादी है, लेकिन सुरक्षा मांगने और मिलने की आज़ादी और गारंटी सिर्फ़ कुछ कथित लोगों को ही है. इसमें ज़िम्मेदार मीडिया भी है. इन दोनों को इस तरह से पेश किया जाता है कि जैसे भारत की सारी समस्याओं की जड़ यही हैं. दिल्ली पुलिस को पहुंचने में वक़्त तो नहीं लगा. हमला करने वाला चाकचैबंद सुरक्षा वाले भारत के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले हाई अलर्ट ज़ोन से फ़रार होने में कामयाब हो जाता है.

एक दिलचस्प बात उसी समय हुई. उसी जगह पर दिल्ली बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक हो रही थी. बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी भी घटनास्थल जाती हैं और कहती हैं कि उमर ख़ालिद ज़िंदाबाद के नारे लग रहे थे, हालांकि ख़ौफ से आज़ादी कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आए एस. आर. दारापुरी ने साफ़ कहा कि वहां उमर ख़ालिद ज़िंदाबाद का कोई नारा नहीं लगा.

सवाल यह है कि अगर किसी के ज़िदाबाद के नारे लगाए भी जा रहे थे तो यह कहां तक जायज़ है कि उसे गोली मार दी जाए? यह महज़ इत्तेफाक़ है या सोची समझी साज़िश यह तो खैर जांच और वक़्त ही बताएगा.

देश में लोगों को कितनी आज़ादी मिली हुई है, इसका अंदाज़ा इस बात से बख़ूबी लगाया जा सकता है कि दिल्ली से सटे दादरी में सांप्रदायिक तनाव फैलाने का प्रयास किया जा रहा है.

हैरत तो तब होती है जब यह पता चलता है कि 14 साल के बच्चे को भी पीछे से गोली मारकर कोई भाग रहा है. बुजुर्ग पर पीछे से गोली चला दी जा रही है. कोई सनकी भी होगा तो एक बार गोली चलाएगा, लेकिन वो कौन है क्या वो किसी संगठन का है, जो एक समुदाय के लोगों को गोली मार कर भागा जा रहा है. दादरी इलाक़े में एक दो नहीं बल्कि एक महीने के अंदर 6 लोगों पर गोली चलाई गई है. इन छह में पांच घायल हैं और एक बच गया है.

पहले मामले में सिलाई का काम करने वाले 57 साल के फ़ैयाज़ अहमद को रात के साढ़े दस बजे अपने घर लौटते समय दादरी मेन रोड पर दो बाइक सवार गोली मार कर चले जाते हैं.

ये पहली घटना थी. किसी को भी लगा होगा कि यह आम वारदात है. मगर 9 अगस्त तक इसी तरह पांच लोगों को पीछे से गोली मारी जाती है, जिसमें एक बच्चा भी है. 12 जुलाई को सातवीं क्लास में पढ़ने वाला 14 साल के मोहम्मद फैज़ान को रात 9 बजे के बाद दुकान से घर लौटते हुए बाइक पर सवार दो लड़के बिना बात के कमर में गोली मारते हैं. ठीक उसी तरह से जिस तरह से फैयाज़ अहमद को गोली मारी गई थी.

तीसरी घटना में 14 जुलाई को 26 साल के इरफ़ान को अपनी कपड़े की दुकान से निकलते हुए बाइक सवार पीछे से गोली चलाते हैं. मगर रात के अंधेरे के कारण इरफ़ान गोली लगने से बच जाता हैं. घर वालों ने डर के मारे पुलिस में शिकायत तक दर्ज नहीं कराई.

इसी तरह अन्य घटनाओं में तीस साल के बेहद ग़रीब बेलदार शौक़ीन को, इसके बाद ईंट के भट्टे पर काम करने वाले 24 साल के सलमान और 30 साल के अफ़सार को गोली मारी जाती है.

गरीब तबक़े के एक ही समुदाय के लोगों को एक महीने के भीतर पीछे से गोली मारी जाती है. सभी को एक ही जगह के आसपास गोली लगती है. गोली चलाने का वक़्त भी एक सा है. सिर्फ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन गरीब लोगों को गोली मारने वाले का मक़सद क्या रहा होगा.

वैसे पुलिस की मुस्तैदी देखिए कि इस मामले में भी तब तक गिरफ़्तारी नहीं हुई, जब तक कि मामला मीडिया में नहीं आ गया. इस मामले में 3 लोगों मनीष, अभिषेक और एक नाबालिग़ को गिरफ़तार किया गया, जिसमें पुलिस, पीड़ित और आरोपियों के बयान बिल्कुल अलग हैं. पुलिस इसे आपसी झगड़े का मामला बताकर पल्ला झाड़ रही है, जबकि पीड़ित झगड़े की बात को सिरे से नकारते हैं.

हमला 6 लोगों पर हुआ था. चार केस दर्ज हुए हैं क्योंकि एक में दो लोगों पर हुआ था और एक ने केस ही दर्ज नहीं कराया. ख़बरदार हो जाइये कि यह दिन रात की वाट्सअप यूनिवर्सिर्टी के ज़रिय फैलाया जा रहा झूठी नफ़रत का गुबार आपके बच्चे को कब आत्मघाती में तब्दील कर दे और आप बेख़बर ही रहें. इस माहौल पर जल्द क़ाबू नहीं पाया गया तो कल आप भी किसी अंधी आत्मघाती भीड़ का शिकार बन सकते हैं.

यह बात और है कि काफ़ी मामलों में पुलिस को सत्ता की पुश्तपनाही हासिल होती है. यह भीड़ आख़िर कहां से आ जाती है. आप अच्छी तरह से सोच समझ लीजिए कि भविष्य के किस काले दौर में भारत को आप ले जा रहे हैं, जहां आपके बच्चों को चलता-फिरता मानव बम बनाया जा रहा है.

नफ़रत की ऐसी आग लोगों के दिलो-दिमाग़ में दिन-रात भड़काई जा रही है. अक्सर जब कोई भी शख्स इस तरह की हरकत करते हुए पकड़ा जाता है तो पता चलता है कि उसे सत्ता का ख़ामोश समर्थन हासिल है, जबकि उसके घर वाले इस बात से बेख़बर होते हैं कि वह क्या कर रहा था? उसे किन हालात ने इतना ख़तरनाक बना दिया कि वह कल तक अपने दोस्त कहे जाने वाले लोगों को ही दुश्मन समझ कर उन पर हमला करने से भी नहीं चूकता.

यह कोई और नहीं हमारे और आपके ही बीच रहने वाले जानकार चेहरे हैं. देश में इस तरह का माहौल पैदा कर जिस हिन्दुत्व की नैया पर सवार होकर सत्ता का सपना ये लालची गिद्द अपने दिलों में पाले हुए हैं उसमें वह आपके बच्चों को ईंधन बनाने का काम कर रहे हैं.

देश में नफ़रत और अविश्वास का जो ज़हर इनके दिमाग़ में मीडिया और सत्ता के लालची भेड़ियों के ज़रिए भरा जा रहा है, उसका ये नतीजा है कि यह जुनूनी किसी मासूम इंसान की जान लेने से भी नहीं कतराते. ऐसा लगता है हर तरफ़ अंधभक्ति में लीन खूनी भेड़िये तैयार करने का कारखाना चल पड़ा है.

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