आपके हलाल पैसे को बैंक में रखकर उसका ब्याज खा रही है हज कमिटी

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अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

ईमान लाने के बाद नमाज़, रोज़ा और ज़कात की तरह ‘हज’ भी उन सभी मुसलमानों पर ज़िन्दगी में एक बार फर्ज़ है, जो अपनी माली हालत और सेहत को देखते हुए अपनी ‘हलाल’ कमाई से मक्का जा सकते हों. इसलिए हर मुसलमान की ख़्वाहिश होती है कि वह अपनी ज़िन्दगी में कम से कम एक बार हज ज़रूर करें. लेकिन आपके ज़रिए अपने हज के लिए दिए गए हलाल पैसे को हज कमिटी बैंक में रखकर उसका ब्याज खाने लगे तो आप क्या कहेंगे?

बताते चलें कि ड्रॉ में नाम आने के बाद हज कमिटी ऑफ़ इंडिया प्रत्येक हाजी से बतौर पेशगी रक़म 80 हज़ार रूपये लेती है. ये रक़म इस साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में ही जमा करा ली गई थी.

भारत से इस बार 1,75,025 लोग हज के लिए सऊदी अरब जाएंगे. इनमें 46,323 लोग प्राईवेट टूर ऑपरेटर के ज़रिए तो वहीं 1,28,702 लोग हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के ज़रिए हज पर जा रहे हैं. फिलहाल इस स्टोरी में हम सिर्फ़ हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के ज़रिए जाने वाले हाजियों की बात कर रहे हैं.

जब हम इस 80 हज़ार रूपये का हिसाब-किताब लगाते हैं कि तो हम पाते हैं कि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के पास जनवरी महीने के आख़िर तक क़रीब 10 अरब 29 करोड़  61 लाख 60 हज़ार रूपये आ जाते हैं. इस पैसे को यक़ीनन हज कमिटी बैंक में रखती है और इस पैसे के ब्याज का लाभ भी उठाती है. इससे इन्हें कितना ब्याज मिलता होगा, इसका कोई आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन आप इसका अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये पैसा क़रीब तीन या चार महीने बैंक में ही रहता है तो ब्याज कितना बनता होगा.

हालांकि आरटीआई से मिले अहम दस्तावेज़ बताते हैं कि, हज कमिटी को साल 2014-15 में 46.22 करोड़ रूपये बैंक से ब्याज के तौर पर मिले थे. अब इस रक़म में ब्याज लगातार इज़ाफ़ा होता नज़र आ रहा है. साल 2017 में ब्याज़ की ये रक़म बढ़कर 60 करोड़ रूपये तक पहुंच चुकी है. यहां ये भी बताते चलें कि पिछले पांच साल में ब्याज की ये रक़म 1 अरब 20 लाख रही है. (ये आंकड़ा साल 2010-11 से 2014-15 तक का ही है.)

यही नहीं, सूचना के अधिकार के ज़रिए मिले अहम दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि, 31 मार्च, 2017 तक हज कमिटी ऑफ़ इंडिया की कुल 825.5 करोड़ रक़म बैंक में फिक्स डिपॉजिट के तहत जमा है. इनमें से 522.5 करोड़ रूपये यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया में, 283 करोड़ केनरा बैंक में और 20 करोड़ ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स में बतौर फिक्स डिपॉजिट है.

ये पैसा शुद्ध रूप से मुसलमानों का है, जो हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने भारतीय मुसलमानों से हज के दौरान हासिल किए हैं या यूं कहिए कि कमाए हैं.

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