अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines
हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने इस साल हज पर जाने वाले भारतीय मुसलमानों से मक्का में रहने के नाम पर 4500 सऊदी रियाल (80,597 रूपये) ग्रीन कैटेगरी के लिए, तो वहीं 2549* रियाल (45,654 रूपये) अज़ीज़िया कैटेगरी के लिए जमा कराए हैं. (*इसमें कमरे से हरम शरीफ़ जाने का खर्च भी शामिल है), लेकिन जब BeyondHeadlines ने रिहाईश के इस रेट की जांच पड़ताल की तो असल कहानी कुछ और सामने निकल कर आई.
सऊदी अरब में रहने वाले हमारे एक सहयोगी के मुताबिक़, हज कमिटी ऑफ़ इंडिया भारतीय मुसलमानों से तक़रीबन डेढ़ गुनी रक़म वसूल रही है. इतनी रक़म में तो हज के सीज़न में भी अच्छे से अच्छा होटल मिल जाता है.
जद्दा में रहने वाले इनायत करीम बताते हैं कि, भारत से यहां आने वाले हाजियों को देखकर हमें तरस आता है. क्योंकि जो सुविधाएं उन्हें मिलनी चाहिए, वो बिल्कुल भी नहीं मिलती हैं. हज कमिटी जो होटल या बिल्डिंग किराए पर लेती है, इन में कैपिसीटी से ज़्यादा लोगों को रखती है.
इस साल बिहार के किशनगंज से हज पर गए मौसूफ़ सरवर का कहना है कि हम अभी 8 दिन मदीने में रहकर आए हैं. वहां होटल का जो कमरा एक आदमी के रहने के लायक़ था, उस कमरे में एक साथ 4 लोगों को रखा गया. वहीं जिस कमरे में 2 लोग रह सकते हैं, उसमें 6 या 7 लोगों को रखा गया था. अब हम मक्का आ चुके हैं, लेकिन यहां भी हालत कुछ ऐसी ही है. मैं जिस कमरे में हूं, उसमें ज़्यादा से ज़्यादा दो या तीन लोग आ सकते हैं, लेकिन फिलहाल मेरे कमरे में 4 लोग हैं.
इनका भी कहना है कि मैंने यहां कई स्थानीय लोगों से बातचीत की है, वो हम पर हंसते हैं. यानी हम से जिस कमरे के लिए 2549 रियाल (45,654 रूपये) वसूल किया गया है, वो कमरा 1000-1200 रियाल (17910-21492 रूपये) तक का है.
BeyondHeadlines ने भारत में भी कई प्राईवेट टूर ऑपरेटरों से बात की और उनके ज़रिए दिलाए जाने वाले रिहाईश और उन पर आने वाले खर्चों का ब्योरा हासिल किया, तो बेहद चौंकाने वाली बातें सामने आईं.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर मुंबई के एक प्राईवेट टूर ऑपरेटर ने हमें बताया कि, हज कमिटी ऑफ़ इंडिया हाजियों के लिए होटल के बजाए बिल्डिंग लेना पसंद करती है. जबकि प्राईवेट टूर ऑपरेटर से जाने वाले हाजी होटलों में रहते हैं.
जब हमने उनसे ग्रीन और अज़ीज़िया कैटेगरी जैसी जगहों पर रहने के लिए आने वाले खर्च के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि, अज़ीज़िया कैटेगरी से बेहतर जगह हमें पूरे सीज़न के लिए अधिकतम 1500 सऊदी रियाल (26,865 रूपये) और ग्रीन कैटेगरी में रहने के लिए अधिकतम 3500 सऊदी रियाल (62,687 रूपये) में मिल जाती है. इन कमरों की सुविधा हज कमिटी के कमरों से काफ़ी बेहतर होती है.
ध्यान रहे कि इस साल सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियोज़ आए हैं, जिसमें भारत के हाजी रोते हुए नज़र आ रहे हैं. इन वीडियोज़ में लोगों का कहना है कि हमें यहां अनाथ की तरह छोड़ दिया गया है. हमारी बीवियां किसी और के कमरों में हैं और दूसरों की बीवियां हमारे कमरे में. और हमारी कोई सुनने वाला नहीं है.
जब इस संबंध में हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के सीईओ डॉ. मक़सूद अहमद खान से बात की तो उनका कहना है कि, ‘जो हाजी अपनी शिकायत वीडियो के ज़रिए कर रहे हैं, उनसे हमारी अपील है कि पहले तो आप बिल्डिंग के शिकायती-रजिस्टर में अपनी शिकायत लिखिए. वहां हमारे ख़ादिमुल हुज्जाज जाकर उन शिकायतों को दूर करने की कोशिश ज़रूर करेंगे. अगर इससे आपकी शिकायत दूर नहीं होती है तो आप वहां इंडियन हज मिशन के दफ़्तर में जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराएं. यहां आपकी शिकायतों को ज़रूर दूर किया जाएगा. वीडियो बनाकर सिर्फ़ हमारी बदनामी की जा सकती है, इससे आपकी तकलीफ़ दूर नहीं होगी.’
लेकिन जब हमारी बात मक्का में मौजूद हाजियों से हुई तो उनका कहना है कि ख़ादिमुल हुज्जाज सिर्फ़ नाम के लिए हैं. हज मिशन में भी हमारी बात सुनी नहीं गई है.
मौसूफ़ सरवर का कहना है कि जब हम मदीने में अपनी शिकायत लिखने के लिए गए तो होटल वाले का साफ़ तौर पर कहना था कि आप अपनी शिकायत हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के लोगों से करें, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते. इनके इस जवाब के बाद मैंने इंडियन हज मिशन में भी जाकर शिकायत की, लेकिन वहां भी हम लोगों की कोई शिकायत सुनी नहीं गई. किसी तरह से 8 दिन काटकर अब हम मक्का आ चुके हैं.
हालांकि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के सीईओ डॉ. मक़सूद अहमद खान यह भी कहते हैं कि, ‘हज कमिटी ऑफ़ इंडिया का सऊदी अरब में कोई अमल-दख़ल नहीं होता. हमारा रोल हाजियों के मक्का या मदीना लैंड करते ही ख़त्म हो जाता है. वहां के सारे इंतज़ाम इंडियन हज मिशन करती है. वहां अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के ज़रिए चुने गए क़रीब 600 ऑफ़िसर्स काम कर रहे हैं. हालांकि ये अलग बात है कि बिल्डिंग सेलेक्शन के लिए लोग हज कमिटी ऑफ़ इंडिया से ही जाते हैं.’
ये पूछने पर भारत के प्राईवेट टूर ऑपरेटर्स हज कमिटी ऑफ़ इंडिया से सस्ता और अच्छा हॉटल या कमरा कैसे ले लेते हैं? इस पर डॉ. मक़सूद खान का कहना है कि, ‘उनका सस्ता इसलिए होता है, क्योंकि वह हाजियों को यहां-वहां शिफ्ट करते रहते हैं. वो 100 हाजियों को लेकर घूम सकते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे पास सवा लाख हाजी होते हैं.’
ग़ौरलतब रहे कि इस बार हज पर गए लोगों की ये भी शिकायत है कि ग्रीन कैटेगरी के तहत पैसा जमा करने के बावजूद इन्हें हरम शरीफ़ से ढ़ाई किलोमीटर दूर रहने के लिए रिहाईश दी गई है, जबकि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया की गाईडलाईंस ये बताती है कि, ग्रीन कैटेगरी के तहत हरम शरीफ़ के बाहरी हुदूद से 1000 मीटर की दूरी पर रिहाईश दी जाएगी. साथ ही इसमें ये भी लिखा गया है कि, चूंकि हरम शरीफ़ का अरीज़ा काफ़ी वसी है, लिहाज़ा खाना काबा से बाहरी हुदूद का फ़ासला 400-600 मीटर इज़ाफ़ी है, जिसकी वजह से रिहाइश की दूरी और ज़्यादा होगी. हाजियों को अपनी रिहाइश से पैदल चलकर या अपने खर्च पर टैक्सी के ज़रिए हरम शरीफ़ पहुंचना है.
भारतीय हाजियों के साथ रिहाईश की समस्या काफ़ी पुरानी है और इस संबंध में घोटाले की कई ख़बरें कई बार उर्दू मीडिया में बहस का विषय बन चुकी हैं. कुछ साल पहले मीडिया में यह ख़बर भी आई थी कि सऊदी अरब के बिल्डिंग मालिकों ने भारत सरकार से इस बात की शिकायत की थी कि आगे से वो भारत को अपनी बिल्डिंगें किराए पर नहीं देंगे. उन्होंने इसके पीछे कमीशनखोरी व भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था.
कमीशनखोरी व भ्रष्टाचार के आरोप के बारे में पूछने पर मक़सूद खान का कहना है, ‘हमारी पॉलिसी हज को महंगा नहीं होने देने की है. इसमें हमारी कमाई का कोई सवाल ही नहीं उठता है. हज कमिटी ऑफ़ इंडिया जो रेट तय करती है, वही रेट बिल्डिंग मालिकों को देती है और हाजियों से भी वही रेट लेती है.’ जारी…
