BeyondHeadlines History Desk
‘बक़रीद नज़दीक आ रही है. मुसलमान भाईयों को याद होगा कि मुस्लिम लीग के पिछले अमृतसर वाले अधिवेशन में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो चुका है कि बक़रीद के दिन गो-वध न किया जाए. मुझे विश्वास है कि मुसलमान भाई इस पर अमल करेंगे. इस बात के लिए मौलाना अब्दुल बारी और अफ़गानिस्तान के 110 उलेमाओं ने भी फ़तवा दे दिया है. इस के अलावा मुसलमान भाई यह अच्छी तरह समझते हैं कि हिन्दू किस प्रकार हमारा साथ दे रहे हैं. ख़िलाफ़त केवल धार्मिक समस्या है, तो भी हिन्दू हमारे साथ हैं. यह कहना भी बेजा न होगा कि अमीर अफ़गानिस्तान और निज़ाम हैदराबाद ने अपने राज्य में गो-हत्या रोक दी है. मैं अपने मुसलमान भाईयों से ज़ोरों के साथ प्रार्थना करता हूं कि वे आगामी बक़रीद पर अगर सर्वथा न हो सके तो जहां तक संभव हो, गौ के बजाए दूसरे जानवर की कुर्बानी करें. मेरी हिन्दू भाईयों से भी प्रार्थना है कि गौ-रक्षा का मामला मुसलमानों के लिए भी एक जातीय मामला हो गया है, और वे स्वयं इसे समझने लगे हैं. मैं आशा करता हूं हिन्दू और मुसलमान मेरे इस विचार से सहमत होंगे और वे सन्तोष के साथ काम करते हुए हिन्दू-मुस्लिम एकता का परिचय देंगे.’
ये अपील 1920 में हकीम अजमल खान ने गो-रक्षा के संबंध में जारी की थी.
हकीम अजमल खान की ये अपील गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादन में कानपुर से निकलने वाले अख़बार ‘प्रताप’ के 23 अगस्त, 1920 के अंक में पेज नंबर—7 पर छपी है.
(नोट : ‘प्रताप’ अख़बार की कॉपी अफ़रोज़ आलम साहिल को उनके शोध के दौरान मिली है.)