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जानिए! बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को मंदिर की रक्षा के लिए क्या लिखा था?

BeyondHeadlines History Desk

‘मेरे बेटे, भारतीय साम्राज्य भिन्न-भिन्न धर्मों पर निर्भर है. ईश्वर ने यह राज्य तेरे ऊपर छोड़ा है. तू धार्मिक भेद-भाव को भूलकर सच्चे दिल से रिआया के साथ न्याय करना. इसमें धार्मिक भेद-भाव को पास न आने देना, जहां तक हो सके, गौ-हत्या को रोक देना, इससे तू हिन्दुओ के हृदयों को विजय कर लेगा, और प्रजा राजा पर विश्वास करने लगेगी. किसी जाति के पूजा-भवन या मंदिर आदि तोड़ने की कोशिश न करना. अपने राज्य नियम और न्याय का ऐसा ढंग रखना कि राजा प्रजा दिल मिल कर रहें. राजकीय एहसानों से प्रजा को मुग्ध रखना. इस्लाम धर्म का प्रचार बजाय लोहे की तलवार के मेहरबानी की मुहब्बत से अधिक हो सकता है. शिया और सुन्नियों के झगड़ों को नज़रअंदाज़ करना, वरना इस्लाम की मज़ोरी प्रकट हो जाएगी. सदा न्याय पर दृढ़ रहना जिससे तेरे साम्राज्य सुदृढ़ और चिरस्थायी होगा.’

बाबर का ये पत्र गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादन में कानपुर से निकलने वाले अख़बार ‘प्रताप’ के 23 अगस्त, 1920 के अंक में पेज नंबर—7 पर छपा है.

ये पत्र मिस्टर आसफ़ अली बैरिस्टर के हवाले से छापा गया है. आसफ़ अली ने इस पत्र के बारे में लिखा है कि, —‘रियासत भूपाल की लाइब्रेरी से एक प्रमाण-पत्र मिला है. यह एक गुप्त सूचना है, जिसे सम्राट बाबर ने शाहज़ादा नसीरूद्दीन हुमायूं को साम्राज्य-रक्षा के लिए लिखी थी.’

(नोट : ‘प्रताप’ अख़बार की कॉपी अफ़रोज़ आलम साहिल को उनके शोध के दौरान मिली है.)

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