By Afshan Khan
रास्ते में चलते हुए हैवी ट्रैफिक के बीच लोगों को सड़क पार करते हुए तो आपने देखा होगा. लेकिन क्या ऐसे में किसी को मोबाइल में घुसे हुए देखा है? मुझे पूरा यक़ीन है कि आपका जवाब हां ही होगा…
कभी मेट्रो से चढ़ते उतरते हुए, कभी जूस की दुकान पर कान में रूई डालकर मोबाइल पर चैट करते हुए, कभी बाज़ार में कभी घर में, हमें हर जगह एक ही बीमारी नज़र आती है और वो है गर्दन नीचे करके मोबाइल में घुसे रहने की बीमारी.
ये बीमारी इतनी गंभीर है कि इसका अंदाज़ा अगर आपको हो भी जाए तो भी इससे ठीक होने के लिए न दवा काम आती है ना दुआ. ऐसा लगता है जैसे इस बीमारी ने मरते दम तक के लिए मरीज़ को अपने चंगुल में जकड़ा हुआ है.
मोबाइल में आपके 24 घंटे में से गहरी नींद में सोने वाले लम्हा भी जाता है क्योंकि आपके सपने भी इससे प्रभावित होते हैं. नींद न आना भी इसी का नतीजा है और नींद खुलने की वजह भी मोबाइल में नोटिफिकेशन चेक करने की चाहत होती है.
मोबाइल से चिपके रहने वाले लोग ऐसे हैं, जैसे लैला के प्यार में पागल मजनू. वो मजनू जो लैला के दीदार के बिना पागल पागल फिरता है, वो मजनू जिसे सिर्फ़ दीदार नहीं, बल्कि फुरसत वाली मुलाक़ात के बिना सांस नहीं आती…
मोबाइल की बीमारी आपको रांझा और रोमियो बना देगी, जिसको न माँ की फिक्र है ना पिता की ना ही किसी सगे संबंधी की. यहां तक कि लोग मय्यत पर जाकर भी मोबाइल को छूने से बाज़ नहीं आते.
लोगों की बीवियां सर पटक के मर जाएं लेकिन उनके पति जिनको वो अपना प्रेमी समझती हैं वो किसी और के प्रेम में फंसा होने के कारण घर गृहस्थी से भी दूर हो जाता है.
धीरे–धीरे ये मोबाइल नाम की बला या यूं कहिए मेहबूबा सबके रिश्ते ख़राब करके दो लोगों के बीच दूरियां बढ़ाने का काम बखूबी कर रहा है…
अगर आप भी इस बीमारी में फंस चुके हैं तो संभल जाईए, क्योंकि इस नशे को छुड़ाने वाला अब तक कोई नशा मुक्ति केंद्र नहीं खुला है. लिहाज़ा आपको खुद ही इससे पीछा छुड़ाना होगा, वरना धीरे–धीरे ये आपके रिश्तों को दीमक की तरह नष्ट करता जाएगा.
आपके रिश्ते के अलावा इसके दुश्मन हैं —आपका काम, आपका दृढ़ निश्चय, आपका करियर, आपकी आंखें, आपका सुकून और दिमाग़ी संतुलन… अगर आपको इनमें से किसी चीज़ से प्यार नहीं है तो बेशक आप खुशी–खुशी मोबाइल की दुनिया में बल्कि नशे में डूब कर नशेड़ियों वाली ज़िन्दगी गुज़ारिए…